कृष्णा बिष्ट
कैबिनेट की ताजा कैबिनेट बैठक में सरकार ने एक बड़ा भूमि घोटाला कर डाला है। उधम सिंह नगर की तहसील किच्छा स्थित खुरपिया फार्म की लगभग 400 बीघा जमीन उद्योगपतियों के लिए सिडकुल को देने का रास्ता साफ हो गया है।
यह जमीन एससी एसटी भूमिहीन और विस्थापितों के पुनर्वास के लिए आरक्षित रखी गई थी। इस तरह की कुल 485.97 एकड़ भूमि में से 80. 63 एकड़ भूमि सिडकुल को हस्तांतरित करने पर मंत्रिमंडल की मुहर लग गई है। 15 दिसंबर को इस पर कैबिनेट का आदेश भी जारी कर दिया गया है। खुरिपया फार्म की यह जमीन सीलिंग एक्ट के तहत अवमुक्त कराई गई थी और यह कुल भूमि एससी एसटी भूमिहीन और विस्थापितों के पुनर्वास के लिए आरक्षित की गई थी।
यह रहा कैबिनेट का आदेश
वर्तमान में यह आरोप लगाए जा रहे हैं कि सरकार भूमिहीनों के लिए आरक्षित रखी गई इस भूमि में से एक बड़ा भाग अडानी औद्योगिक समूह को देने जा रही है।
इस भूमि पर विस्थापितों को बसाने के लिए वर्ष 2002 से भूमिहीन श्रमिक आंदोलन कर रहे हैं। स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्रित्व काल में तत्कालीन विधायक मुन्ना सिंह चौहान के नेतृत्व में इस भूमि को लेकर एक विशाल जुलूस निकाला गया था और तब मुन्ना सिंह चौहान ने चेतावनी दी थी कि यदि एक महीने के अंदर भूमिहीनों को यह भूमि आवंटित नहीं की गई तो वह पराग और खुरफिया फार्म की जमीनों पर खुद कब्जा कर लेंगे और रामनगर जाकर मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के खिलाफ चुनाव प्रचार करेंगे।
आज जबकि मुन्ना सिंह चौहान फिर से भाजपा की सरकार में विधायक हैं और अब भूमिहीनाे कि वही जमीन उद्योगपति अडानी को देने की तैयारी हो रही है तो ऐसे में मुन्ना सिंह चौहान ने अपनी जुबान सिली हुई है। तब मुन्ना सिंह चौहान ने आरोप लगाया था कि सरकार भूमिहीनों का हक मार रही है और फार्म पर पहला हक भूमिहीनों का है, किंतु अब अपनी भाजपा सरकार में मुन्ना सिंह चौहान खामोश हैं।
गौरतलब है कि इससे पहले हुए एक विधानसभा सत्र में यह सवाल उठाया गया था कि चमोली और रुद्रप्रयाग तथा पिथौरागढ़ के जो गांव आपदा के कारण पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं उन्हें अन्यत्र बसाया जाएगा, किंतु यह तभी हो पाएगा जब जमीन उपलब्ध होगी।
जबकि हकीकत यह है कि सरकार को जब कोई जमीन औद्योगिक घरानों को देनी होती है तब तो जमीन का प्रबंध कहीं से भी हो जाता है लेकिन जो जमीन पहले से ही भूमिहीनों के लिए आरक्षित रखी गई है उस जमीन को भी औद्योगिक समूहों को देने में सरकार कोई कोताही नहीं बरत रही। ऐसे में यह वाकई चिंताजनक विषय है कि क्या भूमिहीनों और अनुसूचित जाति के व्यक्तियों के घर 5 साल में एक दो बार भोजन करने से ही उनका विकास हो जाएगा अथवा वाकई में सरकार उनके प्रति वोट बैंक से इतर भी कोई अन्य सोच रखती है ! यदि रखती होती तो फिर उनके लिए आरक्षित रखी गई भूमि को भी औद्योगिक समूह को देने का निर्णय नहीं लेती।
पिछली सरकार भी जिम्मेदार
यह भूमि लगभग खुरपिया ग्राम में 15.35 हेक्टेयर, किशनपुर में 13.5 हेक्टेयर, देवरिया में 131.68 हेक्टेयर और भूरा गाड़ी में 5.9 हेक्टेयर भूमि आरक्षित की गई थी. इस जमीन को भूमिहीनों को प्रदान करने के लिए स्थानीय लोग कई बार धरना प्रदर्शन कर चुके हैं लेकिन अब तक सरकारें उनको सिर्फ सरकार हैं उनको सिर्फ आश्वासन ही देती रही हैं।
गौरतलब है कि इस पर भूमिहीन श्रमिक एवं समाज कल्याण समिति ने भी कई बार धरना प्रदर्शन किया है। कांग्रेस के समय में भी इसको लेकर कई बार आश्वासन दिए गए हैं।
इस समय में खुरपिया फार्म की 1002.15 एकड़ जमीन सिडकुल को देने की मंजूरी मिली थी। इसके एवज में सिडकुल ने शासन को 158 करोड रुपए देने थे। इसके लिए सिडकुल ने हुडको बैंक से 200 करोड़ रुपए लोन भी स्वीकृत करा लिया था। शर्त तय हुई थी कि यदि 3 साल के भीतर औद्योगिक इकाइयां स्थापित नहीं हुई तो राजस्व विभाग आवंटित भूमि को वापस ले लेगा। आज भी इस जमीन पर कोई प्रगति नहीं है, लेकिन भूमि वापसी के विषय में सरकार मौन है।