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राजनीतिक शब्दजाल में फंसी उत्तराखंड की राजधानी

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राज्य के लिए एक अस्थाई राजधानी का सवाल राजनीतिज्ञों ने पहाड़ी और मैदानी मतदाताओं की नाराजगी के डर से अपने राजनीतिक शब्द जालों में फंसाकर रख दिया।

जयसिंह रावत

किसी शायर ने ठीक ही कहा है कि ”जब कोई मेरी आखरी ख्वाहिश पूछता है, तो नाम उसका जुबान पर आते-आते रुक जाता है।ÓÓ यह नाम किसी और का नहीं बल्कि उत्तराखण्ड की राजधानी का ही हो सकता है जो कि मुख्यमंत्री हरीश रावत की जुबां पे आते-आते ठिठक जाता है। हरीश रावत ही क्यों?
उत्तराखण्ड की सत्ता की प्रबल दावेदार भारतीय जनता पार्टी की जुबां से तो वह नाम वापस हलक में विलीन हो जाता है। इस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के दृष्टि या संकल्प पत्रों को देख कर प्रदेश की राजधानी का मामला अगले पांच साल में भी सुलझता नजर नहीं आ रहा है।
उत्तराखण्ड विधानसभा के चौथे चुनाव में भी राज्य की स्थाई राजधानी का मामला प्रमुख राजनीतिक दलों के शब्दजाल में उलझ कर रह गया है। जो भाजपा तीसरी विधानसभा में गैरसैण को प्रदेश की स्थाई राजधानी बनाने का संकल्प लाने की बात कर रही थी उसके विजन डॉक्यूमेंट में गैरसैण को स्थाई राजधानी बनाना तो रहा दूर उसे ग्रीष्मकालीन राजधानी का दर्जा देने पर भी विचार करने का संकल्प प्रकट किया गया है। मतलब यह कि गैरसैंण के भराड़ीसैण में राजधानी का जैसा ढंाचा खड़ा करने पर जो एक अरब से अधिक की धनराशि खर्च हो चुकी है वह भी भाजपा का दृष्टिपत्र बनाने वालों को दृष्टिगोचर नहीं हुयी। भाजपा के दृष्टिपत्र में दिये गये 148 संकल्पों में से सबसे अंतिम 148वें संकल्प में कहा गया है कि, ”गैरसैंण को राजधानी स्तर की अवस्थापना सुविधाओं से सुसज्जित कर सबकी सहमति से ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने पर विचार किया जायेगा। स्थाई राजधानी हेतु विभिन्न विकल्पों पर शीर्ष निर्वाचित संस्था, विधानसभा में विचार किया जायेगा।ÓÓ यह वही भाजपा है जिसने गत वर्ष जून में भराड़ीसैण में नवनिर्मित विधानभवन में आयोजित सत्र में गैरसैण को लेकर सत्ताधारी कांग्रेस की अस्पष्ट नीति को लेकर भारी बवाल किया था। भाजपा ने कहा था कि उसके सत्ता में आते ही गैरसैण को स्थाई राजधानी घोषित कर दिया जायेगा।
देखा जाय तो सत्ताधारी

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कांग्रेस स्थाई राजधानी के मामले को शब्दजाल में सबसे अधिक फंसा रही है। उसने भराड़ीसैण में विधानसभा भवन बना दिया।
वहां विधायक निवास भी बन कर तैयार हो गये और अब सचिवालय का निर्माण चल रहा है। एक तरह से वहां राजधानी का ढांचा उभर कर सामने आने लगा है, मगर कांग्रेस उस नवजात का नामकरण करने से कतरा रही है।
गैरसैंण के भराड़ीसैण में बहुत कुछ हो रहा है वहां राजधानी ही बन रही है मगर कांग्रेस उसे ग्रीष्मकालीन या स्थाई राजधानी कहने में ठिठक रही है। कांग्रेस ने अपने संकल्प पत्र में गैरसैण को राज्यवासियों की आस्था का प्रतीक बता कर ÓÓशहीदों के सपनों के अनुरूपÓÓ गैरसैण का विकास राज्य की राजधानी क्षेत्र की तर्ज पर करने का संकल्प तो व्यक्त कर दिया मगर उसे प्रदेश की भावी राजधानी या ग्रीष्मकालीन राजधानी वाली बात वापस अपने हलक में डाल दी। कांग्रेस ने संकल्पपत्र में गैरसैण में किये जा रहे राजधानी अवस्थापना के कार्यों का विवरण देने के साथ ही कहा है कि गैरसैण को प्रदेश के सभी प्रमुख नगरों से जोडऩे का काम अगले दो वर्षों में पूरा हो जायेगा। वहां नियमित रूप से विधानसभा सत्रों का आयोजन होगा तथा वहां मुख्यमंत्री कार्यालय की स्थापना कर वहां मुख्यमंत्री महीने में कम से कम एक सप्ताह बैठ कर राजकीय कार्य करेंगे। यही नहीं कांग्रेस ने कुछ प्रमुख निदेशालय गैरसैण शिफ्ट करने का वायदा भी किया है।
चमोली गढ़वाल के गैरसैण में विधानसभा के लगातार तीन सत्र आयोजित हो चुके हैं। भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी 18 मई 2015 को उत्तराखंड विधानसभा में अपने ऐतिहासिक भाषण में गैरसैण को प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी बता चुके हैं।यह सही है कि गैरसैंण के मामले में कांग्रेस सरकार और खासकर हरीश रावत ने कुछ हिम्मत तो जरूर जुटाई है, मगर वह उसे ग्रीष्मकालीन या स्थाई राजधानी घोषित करने की हिम्मत नहीं जुटा पाये। कांग्रेस सरकार के संकोच का एक कारण यह भी हो सकता है कि गैरसैण को स्थाई राजधानी घोषित करना अगर इतना आसान होता तो भाजपा इस मुद्दे को कांग्रेस से कबके छीन चुकी होती। अगर उसे केवल ग्रीष्मकालीन राजधानी भी घोषित किया जाता है तो इसका मतलब वहां स्थाई राजधानी बनाने की मांग को खारिज करना ही होता है, जिसका भारी विरोध होने की संभावना भी है।
वैसे भी राजधानी के चयन के लिये गठित दीक्षित आयोग ने तो 2 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद जो रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी उसमें गैरसैण को सीधे-सीधे ही रिजेक्ट कर दिया था। दीक्षित आयोग ने गैरसैण के साथ ही रामनगर तथा आइडीपीएल ऋषिकेश को द्वितीय चरण के अध्ययन के दौरान ही विचारण से बाहर कर दिया था और उसके बाद आयोग का ध्यान केवल देहरादून और काशीपुर पर केन्द्रित हो गया था।
आयोग ने मानकों की वरीयता के आधार पर गैरसैंण को केवल 5 नम्बर और देहरादून को 18 नंबर दिये थे। यही नहीं आयोग ने देहरादून के नथुवावाला-बालावाला स्थल के पक्ष में 21 तथ्य और विपक्ष में केवल दो तथ्य बताये थे, जबकि गैरसैण के पक्ष में 4 और विपक्ष में 17 तथ्य गिनाये गये थे। फिर भी आयोग ने जनमत को गैरसैण के पक्ष में और देहरादून के विपक्ष में बताया था।
सन् 2002 में जब उत्तराखंड विधानसभा का पहला चुनाव हुआ था तो उस समय 40 सीटें पहाड़ से और 30 सीटें मैदान से थीं।
इसलिये सत्ता का संतुलन पहाड़ के पक्ष में होने के कारण पहाड़ी जनभावनाओं के अनुरूप गैरसैण को भी देहरादून से अधिक जनमत हासिल था। यह जनमत उसी दौरान आयोग द्वारा एकत्र किया गया था। सन् 2006 में हुए नये परिसीमन के तहत पहाड़ की 40 सीटों में से 6 सीटें जनसंख्या के पलायन के कारण घट गयीं और मैदान की 30 सीटें बढ़ कर 36 हो गयीं, जबकि पहाड़ में 10 जिले हैं और मैदान में देहरादून समेत केवल 3 ही जिले हैं और इन तीन जिलों में ही उत्तराखण्ड की राजनीतिक ताकत सिमटती जा रही है।

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अगर यही हाल रहा तो सन् 2026 के परिसीमन में पहाड़ में 27 और मैदान में 43 सीटें हो जायेंगी। पहाड़ से वोटर ही नहीं बल्कि नेता भी पलायन कर रहे हैं। राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्री चुनाव लडऩे मैदान में आ गये हैं।
यकीनन मैदानी वोटरों के रूठने के डर से भी प्रमुख दलों के राजनीतिक नेता खुलकर गैरसैण की तरफदारी करने से कतरा रहे हैं।
गैरसैण के भराड़ीसैंण में अघोषित ग्रीष्मकालीन राजधानी का आधारभूत ढांचा खड़ा किये जाने की शुरूआत के साथ ही वहां एक नये पहाड़ी नगर की आधारशिला भी पड़़ गयी है।
सत्ता के इस वैकल्पिक केन्द्र में स्वत: ही नामी स्कूल और बड़े अस्पताल आदि जनसंख्या को आकर्षित करने वाले प्रतिष्ठान जुटने लग जायेंगे। अगर पहाड़ी नगर शिमला और मसूरी में देश के नामी स्कूल खुल सकते हैं तो फिर नयनाभिराम भराड़ीसैण में क्यों नहीं।
सत्ता ऐसी मोहिनी है कि निवेशक खुद ही गैरसैंण की ओर खिंच आयेंगे। लोगों का मानना है कि गैरसैण में ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने से प्रदेश की राजनीतिक संस्कृति में बदलाव आयेगा और उसमें पहाड़ीपन झलकने लगेगा। पहाड़ का जो धन मैदान की ओर आ रहा है, वह वहीं स्थानीय आर्थिकी का हिस्सा बनेगा।

सत्ता के इस वैकल्पिक केन्द्र में स्वत: ही नामी स्कूल और बड़े अस्पताल आदि जनसंख्या को आकर्षित करने वाले प्रतिष्ठान जुटने लग जायेंगे। अगर पहाड़ी नगर शिमला और मसूरी में देश के नामी स्कूल खुल सकते हैं तो फिर नयनाभिराम भराड़ीसैण में क्यों नहीं।

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