वही पुराना राज्य, वही पुराना राजभवन, वही पुराने राज्यपाल, सचिवालय में वही पुराना अफसर, वही पुराना विश्वविद्यालय और वही पुराने भर्ती घोटाले तो फिर आज राजभवन आयुर्वेद विश्वविद्यालय के भर्ती घोटाला और तमाम अनियमितताओं पर पिछले एक साल से खामोश क्यों हैं !!
क्या सरकार बदल गई है, इसलिए खामोश है !
क्या इसलिए खामोश है कि वहां अब मृत्युंजय मिश्रा नहीं है !
क्या इसलिए खामोश है कि अब राज्यपाल के पुराने वाले सचिव नहीं है !
आखिर बात क्या है !!
यह सवाल आजकल सियासी गलियारों से लेकर पान और चाय के नुक्कड़ तक पसरता जा रहा है। वर्ष 2016 में आयुर्वेद विश्वविद्यालय की अनियमितताओं को नाक का सवाल बना लेने वाले राजभवन ने जून 2015 से दसियों बार आयुर्वेद विश्वविद्यालय की अनियमितताओं को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत को निशाने पर ले कर रखा था। हर महीने दो चिट्टियां जारी करने वाले राजभवन ने सरकार को बुरी तरह असहज कर दिया था।
जनवरी 2016 में राज्यपाल के तत्कालीन पदेन सचिव अरुण ने शासन को एक चिट्ठी भेजी और इसे मीडिया में भी प्रसारित किया गया था जिसमें लिखा था कि यह छटा पत्र भेजा जा रहा है फिर भी कार्यवाही क्यों नहीं हो रही है !
मृत्युंजय मिश्रा और कांग्रेस सरकार की विदाई के बाद से क्या वाकई विश्वविद्यालय में राम राज्य आ गया है या राजभवन को नया निजाम रास आ गया है !
विश्वविद्यालय में पिछले एक सप्ताह से चिकित्सकों की भर्ती के पेपर लीक होने को लेकर बवाल मचा हुआ है।
उसके बाद एसोसिएट प्रोफेसरों की भर्तियों के मानक बदलने को लेकर तमाम सवाल उठाए जा रहे हैं।
विश्वविद्यालय में तमाम खरीद-फरोख्त में भ्रष्टाचार का आलम चरम पर है। किंतु राज भवन अब कानों में तेल डालकर सोया हुआ है।
एक साल में राजभवन ने एक भी बार यह नहीं जानना चाहा कि यह हंगामा क्यों बरपा हुआ है !
11 मार्च को आयुर्वेद विश्वविद्यालय में आयुर्वेद चिकित्सकों की भर्ती में गड़बड़ियों पर कई गंभीर सवाल परीक्षार्थियों ने उठाए किंतु किसी ने भी संज्ञान नहीं लिया।
जो मुख्य प्रश्न उठाए गए हैं उसमें प्रमुख है –
1- प्रश्न पत्र सीलबंद नहीं थे।
2- प्रश्न पत्रों के चारों सीटों के क्रमांक भी न थे किसी में 80 प्रश्न और किसी में 100 प्रश्न दर्शाए गए थे।
3- प्रश्न पत्र एक ही गाइड गोविंद पारीक के पेज नंबर। 859 से 869 तक के थे जो कि एनआईए 2007 की परीक्षा गाइड के हल प्रश्न पत्र थे।
4- प्रश्न पत्र संदर्भ सहित पूछे गए थे जो बिल्कुल अनुचित है। और पूर्व में ऐसा कभी नहीं हुआ।
5- प्रश्न पत्र और उत्तर पुस्तिका के क्रमांक भी न थे।
6- कुलपति का कहना था कि प्रश्न पत्र पहले वाला लीक हो गया था तथा आनन-फानन में दूसरा बनाया गया। सवाल उठता है कि जो पहला पेपर लीक हुआ उसके लिए किस को चिन्हित किया गया अथवा किसके खिलाफ कार्यवाही दर्ज की गई?
7- इससे स्पष्ट होता है कि परीक्षा में पूर्ण रुप से गड़बड़ी थी और परीक्षा में अपने खास लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए यह पेपर लीक किया गया था। जिससे अभ्यर्थियों में भारी आक्रोश और असंतोष है।
विश्वविद्यालय परिषद में दिनांक 19/3/18 को छात्रों का प्रतिनिधि मंडल चिकित्सा अधिकारी परीक्षा के सम्बंध में कुलपति औऱ कुल सचिव से मिला तथा पूर्व में पेपर में हुई त्रुटियों के विषय मे बात हुई तथा पेपर निरस्त करने की मांग की। कुलपति ने छात्रों से कहा कि हम आपकी बात सरकार को बताएंगे तथा शासन द्वारा जो उचित निर्णय लिया जाएगा उसके आदेशानुसार कार्य किया जाएगा। लेकिन छात्र एक सूत्रीय मांग पर अडिग हैं कि पेपर निरस्त हो तथा मांग कर रहे हैं कि पुनः पेपर कराया जाए तथा जिसका स्तर चिकित्सा अधिकारी का हो। फिर राजभवन इनकी सुन क्यों नहीं रहा !
एसोसिएट प्रोफेसर की भर्ती में भी भारी गड़बड़ी हुई है ।चहेतों को अंदर करने के लिये रातों रात मानक बदल दिए गए।
इन सारी अनियमितताओं के अलावा विश्वविद्यालय के डिप्टी रजिस्ट्रार प्राइवेट गंभीर अनियमितताओं के आरोप है।
इससे पहले विश्वविद्यालय में छात्रों की प्रवेश परीक्षाओं में भी व्यापक गड़बड़ियों के आरोप लगे थे।
जब से राजभवन ने चुप्पी साधी है तबसे कुछ बड़े घोटाले पर्वतजन ने समय-समय पर प्रकाशित किए हैं।
इसमें प्रमुखता से पहला घोटाला है कि विश्वविद्यालय में प्रवेश के समय कुल संख्या से 15 छात्र अतिरिक्त रूप से भर्ती कर दिए गए थे आखिर यह छात्र किसके इशारे पर स्वीकृत सीटों से अधिक भर्ती किए गए ! खबर छपने पर इन्हें बाहर कर दिया गया।
दूसरा घोटाला स्कॉलरशिप का घोटाला था।
तीसरा घोटाला विश्वविद्यालय में मरीजों के नाम पर डाइट घोटाला है। क्योंकि मरीज तो भर्ती होते नहीं लेकिन उनकी डाइट के नाम पर लाखों रुपए हर महीने खर्च हो रहे हैं।
चौथा घोटाला विश्वविद्यालय के उपकरणों की खरीद का घोटाला है। जिसके कारण लंबे समय से पैथोलॉजी लैब बंद पड़ी है।
पांचवा घोटाला चिकित्सकों की भर्ती का है।
छटा घोटाला एसोसिएट प्रोफेसर की भर्ती का है।
विश्वविद्यालय का ध्यान शैक्षणिक व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने पर कतई नहीं है। केवल बजट की बंदरबांट और भर्तियों का गोरखधंधा जारी है।
राजनीति का अखाड़ा बना आयुर्वेद विश्वविद्यालय
कहते हैं शिक्षा के मंदिर में पढ़ाई लिखाई की बात हो तो जँचती है लेकिन खुले आम लूट खसोट भरस्टाचार धांधली पेपर लीक मुन्नाभाई आदि प्रकरण के साथ राजनीति का अड्डा बन चुका है विश्विद्यालय। अब हालात यह है कि अधिकारी सरकारी तनख्वाह लेकर खुले आम राजनीति कर रहे हैं तथा आरएसएस और संघ परिवार के कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे हैं।
सूत्रों की माने तो विश्वविद्यालय सरकारी तनखाह लेकर राजनीतिक दलों से संबंध रखने वाले लोगों का अखाड़ा बन चुका है। नियमतः कोई भी सरकारी तनखाह लेने वाला संवैधानिक पद पर बैठा सरकारी सेवक सार्वजनिक रूप से किसी पार्टी के कार्यक्रम शैक्षणिक संस्थाओं में आयोजित नही कर सकता लेकिन हालात यह हैं कि ईमानदारी की दुहाई देने वाले लोग खुद अब पेपर लीक सहित भ्रष्टाचार के प्रकरणों में शामिल हैं ।
कुलपति खुले आम आरएसएस की विचारधारा के साथ कार्यक्रमों में शामिल हो रहे हैं साथ ही स्वीकारते हैं कि पेपर लीक हो गया था और आनन-फानन में पेपर बनाया गया लेकिन ये नही बताते की वे कौन लोग थे जिन्होंने पेपर लीक किया था, जिसकी भनक के बाद हड़बड़ी में सील खुला एक ही गाइड से पेपर बना दिया गया।
अब कुलपति की पहले पेपर लीक होने वाली बात सत्य है या बाद की बात।जिस तह हड़बड़ी में भर्ती भरी जा रही है, उससे संदेहों के घेरे में कुलपति और कुछ वो लोग जो सरकारी सेवक है और अपने नाते रिश्तेदारों को गुपचुप अंदर करने के लिए संघ परिवार और आरएसएस का सहारा ले रहे हैं।
एक साल में RSS के प्रांत प्रचारक के कार्यक्रम विश्वविद्यालय में आयोजित किए जा रहे हैं और भाजपा के किसान मोर्चा के कार्यक्रम भी विश्वविद्यालय में आयोजित हुए हैं।
यह चिकित्सा शिक्षा का विश्वविद्यालय है या राजनीति का !आखिर राजनीतिक दलों से जुड़े व्यक्तियों का यह कैसा घालमेल हो रहा है ! कहीं खामोशी का एक कारण यह तो नहीं !
सैयां भये कोतवाल तो अब डर काहे का
उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वद्यालय और घोटाले ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।बस फर्क ये है कि पहले घोटालों की किसी भी खबर पर राजभवन संज्ञान लेता था, पर अब तो निजाम का मिजाज मिलकर घोटाला करना है ।कुलपति हो चाहे हो कुलसचिव सभी का मिजाज एक है।पूर्व में भी 90 लाख के उपकरण का घोटाला और लावारिस पड़े इस्ट्रूमेंट, बिना मरीज का चल रहा मुन्नाभाईयों का अस्पताल, डाइट रजिस्टर फर्जीवाड़ा कांड,कक्षाओं में क्षमता से अधिक मुन्नाभाईयों का मिलना,सेशनल परीक्षा के पेपर आउट होना,कर्मचारियों को बिना काम के वेतन देना, भाभीजी घर पर है वेतन आराम से निकल रहा शीर्षक से पर्वत जन ने घोटालों का पर्दाफाश किया। जिसपर राजभवन गाहे बगाहे संज्ञान लेता था,पर अब हालात बद से बदतर हैं।
ऐसा नहीं हो सकता कि विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और राज्यपाल को विश्वविद्यालय में चल रहे धरना प्रदर्शनों और आंदोलनों का संज्ञान न हो ! फिर क्या वजह है कि राज भवन एक साल से खामोश है?
जब सरकार नहीं सुनती तो जनता और विपक्षी राजनीतिक पार्टियां भी राजभवन का रुख करती हैं। राज्यपाल राज्य के प्रथम नागरिक हैं और सब को इनसे ही न्याय की अपेक्षा रहती है। समय रहते यदि सुनवाई नहीं हो रही तो सवाल तो उठेंगे ही।
पर्वतजन के गंभीर पाठकों से हमारा अनुरोध है कि इस खबर को अधिक से अधिक शेयर करें ! ताकि राजभवन की दीवारों के पार बैठे राज्य के प्रथम पुरुष तक भी यह बात पहुंच सके और वह इस पर कार्यवाही करके राज्य में आयुर्वेद की छवि को सुधारने में अहम भूमिका निभाने के लिए प्रेरित हो सकें।