उत्तराखंड सचिवालय में आज संपन्न कैबिनेट बैठक में सरकार ने आबकारी नीति में पहले किए गए कुछ बदलावों को खत्म कर दिया है।
पहले सरकार ने समुद्र आयातित मदिरा के डिपार्टमेंटल स्टोर के लिए 5 करोड रुपए के टर्नओवर की शर्त रखी थी। जिसे सरकार ने वापस लेते हुए यह फीस 50 लाख कर दी है। इसके अलावा आबकारी नीति में सरकार ने चार दुकानों का एक समूह बनाकर 20 किलोमीटर की एयर डिस्टेंस के अंदर शराब को एक दुकान से दूसरी दुकान तक ले जा कर खपत करने की अनुमति दे दी थी। इससे शराब की तस्करी बढ़ने और अवैध व्यापार बढ़ने की संभावना बढ़ गई थी। इस निर्णय को भी सरकार ने वापस ले लिया है।
कैबिनेट में हुई बैठक का निर्णय सार्वजनिक करते हुए सरकार के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि यह संशोधन जनता से आए सुझावों के बाद किया गया है।
इसके अलावा 20 कमरों के बार के लिए लाइसेंस फीस को पहले पाच लाख रूपये किया गया था। अब इसे घटाकर फिर से तीन लाख रूपये कर दिया गया है।
हालांकि मॉल में खुलने वाली आयातित मदिरा की दुकानों के लिए डिपार्टमेंटल स्टोर के उलट कोई टर्नओवर जैसी शर्त न लगाए जाने के सवाल पर मदन कौशिक बगलें झांकते नजर आए। जाहिर है कि सरकार मॉल में खुलने वाली इन दुकानों के मामले में या तो अनजान है या फिर किसी अनजाने दबाव में है। पर्वतजन की जानकारी के अनुसार आबकारी अधिकारियों ने मुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री प्रकाश पंत को अंधेरे में रखकर अपने स्तर से ही आबकारी नीति में काफी सारे बदलाव कर दिए थे। जब राज्य में जगह-जगह इसको लेकर सवाल उठाने उठाए जाने लगे और सरकार की छवि खराब होने लगी तो सरकार ने बिगड़ती छवि में सुधार करने के लिए उपरोक्त संशोधनों को वापस लेना ही सही समझा।
इससे पहले सरकार निजी विश्वविद्यालय द्वारा फीस बढ़ोतरी के निर्णय को भी वापस ले चुकी है। उस मामले में भी सरकार की खासी किरकिरी हुई थी।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बाकायदा स्वीकार किया कि उनसे फीस बढ़ोतरी के मामले में चूक हुई है। इस प्रकरण के बाद आबकारी नीति में संशोधन सरकार का दूसरा रोलबैक माना जा रहा है।
पर्वतजन के सूत्रों के अनुसार सरकार केदारनाथ में प्राइवेट हेलीकॉप्टरों को उड़ान की इजाजत देने के संबंध में किए गए पिछले निर्णय को भी वापस ले सकती है। यदि ऐसा हुआ तो यह सरकार का तीसरा रोलबैक माना जाएगा। इस मामले में भी सरकार को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि इन रोलबैक को सरकार की संवेदनशीलता के रूप में प्रचारित किया जा रहा है किंतु अहम सवाल यह भी है कि बिना होमवर्क किए अफसर अपने स्वार्थ के चलते ऐसी नीतियां बना रहे हैं जिनसे सरकार को बाद में बैकफुट पर आना पड़ रहा है। जाहिर है कि इस पहलू पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।