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यहां दस से कम छात्र-छात्राएं पढ़ाने को डटे हुए हैं दो-दो, तीन-तीन टीचर

August 3, 2018
in पर्वतजन
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मामचन्द शाह
प्रदेशभर में सैकड़ों स्कूल छात्र न होने के कारण आज बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं। कई ऐसे स्कूल भी हैं, जिनको बंद करने के लिए विभाग की ओर से पत्र भेज दिया गया है, बावजूद इसके वे स्कूल फिर भी संचालित हो रहे हैं। 10 से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों में दो या तीन टीचर तैनात हैं।
प्रदेश में सैकड़ों स्कूल ऐसे हैं, जहां छात्र अध्यापकों के लिए तरस रहे हैं, वहीं ऐसे अनगिनत स्कूलों की सूची पर्वतजन के पास उपलब्ध है, जहां १० से कम छात्र संख्या होने के बावजूद वहां एक से अधिक दो या फिर तीन टीचर डटे हुए हैं।
इस संवाददाता ने जब शिक्षा विभाग से आरटीआई मांगी तो काफी चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। सूचना में जहां-जहां १० छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर रहे हैं, उन स्कूलों में दो-दो या इससे ज्यादा टीचर तैनात होने की जानकारी मिली है। यही नहीं कई ऐसे स्कूल भी प्रकाश में आए हैं, जिनके लिए विभाग ने बंद करने के लिए पत्र भेज दिया था, लेकिन वे फिर भी संचालित किए जा रहे हैं।
उदाहरण के लिए पौड़ी जनपद पर नजर डालते हैं। यहां कल्जीखाल ब्लॉक के कठूड़ स्कूल में मात्र एक छात्र पढ़ता है, जबकि इस स्कूल में दो अध्यापक सेवाएं दे रहे हैं। इसी तरह भेंटुली व टीर  प्राथमिक स्कूलों में कुल दो बच्चे पढ़ते हैं, जबकि वहां दो-दो टीचर तैनात हैं। कल्जीखाल ब्लॉक में ऐसे ३६ प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक स्कूल हंै, जहां १० से लेकर एक छात्र-छात्राएं अध्ययन कर रही हैं और उनके लिए एक से अधिक दो या तीन टीचर तैनात हैं।
खिर्सू ब्लॉक के राजकीय प्राथमिक विद्यालय नवाखाल में मात्र 3 छात्र पढ़ते हैं और यहां दो शिक्षक तैनात हैं। इस ब्लॉक में १८ प्राथमिक विद्यालय और ६ पूर्व माध्यमिक विद्यालय हैं, जहां १० से कम छात्र-छात्राओं के लिए एक से अधिक टीचर तैनात हैं।
नैनीडांडा विकासखंड के रा.प्रा.वि. बराथ में कुल ३ बच्चों को पढ़ाने के लिए २ शिक्षकों की ड्यूटी लगी है। नैनीडांडा ब्लॉक में ऐसे २८ प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक स्कूल हैं, जहां १० से कम छात्र-छात्राएं अध्ययन करते हैं।
विकासखंड पौड़ी के उप शिक्षा अधिकारी (प्रा.शि.) ने जो सूचना उपलब्ध कराई है, उसके मुताबिक पौड़ी ब्लॉक में कुल ८ प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक स्कूलों का जिक्र किया गया है, जहां १० से कम छात्र-छात्राएं पढ़ रहे हैं और वहां एक से अधिक टीचर हैं, लेकिन लोक सूचना अधिकारी ने  यह उल्लेख नहीं किया कि यहां कितने-कितने छात्रों पर कितने-कितने शिक्षक तैनात हैं।
जयहरीखाल विकासखंड में ऐसे ५८ प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक स्कूल हैं, जहां १० से कम छात्र-छात्राएं हैं और उनके लिए एक से अधिक शिक्षक तैनात हैं। यहां प्राथमिक स्कूल मंथला में मात्र ३ छात्र पढ़ते हैं, जबकि वहां दो शिक्षक ड्यूटी कर रहे हैं। इसके अलावा रा.उ.प्रा.वि. मैंदोली में मात्र २ बच्चे ही पढ़ाई कर रहे हैं, जबकि यहां ४ शिक्षक सेवाएं दे रहे हैं।
पाबौं ब्लॉक का राजकीय प्राथमिक विद्यालय भट्टीगांव को बंद करने के लिए तो शिक्षा विभाग ने पत्र तक भेजा था, बावजूद इसके वह संचालित किया जा रहा है। पाबौं में कुल १८ प्राथमिक व जूनियर स्कूल हैं, जहां १० से कम छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं और इतने छात्रों के लिए एक से अधिक दो, तीन, चार एवं पांच शिक्षक तैनात हैं। यहां प्राथमिक विद्यालय कालौं एवं नाई स्कूल में मात्र 4-4 छात्र पढ़ते हैं और इन दोनों स्कूलों में भी दो-दो शिक्षक तैनात हैं।
बीरोंखाल ब्लॉक  में ३० ऐसे प्राथमिक विद्यालय हैं, जहां १० से कम बच्चों पर दो-दो अध्यापक तैनात हैं। इसके अलावा पांच उ.प्रा.वि. भी हैं, जहां  १० से कम बच्चे अध्ययन करते हैं और उनके लिए दो-दो शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई है। हालांकि यह बात अलग है कि लोक सूचना अधिकारी/उप शिक्षा अधिकारी (बेसिक) बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल ने सूचना में यह जानकारी अदृश्य कर दी कि उक्त स्कूलों में कितने छात्रों पर दो टीचर तैनात हैं। इसके पीछे ऐसा प्रतीत होता है कि इनमें से अधिकांश स्कूलों में एक या दो-दो छात्र-छात्राएं हो सकती हैं।
उपरोक्त आंकड़ों को देखकर ऐसा लगता है कि १० से कम छात्र-छात्राओं वाले स्कूलों में दो-तीन मास्साबों की तैनाती दर्शाती है कि ये साहब सेटिंग-गेटिंग के खेल में भी महारथ रखते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षकों की मार झेल रहे स्कूलों में इन शिक्षकों को भेज दिया जाता।
हालांकि एक अपवाद यह भी है कि कल्जीखाल ब्लॉक में राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय जसपुर कोलडी में सिर्फ एक छात्र पढ़ता है और उसे पढ़ाने के लिए वहां सिर्फ एक ही टीचर तैनात है।
उत्तराखंड सरकार और शिक्षा विभाग की तमाम कोशिशों के बावजूद सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या नहीं बढ़़ाई जा सकी है। ऐसे में निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का लक्ष्य हासिल करना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है।
सरकार द्वारा छात्रों के लिए निशुल्क पाठ्य पुस्तकें, स्कूल वेशभूषा, भोजन, वजीफा, फीस  आदि की व्यवस्था भी की जाती है। इसके अलावा शिक्षा पर भारी-भरकम बजट खर्च करने, अच्छा वेतन, प्रशिक्षित और योग्य अध्यापकों के बावजूद भी राजकीय स्कूलों में छात्र-छात्राओं की संख्या में लगातार गिरवाट आना सरकार के माथे में बल डाल रहा है। सरकार और शिक्षा विभाग इस बात का पता लगाने में अभी तक नाकाम रहा है कि इन तमाम सुविधाओं के बावजूद सरकारी स्कूलों से बच्चों का रुखसत आखिर क्यों हो रहा है।
इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता बेहद निम्न स्तर की है।
बाल अधिकार संरक्षण आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष योगेंद्र खंडूड़ी ने अप्रैल २०१८ में बच्चों के अधिकारों को लेकर उत्तराखंड की शिक्षा स्थिति पर गंभीर चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि राज्य के मैदानी तथा पहाड़ी जिलों में शिक्षा के स्तर पर काफी असंतुलन है।
एनसीईआरटी आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड जैसे पर्वतीय प्रदेश के 26 प्रतिशत बच्चे देश की राजधानी तक का नाम नहीं जानते, जबकि २१ प्रतिशत बच्चे अपने राज्य का ही नाम नहीं जानते। १४ प्रतिशत बच्चे देश का नक्शा तक नहीं समझ पाते हैं। यही नहीं ४० प्रतिशत बच्चेे ऐसे हैं, जो घड़ी देखकर समय तक नहीं बता पाते हैं। कक्षा 5 में 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे अपनी मात्रभाषा को भी ठीक तरह से लिख-पढ़ नहीं सकते। ये आंकड़े  प्रदेश के लिए बेहद निराशाजनक हंै।
यही कारण है कि हकीकत को भांपकर सरकारी स्कूलों में केवल गरीब और असमर्थ ग्रामीणों के बच्चे ही मजबूरी में पढ़ रहे हैं। समर्थ लोग या तो अपने इलाकों से पलायन कर गए हैं या फिर अपने नजदीकी क्षेत्रों में ही अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य को ध्यान में रखते हुए उन्हें निजी स्कूलों में पढ़ाने को प्राथमिकता दे रहे हैं।
यही कारण है कि प्रदेशभर में आज दर्जनों स्कूलों में ताले पड़ चुके हैं। इसके अलावा कुछ स्कूल चल भी रहे हैं तो वहां महज 10 या इससे कम छात्र संख्या ही रह गई है। ऐसे में ये स्कूल भी कब बंद हो जाएंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता।
सरकारी स्कूलों में शिक्षा के गिरते स्तर के लिए  जिम्मेदारी एक बड़ी वजह यह भी मानी जा रही है कि इन स्कूलों में सरकारी कर्मचारियों या अधिकारियों के बच्चे नहीं पढ़ते हैं। ऐसे में शिक्षकों को भी किसी का खौफ नहीं रह जाता और वे मनमर्जी से स्कूल का संचालन करते हैं। ऐसी अराजकताओं से अभिभावक अपने बच्चों को किसी अन्यत्र निजी स्कूलों में एडमिशन कराने को विवश हो जाते हैं।
बिन पानी के शौचालयों से क्या लाभ
पौड़ी जनपद के नैनीडांडा विकासखंड में अभी भी कई स्कूल पानी की मार झेल रहे हैं। छात्र पीने का पानी भी अपने साथ घरों से बोतलों में लाते हैं।  राजकीय प्राथमिक विद्यालय चैड़, रा.प्रा.वि. डांडातोली, रा.प्रा.वि. बसेड़ी, रा.प्रा.वि. पंजारा, रा.प्रा.वि. डंडवाड़ी, रा.प्रा.वि. नैनीडांडा एवं राजकीय प्राथमिक विद्यालय शंकरपुर जैसे ऐसे दर्जनों स्कूल हैं, जहां बच्चे पेयजल को तरस रहे हैं।
इससे भी हैरानी की बात यह है  कि इन पेयजलविहीन स्कूलों में शौचालय बना दिए गए हैं, लेकिन बिना पानी का उनका कोई इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। इस तरह से वे सफेद हाथी साबित हो रहे हैं।
वीरोंखाल विकासखंड में १४ स्कूल ऐसे हैं, जहां न तो पेयजल है और न ही शौचालय। ऐसे में एक ओर जहां स्कूल के छात्र-छात्राओं को शौचालय के लिए भी जंगल में जाना पड़ता है, वहीं पीने के पानी के लिए भी बच्चों को तरसना पड़ता है।
जाहिर है कि शिक्षा विभाग ने भी अपने स्कूलों में शौचालय बनाकर संसाधनों की इतिश्री कर दी, लेकिन विभाग यह भूल गया कि अगर बुनियादी सुविधा के रूप में इन विद्यालयों में सर्वप्रथम पेयजल ही उपलब्ध नहीं होगा तो फिर शौचालय बनाने पर किए गए लाखों रुपए तो पानी में बहाना जैसा ही माना जाएगा।
आइए थोड़ा इससे इतर भी गौर फरमाते हैं। अभी हाल ही में उत्तराखंड सरकार द्वारा सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के माध्यम से प्रकाशित स्मारिका में बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा गया है कि उत्तराखंड ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त प्रदेश) बन गया है, लेकिन प्रदेश सरकार की कथनी के उपरांत अत्यंत विचारणीय प्रश्न यह है कि जब तक स्कूलों में पानी की व्यवस्था ही नहीं होगी तो क्या ऐसे स्कूलों बने शौचालयों का उपयोग हो सकेगा? और यदि ऐसे शौचालयों का उपयोग ही नहीं होगा तो फिर जाहिर है कि वहां के छात्र-छात्राओं सहित स्कूल स्टाफ भी खुले में ही शौच करने को मजबूर होगा। ऐसे में प्रदेश सरकार के ओडीएफ प्रदेश वाले दावे की पोल  खुल जाती है।
प्रतिमाह लाखों का खर्चा
सम्मानजनक नौकरी के साथ-साथ शिक्षकों की तनख्वाह भी अच्छी खासी है। एक प्राइमरी स्कूल के सहायक अध्यापक की तनख्वाह प्रतिमाह लगभग ४५ हजार और हेडमास्टर की ५० हजार रुपए होती है। यही कारण है कि अन्य विभागीय कर्मचारी भी शिक्षकों के वेतन-भत्तों का लोहा मानते हैं। इसके अलावा शिक्षा विभाग एक ऐसा विभाग है, जहां आठ घंटे से कम का ड्यूटी टाइम होता है और सर्वाधिक छुट्टियां होती हैं।
उदाहरण के लिए यदि किसी स्कूल में एक ही छात्र पढ़ता है और वहां दो शिक्षक तैनात हैं। इसके अलावा दो भोजनमाता भी तैनात होंगी तो वहां का मासिक खर्च करीब एक लाख रुपए प्रतिमाह आएगा। इसके विपरीत यदि किसी स्कूल में ३० छात्र-छात्राएं होंगी और दो टीचर एवं दो भोजनमाता होंगी तो वहां का खर्च भी भोजन मद में ही थोड़ा सा मामूली अंतर से अधिक आएगा।

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