विनोद कोठियाल
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री बनने के कुछ दिन बाद ऐलान किया कि उत्तराखंड में पलायन रोकने और उत्तराखंड के लोगों को स्वरोजगार से जोडऩे के लिए अब पांच करोड़ रुपए तक के काम स्थानीय स्तर पर स्थानीय लोगों को दिए जाएंगे।
त्रिवेद्र सिंह रावत के इस ऐलान को तब मीडिया में जोरदार समर्थन मिला कि वास्तव में पलायन रोकने के लिए यह एक कारगर उपाय है।
मुख्यमंत्री के ऐलान के महीनों बीत जाने के बाद पहली बार हर वर्ग के ठेकेदार परेशान हैं। जगह-जगह धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। इस संदर्भ में ठेकेदार संघ के लोगों ने पिछले दिनों सरकार में मंत्री धन सिंह रावत और हरक सिंह रावत से मुलाकात की और उन्हें याद दिलाया कि उनके द्वारा किए गए वायदे धरातल पर नहीं उतर रहे हैं।
काबीना मंत्री हरक सिंह रावत तीन अलग-अलग स्थानों पर ठेकेदारों के धरने प्रदर्शन आश्वासन देकर समाप्त करा चुके हैं। अब धन सिंह रावत का कहना है कि शीघ्र ही इस पर निर्णायक फैसला कराकर ठेकेदारों को राहत दी जाएगी।
इन सबसे इतर उत्तराखंड के लोग इस बात को लेकर हैरान हैं कि मुख्यमंत्री के आदेश पर चली फाइल आखिरकार शासनादेश तक क्यों नहीं पहुंची। आखिरकार ऐसे क्या हालात पैदा हो गए कि मुख्यमंत्री के आदेश की फाइल को ही जलेबी की तरह घुमा दिया गया।
एक ओर मुख्यमंत्री का आदेश और दूसरी ओर सचिव मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा फाइल दबाने की बातें सामने आना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है कि भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टोलरेंस वाली सरकार मे मुख्यमंत्री कार्यालय कैसे मुख्यमंत्री के आदेश को दबाने में लगा है।
विगत दिनों विकासनगर के विधायक मुन्ना सिंह चौहान भी इस बात पर मुखर दिखाई दिए कि बड़े-बड़े काम देने से उत्तराखंड के लोग बेरोजगार हो रहे हैं, जबकि कामों को तोड़कर दिया जा सकता था। इस बीच उत्तराखंड से बाहर के ठेकेदारों को प्रदेशभर में करोड़ों रुपए के काम विभिन्न विभागों में बांटे जाने की पुष्टि हुई है, जो जीरो टोलरेंस की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है।
रोजगार के अभाव में पलायन की मार झेल रही पहाड़ की जनता को डबल इंजन सरकार से उम्मीद थी कि पहले से अधिक रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और पलायन पर ब्रेक लगेगा, किंतु ऐसा नहीं हो पाया। इसके लिए सरकार की गलत नीतियों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। अभी हाल ही में पूरे प्रदेश के ठेकेदारों ने लामबंद होकर हड़ताल की। मुख्यमंत्री आवास का घेराव भी किया, किंतु परिणाम कुछ खास नहीं निकला।
ठेकेदारों का कहना था कि अगर सरकार रोजगार दे नहीं पा रही है तो कम से कम छीनने का काम तो न करे। पहाड़ में ठेकेदारी ही एकमात्र रोजगार का साधन है, परंतु सरकार ने एक कार्य का एक टेंडर का जीओ जारी कर पूरे पहाड़ पर रोजगार छीनने का काम किया है। पहाड़ के छोटे कांट्रेक्टरों द्वारा आरोप लगाया जा रहा है कि बड़े ठेकेदारों और प्रदेश से बाहर के लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए इस प्रकार के आदेश जारी किए जा रहे हैं, क्योंकि स्थानीय स्तर पर व्यक्ति छोटे कार्य ही कर सकता है। बड़े कार्यों के लिए छोटे और स्थानीय लोगों के पास इतना धन और संसाधन नहीं होते। एक कार्य का एक टेंडर की प्रणाली से छोटे लोगों का कार्य छिन गया। काफी विरोध और वार्तालाप के बाद सरकार पर जब दबाव पड़ता दिखा तो कुछ जूं सरकार के कान में रेंगे।
पहाड़वासियों की बात को बुलंद करने के लिए केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने भी सरकार को इस संबंध में पत्र लिखा। राजनैतिक नफा-नुकसान का अंदाजा होने पर शासन ने ठेकेदारों की मांगों को माना और कम से कम आधा किमी. के कार्यों का टेंडर करने का आदेश पीडब्ल्यूडी सचिव ओमप्रकाश द्वारा जारी किया गया, किंतु ठेकेदार एसोसिएशन के अनुसार यह आदेश ‘आसमान से छूटा खजूर पर अटका’ जैसी कहावत से कम नहीं है, क्योंकि ठेकेदार पहलेकी व्यवस्था को बहाल चाहते हैं, जिसके अनुसार स्थानीय लोगों को वरीयता के आधार पर कार्य आवंटित होते थे, किंतु अब छोटे से कार्य भी टेंडर के माध्यम से करवाए जाते हैं। जब निविदाएं ओपन होती हैं तो बाह्य व्यक्ति कम दरों पर कार्यों को हथियाते थें, जिसका असर गुणवत्ता पर पड़ता है और स्थानीय लोगों का भी हक छिन जाता है।
इस तरह के तमाम उदाहरण ऐसे हैं कि बाहरी व्यक्तियों द्वारा बड़े-बड़े काम लिए गए हैं, वह भी कम रेट पर और कार्य भी नहीं कर पा रहे हैं। स्थानीय व्यक्ति बेचारे यह सब तमाशा देखते रहते हैं।
नरेंद्रनगर की एक सड़क नरेंद्रनगर से रानीपोखरी की सड़क का कार्य ई-टेंडरिंग के माध्यम से मुजफ्फरनगर के एक व्यक्ति को मिल तो गया, किंतु उनके काम की चाल इतनी ढीली है कि स्थानीय जनता उससे काफी परेशान है, क्योंकि बाहर के ठेकेदारों को स्थानीय जनता की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं होता।
शासन में बैठे अधिकारी इस समस्या का समाधान करने की बजाय मुद्दे को भटकाने के जोड़-तोड़ में ही लगे हैं, जबकि इसी मुद्दे पर काबीना मंत्री डा. हरक सिंह रावत और विधायक मुन्ना चौहान द्वारा ठेकेदारों को आश्वासन दिया था और इनकी पैरवी सरकार से भी की, किंतु बाहरी व्यक्तियों के समर्थक सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।