बात कुछ ही दिन पहले की है। कनखल के एक घर में जोर-शोर से रंगाई-पुताई का काम चल रहा था। बाप पुराने खयालों का था। घर में पुरानी चीजें और पुराने खयालों का अंबार लगा रहता था। नए जमाने का बेटा इस ताक में था कि कब बुढऊ इधर-उधर हो और वह कुछ पुराना सामान इधर-उधर कर दे। इधर बाप घूमने गया, उधर बेटे ने एक पुराना गद्दा कनखल के दरिद्र भंजन मंदिर के बाहर बैठे एक भिखारी को थमा दिया। गद्दा इतना पुराना था कि भिखारी ने भी बेटे की नजर फिरते ही गद्दा दूसरे भिखारी को चेप दिया।
इधर बाप घर आया तो गद्दा न पाकर बेटे का जवाब तलब कर दिया। बाप को सामान्य से कहीं अधिक आपा खोते देख बेटे ने कारण पूछा तो खुद की भी हवा सरक गई। कंजूस बाप ने गद्दे में ४० लाख छुपा कर रखे थे। अब तो बाप-बेटे दोनों उस भिखारी के साथ गली-गली दूसरे भिखारी को छान-मार रहे हैं। खाक छानते-छानते बाप-बेटे की हालत भी भिखारियों जैसे हो गई है। मामला ही ऐसा है, न पुलिस को बता सकते हैं, न सब्र कर सकते हैं। हालात यह हो गई कि क्या बाप, क्या बेटा, क्या भिखारी, तीनों अपनी-अपनी किस्मत को कोस रहे हैं।