उत्तराखंड में विभिन्न नगर पालिका और नगर निगमों और नगर पंचायतों में अध्यक्षों और सभासदों के पदों पर निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने नगर क्षेत्र में सरकारी जमीनों पर कब्जा किया हुआ है और अपने अधीन तमाम खरीद-फरोख्त, निर्माण कार्यों और नियुक्तियों को लेकर उन पर गंभीर आरोप लगते रहे हैं। किंतु शासन और सरकार के संरक्षण के चलते इनका बाल भी बांका नहीं होता।ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा चमोली जिले में देखने को मिला। चमोली जिले के नंदप्रयाग नगरपालिका के की अध्यक्ष किरण रौतेला द्वारा सरकारी जमीन कब्जाए जाने की तस्दीक सूचना के अधिकार में वन तथा राजस्व विभाग ने स्वयं की किंतु जब इस अवैध कब्जे को हटाए जाने के लिए कार्यवाही करने की बारी आई तो राजस्व विभाग कब्जा होने की बात से ही मुकरने करने लगा है। यहां तक कि कार्यवाही को लेकर समाधान पोर्टल पर डाली गई अपील का भी कोई निस्तारण नहीं हो पा रहा है।
उत्तराखंड के चमोली जिले की वर्तमान नगर पंचायत अध्यक्षा किरन रौतेला द्वारा 2013 में नगर पंचायत अध्यक्षा का चुनाव लड़ा गया, जिसमे उन्होंने अपने शपथ पत्र में अपने द्वारा वन पँचायत राजस्व की जमीन पर किये हुये अवैध कब्जे की जानकारी को छुपाया। लेकिन जब 20 सितंबर 2014 को वन विभाग से rti के माध्यम से श्रीमती किरन रौतेला के भूमि सम्बन्धी सूचना मांगी गई तो उन्होंने जिस भूमि पर पंचायत अध्यक्षा का कब्जा है, उसे वन पँचायत राजस्व की माना और उस पर सजा के तौर पर 3000 रु जुर्माना और कैद का प्रविधान भी बताया।
फिर rti के माध्यम से सूचना राजस्व विभाग से किरन रौतेला के पति सुरेंद्र रौतेला की जमीन सम्बन्धी मांगी गई, जिसे पहले राजस्व विभाग नन्दप्रयाग ने नकार दिया, लेकिन जब प्रथम अपील 30-01-2016 को तहसीलदार चमोली के पास की गई तो उन्होंने 12-04-2016 को सुनवाई पर निर्णय करते हुए उक्त जमीन को वन पँचायत की भूमि बताया और भूमि को अतिक्रमण की श्रेणी में बताया।
इस आधार पर नगर पंचायत अध्यक्षा के झूठे शपथ पत्र पत्र पर जब समाधान के तहत शासन को लिखा गया तो शासन ने जिलाधिकारी को जांच सौपी। जहां नायब तहसीलदार ने जांच की और नगर पंचायत नन्दप्रयाग से जांच पड़ताल करके क्लीन चिट दे दी। प्रश्न यह है कि एक तरफ राजस्व विभाग और वन विभाग कब्जे वाली भूमि को अतिक्रमण की श्रेणी मे होना बता रहा है, और अवैध कब्जे वाली बता रहा है। लेकिन दूसरी ओर शासन अपने ही विभाग को झूठा बता रहा है, और नगर पंचायत नन्दप्रयाग अवैध कब्जे की बात नकार रहा है। जबकि rti में अवैध कब्जे की बात सामने आ चुकी है। आम आदमी अगर यही काम करता तो सरकारी मशीनरी कब का उसके तम्बू बम्बू उखाड़ फेंकती। लेकिन नगर अध्यक्षा के सरकारी जमीन पर किये गए अवैध कब्जे पर शासन प्रशासन मौन और चुप्पी साधे हैं।
इतना ही नही कुर्सी पर काबिज होने के लिए किरन रौतेला ने जमीन कब्जे की बात भी निर्वाचन आयोग से छुपाई और शपथ पत्र में इसका जिक्र ही नही किया।
नियमों को ताक पर रख कर की गई नियुक्तियां।
नगर पंचायत नन्दप्रयाग में नगर पंचायत अध्यक्षा द्वारा नियमों को दरकिनार करते हुए नियुक्तियां दी गई। एक ओर हाइकोर्ट का आदेश है कि नियुक्ति के लिए विधिवत अखबारों में विज्ञापन निकाले जाए और योग्य व्यक्ति का चुनाव किया जाए, लेकिन ऐसा नही किया गया। सूचना अधिकार के तहत देहरादून निवासी यशपाल रावत द्वारा मांगी सूचना से पता चला कि नगर पंचायत में की गई नियुक्ति में अपनी मनमर्जी की गई और नियमों को ताक पर रखकर अपने चहेतों को नियुक्ति दे दी गयी। शैक्षिक योग्यता है क्या उसका भी जिक्र नही है और कितने समय के लिए नियुक्ति की गई है यह भी स्पष्ट नही है।
जबकि गेस्ट टीचर भर्ती के मामले में हाईकोर्ट ने 31 मार्च तक का समय दिया है। इस प्रकार जो नियुक्ति संविदा पर अध्यक्षा द्वारा की गई है वो अवैध हैं।एक वाहन चालक की योग्यता लाइसेंस बताई गई है। इस प्रकार के अनोखे जबाब से लगता है कि अंदरखाने भीतर ही भीतर नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर रुपयों का खेल खेला गया है। और तो और अपने दो नजदीकी रिश्तेदार को भी नियुक्ति दी गयी है, जिनमे ललिता रौतेला और मोहित नेगी हैं।