भूपेंद्र कुमार
उत्तराखंड में अधिकारियों की फर्जी डिग्रियां सवालों के घेरे में बनी रहती हैं।
अब परिवहन विभाग के संभागीय निरीक्षक आलोक वर्मा की डिग्रियां सवालों के घेरे में हैं।
विभिन्न विभागीय तथा अन्य स्थलों से यह शिकायत पर्वतजन के इस संवाददाता के पास पहुंची तो फिर इस संवाददाता ने इस प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच के लिए परिवहन मंत्री यशपाल आर्य को पत्र लिखा लेकिन मंत्रालय ने भी इस पत्र का कोई संज्ञान नहीं लिया। जब इस प्रकरण में की गई कार्यवाही का ब्यौरा सूचना के अधिकार में मांगा गया तो परिवहन मंत्री के कार्यालय से इसका भी कोई जवाब नहीं आया।
आलोक वर्मा के प्रमाण पत्रों की सत्यापित छाया प्रति के लिए सूचना के अधिकार के अंतर्गत आवेदन किया गया तो परिवहन विभाग ने कोई जवाब नहीं दिया, और ना ही अपील का निस्तारण किया। परिवहन मंत्री का कार्यालय तथा परिवहन विभाग दोनों ही शिकायत और आरटीआई आवेदन दबा कर बैठ गए अब यह प्रकरण सूचना आयोग में लंबित है।
अनुभव प्रमाण पत्र पर सवाल
परिवहन विभाग में संभागीय निरीक्षक के पद के लिए मान्यता प्राप्त भारी मोटर वर्कशॉप का 3 वर्ष की अवधि का अनुभव प्रमाण पत्र होना चाहिए तथा यह 3 वर्षीय डिप्लोमा एआईसीटी द्वारा मान्यता प्राप्त होना चाहिए, किंतु आलोक वर्मा द्वारा जमा कराए गये अनुभव प्रमाण पत्र पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं, क्योंकि आलोक वर्मा ने जिस दौरान का अनुभव प्रमाण पत्र जमा किया है उस दौरान वह हरिद्वार कार्यालय में बाबू रहे और उनके कार्यालय में कार्यरत रहने का समय भी वहां के अभिलेखों में दर्ज है क्योंकि वह हरिद्वार में लॉगइन अफसर थे और हरिद्वार में वह शाम को 7:00 बजे तक रहते थे, जबकि उनका प्रमाणपत्र देहरादून के एक मोटर वर्कशॉप से बनाया गया है।
पर्वतजन ने जब इस मोटर वर्कशॉप के मालिक से बात की तो उन्होंने भी स्वीकार किया कि यह प्रमाण पत्र आलोक कुमार वर्मा के कहने पर बनाया गया था।
प्रमाण पत्र प्रदाता का गोलमोल जबाब
मोटर वर्कशॉप मालिक ने कहा कि वह कभी कभी उनकी वर्कशॉप में आते थे। गौरतलब है कि आलोक कुमार वर्मा पर विभिन्न तरह के भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। इनकी डिग्रियों की जांच करने के लिए कई बार परिवहन मंत्री तथा अन्य उच्चाधिकारियों को पत्र भी लिखे गए हैं लेकिन अभी तक नतीजा शून्य है।
ओपन स्कूल की डिग्री पर एक नजर
पर्वतजन के पास उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार 15 जुलाई 1961 को जन्मे आलोक कुमार ने इंटर की परीक्षा 14 जनवरी 2003 में पास की। यह परीक्षा उन्होंने ओपन स्कूलिंग के माध्यम से दी है।
चकराता रोड देहरादून के एक वर्कशॉप से उन्हें जो अनुभव प्रमाण पत्र दिया गया है उस पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
संविवलियन पर सवाल
यही नहीं आलोक वर्मा को सहायक संभागीय निरीक्षक से संभागीय निरीक्षक के पद पर संविलियन कर लिया गया, जबकि परिवहन विभाग और कार्मिक विभाग ने इस मसले पर अपनी सहमति नहीं दी थी। इसके बावजूद तत्कालीन मुख्य सचिव रामास्वामी ने यह संविलियन कराया। इस पर भी पहले विभाग ने एतराज जताया था, अब शैक्षिक दस्तावेजों पर ही सवाल खड़े होने से यह प्रकरण गंभीर हो गया है।
देखना यह है कि विभागीय अधिकारी अपने अफसर के खिलाफ की गई विभिन्न शिकायतों पर क्या संज्ञान लेते हैं !