कुलदीप एस. राणा//
अन्ततः बहुप्रतीक्षित उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय देहरादून की अपूर्ण और विवादित कार्य समिति की बैठक प्राभारी कुलपति के मात्र 03 दिन बचे हुए कार्यकाल के पूर्व उन्ही की अध्यक्षता में नीतिगत निर्णयो को लेने हेतु हुई प्रारंभ, कार्य समिति के सदस्यों का विश्वविद्यालय के परास्नातक, शोधार्थी, एवं BAMS पाठ्यक्रम के छात्र/छात्राओं और उपनल के माध्यम से कार्यरत कर्मियों द्वारा अपनी विभिन्न प्रकार के मागों और विश्वविद्यालय प्रशासन के अनियमित कार्यप्रणाली के विरूध्द हुआ घेराव, पीड़ित छात्रों का आंदोलन जारी, अपनी मांगों को आज ही पूर्ण कराने के उपरांत ही आंदोलन को समाप्त करने पर अड़े।
आनन फानन में मात्र रस्मअदायगी के लिए छात्र छात्राओं के स्टाइपेंड मसलो के निदान करने की आड़ में बुलाई गई उक्त समिति की बैठक में कार्यसमिति के प्रमुख सदस्यों में आयूष विभाग भारत सरकार, केंद्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद, एवं केंद्रीय होमियोपैथिक परिषद नईदिल्ली का कोई भी सदस्य नही पहुचा, इसके अतिरिक्त माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल का तो अभी तक कोई सदस्य मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित ही नहीं हुआ है, इसके बावजूद भी आनन फानन में अपूर्ण समिति की छात्र हित में लिए जाने वाले आवश्यक निर्णय की आड़ में विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा अन्य विवादित निर्णयो को पास कराने की हो रही है साजिश।
छात्रों के समस्याओं के निदान की आड़ में विश्वविद्यालय प्रशासन सम्बध्द परिसरों को निजीकरण की तरफ अग्रसर करते हुए छात्रावासो, चिकित्सालय, अतिथिगृहों को PP मोड पर देने तथा विभिन्न विभागों के 262 पदों पर होने वाली नियुक्तियों जैसे नीतिगत प्रस्तावों को पास कराने को दे रहा है प्राथमिकता जो कि अपूर्ण एवं विवादित समिति, अधिकतर प्रमुख सदस्यों की अनुपस्थिति, कार्यबाहक कुलपति का महज तीन दिन का बचा हुआ कार्यकाल के कारण ऐसा नीतिगत निर्णय लेना विधायी परम्पराओ और नियमानुसार है अवैध।