स्थानीय निकाय चुनावों में जहां बड़े बड़े दिग्गज अपने गृहक्षेत्र में खेत रहे, वहीं दूसरी ओर प्रदेश की राज्यमंत्री रेखा आर्या ने अपने राजनैतिक कौशल का लोहा मनवाया।
रेखा आर्या इन चुनावों में काशीपुर नगर निगम चुनावों की प्रभारी थीं। मैदानी क्षेत्र की राजनीति से लगभग अंजान इस युवा नेत्री को इस जटिल राजनैतिक, धार्मिक और जातीय समीकरण वाले नगर निगम क्षेत्र की ज़िम्मेदारी देना किसी जुये से कम नहीं था।
भाजपा की मेयर प्रत्याशी उषा चौधरी पहले भी दो बार मेयर रह चुकी थीं और उनके विरुद्ध इन्कंबेंसिंग भी बहुत ज्यादा थी | भाजपा के भी कई गुट बने हुये थे | दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी मुक्ता सिंह नया चेहरा थीं, लेकिन मंजे हुये राजनैतिक परिवेश से थीं। कांग्रेस काशीपुर में भले ही कई चुनाव हार चुकी है, लेकिन आज भी उसके समर्थकों का एक बहुत मजबूत तंत्र है , ज़िसका नेतृत्व कुमाऊँ नरेश और पूर्व सांसद केसी सिंह करते आये हैं।
मुस्लिम यहां बहुत बड़ी तादाद में हैं और मेयर निर्धारित करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मुस्लिम मतदाताओं का कांग्रेस के पक्ष में ध्रुवीकरण सा हो चुका था। अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षित सीट होने के बाद भी, पिछड़ा वर्ग भाजपा से छिटका हुआ दीख रहा था और स्थानीय भाजपा नेताओं से चिढ़ा हुआ भी था।
कट्टर से कट्टर भाजपा समर्थक भी जीत का दावा नहीं कर सकता था | युवाओं का समर्थन भी कांग्रेस प्रत्याशी को था।
ऐसे में रेखा आर्या ने सबसे पहले तो भाजपा के सभी नेताओं को एक मंच पर ला खड़ा किया, उसके बाद प्रत्येक वार्ड में घूम घूमकर मतदाताओं से सीधा संवाद किया। ज़िसका असर साफ दिखायी दिया और दलित और पिछड़ा वर्ग भाजपा के पक्ष में वोट कर गया। इतना ही नहीं गढ़वाली और कुमाऊँनी वोटों में सेंधमारी कांग्रेस के लिये चौंका देने वाली थी।
उषा चौधरी 5000 से अधिक वोटों से विजयी हुई | जबकि इससे पहले के चुनाव उन्होने बागी और निर्दलीय रहते हुये कहीं ज्यादा अंतर से जीते थे। काशीपुर के आसपास की लगभग हर सीट पर भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। अरविंद पाण्डेय जैसे दिग्गज मंत्री भी अपनी सीट से विजय नहीं दिला पाये, ऐसे में एक कम अनुभवी राज्यमंत्री का अपने बूते पर खालिस मैदानी सीट पर मेयर को ज़ितवा देना, भाजपा के लिये चौंका देने वाला ही है।
रेखा आर्या इन चुनावों में काशीपुर नगर निगम चुनावों की प्रभारी थीं। मैदानी क्षेत्र की राजनीति से लगभग अंजान इस युवा नेत्री को इस जटिल राजनैतिक, धार्मिक और जातीय समीकरण वाले नगर निगम क्षेत्र की ज़िम्मेदारी देना किसी जुये से कम नहीं था।
भाजपा की मेयर प्रत्याशी उषा चौधरी पहले भी दो बार मेयर रह चुकी थीं और उनके विरुद्ध इन्कंबेंसिंग भी बहुत ज्यादा थी | भाजपा के भी कई गुट बने हुये थे | दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी मुक्ता सिंह नया चेहरा थीं, लेकिन मंजे हुये राजनैतिक परिवेश से थीं। कांग्रेस काशीपुर में भले ही कई चुनाव हार चुकी है, लेकिन आज भी उसके समर्थकों का एक बहुत मजबूत तंत्र है , ज़िसका नेतृत्व कुमाऊँ नरेश और पूर्व सांसद केसी सिंह करते आये हैं।
मुस्लिम यहां बहुत बड़ी तादाद में हैं और मेयर निर्धारित करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मुस्लिम मतदाताओं का कांग्रेस के पक्ष में ध्रुवीकरण सा हो चुका था। अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षित सीट होने के बाद भी, पिछड़ा वर्ग भाजपा से छिटका हुआ दीख रहा था और स्थानीय भाजपा नेताओं से चिढ़ा हुआ भी था।
कट्टर से कट्टर भाजपा समर्थक भी जीत का दावा नहीं कर सकता था | युवाओं का समर्थन भी कांग्रेस प्रत्याशी को था।
ऐसे में रेखा आर्या ने सबसे पहले तो भाजपा के सभी नेताओं को एक मंच पर ला खड़ा किया, उसके बाद प्रत्येक वार्ड में घूम घूमकर मतदाताओं से सीधा संवाद किया। ज़िसका असर साफ दिखायी दिया और दलित और पिछड़ा वर्ग भाजपा के पक्ष में वोट कर गया। इतना ही नहीं गढ़वाली और कुमाऊँनी वोटों में सेंधमारी कांग्रेस के लिये चौंका देने वाली थी।
उषा चौधरी 5000 से अधिक वोटों से विजयी हुई | जबकि इससे पहले के चुनाव उन्होने बागी और निर्दलीय रहते हुये कहीं ज्यादा अंतर से जीते थे। काशीपुर के आसपास की लगभग हर सीट पर भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। अरविंद पाण्डेय जैसे दिग्गज मंत्री भी अपनी सीट से विजय नहीं दिला पाये, ऐसे में एक कम अनुभवी राज्यमंत्री का अपने बूते पर खालिस मैदानी सीट पर मेयर को ज़ितवा देना, भाजपा के लिये चौंका देने वाला ही है।