…तो ये थे पुलिस आंदोलन के सूत्रधार और मुखबिर!

उत्तराखंड में पुलिस के जवानों के वेतन विसंगति और तमाम भत्तों में भारी कमी के चलते उपजे असंतोष को समय रहते पुलिस ने दबा दिया, लेकिन इसी मिशन आक्रोश की सफलता कह लीजिए कि सरकार ने उत्तराखंड पुलिस का दर्द समझा और वर्ष २००६ से चली आ रही वेतन विसंगति को दूर करने का निर्णय लिया।
बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि इस मिशन आक्रोश का सूत्रधार कौन था और कैसे यह आक्रोश विद्रोह बनने से पहले संभाल लिया गया। आइए आज आपसे उस शख्स का परिचय कराते हैं।
विकासनगर का रहने वाला यह युवक इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर वर्ष २०११ तक २५ हजार रुपए की सुकूनभरी नौकरी कर रहा था। इस बीच शुरू हुए अन्ना आंदोलन से यह युवक इतना प्रभावित हुआ कि नौकरी छोड़ अन्ना के आंदोलन में कूद पड़ा। अन्ना को भी यह युवक इतना भाया कि वह इसे उत्तराखंडी के नाम से बुलाते थे। उत्तराखंडी के नाम से अन्ना का प्रिय यह युवक कालसी का रहने वाला राकेश तोमर उत्तराखंडी है। अन्ना आंदोलन के बाद राकेश तोमर ने २ अगस्त २०१५ को पहली बार पुलिस के जवानों के कार्यबोझ और कम वेतन तथा विभिन्न खर्चों की हकीकत जानकर मन में ठाना कि पुलिस के जवानों की सहायता के लिए एक अभियान सोशल मीडिया के माध्यम से चलाया जाए। देखते-देखते १८ हजार पुलिसकर्मी राकेश तोमर के फेसबुक पेज से जुड़ गए और तत्कालीन सरकार तथा पुलिस के आलाधिकारियों की नींद उड़ गई। राकेश तोमर ने अपील की कि पुलिसकर्मी अपने मांगों के समर्थन में काली पट्टी बांह पर लगाएंगे। यह अपील उनकी कारगर रही और दूसरे ही दिन वर्दी के साथ बांह पर काली पट्टी लगाए पुलिस के जवानों की दर्जनों फोटो सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगी।

और ऐसे हुई मुखबिरी!

मिशन आक्रोश को दबाने की सभी रणनीतियां असफल हो रही थी, किंतु इस बीच पुलिस के अंदर से ही एक मुखबिर ने मिशन आक्रोश को फेल कर दिया। मिशन आक्रोश के तहत ये तय किया गया था कि सभी जवान ३१ दिसंबर को परिवार के साथ धरने पर बैठेंगे, किंतु इसी बीच एसटीएफ की एक महिला मुखबिर ने रणनीति के तहत राकेश तोमर से खुद को इस फेसबुक पेज पर जोडऩे का अनुरोध किया। सुबह एसटीएफ की महिला सिपाही को ग्रुप में एड किया गया और शाम 9 बजे पुलिस ने राकेश तोमर को गिरफ्तार कर लिया तथा राज्य विद्रोह की धाराएं लगाकर जेल भेज दिया। तोमर को तो जेल हो गई, किंतु मुखबिरी के बावजूद यह आंदोलन सफल रहा। पुलिस के जवानों का वेतन भी मिला तथा पिछला रुका हुआ बकाया भी दिया गया।

भले ही राकेश तोमर को मिशन आक्रोश के चलते जेल जाना पड़ा और कुछ सिपाही भी बर्खास्त भी कर दिए गए, किंतु इस प्रकरण के बाद पुलिस कर्मियों को छठे वेतनमान का लाभ दिया गया और उनका वेतन ३ हजार रुपए तक बढ़ गया। इसका लाभ १३४४९ कांस्टेबल, १३४५ हेड कांस्टेबल, २१८ एएसआई(एम), ३६० सब इंस्पेक्टर व प्लाटून कमांडर को मिला। राज्य सरकार पर इससे ६० करोड़ का वित्तीय भार भी पड़ गया।

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