हमेशा ही विवादों में रहने वाला गोविंद बल्लभ पंत इंजीनियरिंग कॉलेज घुड़दौड़ी एक बार फिर से संस्थान में रिक्त 62 शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति को लेकर चर्चा में है। संस्थान में विगत 1 वर्ष से स्थाई निदेशक नहीं है। जून 2018 में स्थाई निदेशक की नियुक्ति हेतु विज्ञप्ति जारी की गई थी। आवेदकों द्वारा उक्त पद हेतु आवेदन पत्र प्रेषित किए जाने के बावजूद शासन के तकनीकी शिक्षा विभाग द्वारा अब तक स्थाई निदेशक की नियुक्ति न करते हुए संस्थान के जूनियर मोस्ट प्रोफेसर डॉ एमपीएस चौहान, जिनकी सेवानिवृत्ति को महज 1 वर्ष का समय रह गया है एवं उनकी पुत्री ईशु चौहान भी असिस्टेंट प्रोफेसर के पद हेतु उम्मीदवार है, उनको संस्थान का प्रभारी निदेशक का प्रभार सौंपते हुए उन के माध्यम से उक्त पदों की नियुक्ति में करोड़ों रुपए की डील करते हुए अपने चहेतों को स्थाई नियुक्ति प्रदान किए जाने की कार्यवाही आनन-फानन में प्राथमिकता के आधार पर संपन्न करवाई जा रही है।
आज इन नियुक्तियों के लिए इंटरव्यू रखे गए हैं।
पहला सवाल यह है कि एक अस्थाई निदेशक कैसे स्थाई शिक्षकों की नियुक्तियां करा सकता है ! यह अवैध है।
जब उत्तराखंड शासन के मानव संसाधन विकास विभाग के शासनादेश (संख्या 420(1) प्रा. शि.2003 दिनांक 27 सितंबर 2003)
मे स्पष्ट व्यवस्था दी गई है कि “संस्थान में रिक्त शिक्षकों के पदों पर चयन संस्थान में स्थाई प्रधानाचार्य निदेशक की नियुक्ति के उपरांत ही किया जाए।”
संस्थान में रिक्त 32 असिस्टेंट प्रोफेसर 18 एसोसिएट प्रोफेसर एवं 10 प्रोफेसरों के पदों हेतु दिनांक 12 सितंबर 2018 में प्रकाशित विज्ञप्ति के आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसरों की लिखित परीक्षा साक्षात्कार की कार्यवाही दिनांक 3 फरवरी 2019 से 6 फरवरी 2019 तक संपन्न करवाई जा रही है। जबकि उक्त पदों के सापेक्ष संस्थान आठ 10 वर्षों से अनुबंध के आधार पर कार्यरत हैं।
दूसरा सवाल यह है कि 10 वर्षों से कार्यरत इन शिक्षकों का क्या होगा ! क्या इन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा !
इस पूरी भर्ती प्रक्रिया में यूजीसी एवं एआईसीटीई के नियमों की अनदेखी करते हुए अपने स्तर से मनमाफिक बदलाव कर लिखित परीक्षा का सिलेबस तैयार कर उनकी आवेदकों को लिखित परीक्षा में साक्षात्कार हेतु चयनित करने का प्रयास किया जा रहा है, जिनसे पूर्व में ही सेटिंग हो चुकी है।
तीसरा सवाल यह है कि यूजीसी और एआईसीसी के नियमों को बदलकर क्यों सिलेबस तैयार किया गया है !
उल्लेखनीय है कि किसी भी पद की विज्ञप्ति के साथ ही उस पद की परीक्षा का सिलेबस भी जारी किया जाता है। उदाहरण के तौर पर लोक सेवा आयोग द्वारा जारी पॉलिटेक्निक पदों की विज्ञप्ति। जबकि संस्थान इतिहास में पहली बार असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर लिखित परीक्षा का आयोजन करते हुए आवेदकों को 15 दिन पूर्व लेटर के माध्यम से अवगत कराया जा रहा है कि 1 घंटे की लिखित परीक्षा होगी और उसमें गेट का सिलेबस आएगा।
चौथा सवाल यह है कि जबकि गेट की परीक्षा तीन घंटे की होती है और उसकी तैयारी हेतु अभ्यर्थी पूरे साल भर तैयारी करता है। आखिर यह बदलाव क्यों और किसके इशारे पर किया गया है !
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विगत माह में डब्लू आई टी में रिक्त 16 पदों के साक्षात्कार हेतु पूर्व में ही एक रिट याचिका में उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय को निर्देश जारी किए जा चुके हैं कि संस्थान में नियमित निदेशक की नियुक्ति के उपरांत ही संस्थान के रिक्त पदों पर नियुक्ति की जाए !
पांचवा सवाल यह है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की अवहेलना क्यों की जा रही है !
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पिछले सप्ताह एक अहम फैसला देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को उचित ठहराते हुए यूजीसी को निर्देश दिए गए हैं कि उच्च शैक्षणिक संस्थानों में विभागवार आरक्षण निर्धारित करते हुए रिक्त पदों पर भर्ती की जाए, जबकि गोविंद बल्लभ पंत इंजीनियरिंग कॉलेज घुड़दौड़ी संस्थान में स्थापना काल से अब तक ना तो रोस्टर प्रणाली का अनुपालन सुनिश्चित किया गया है और न ही नियमानुसार भर्तियां की गई है।
इस समय 62 पदों पर भी अपने चहेतों को नियुक्ति प्रदान करने हेतु कुल रिक्त पदों पर अपनी मर्जी से आरक्षण निर्धारित किया गया है। इस संबंध में नियमानुसार पालन सुनिश्चित किए जाने हेतु शिक्षकों द्वारा पूर्व में माननीय उच्च न्यायालय में वाद दायर किया जा चुका है जो कि माननीय न्यायालय में विचाराधीन है।
छठा सवाल यह है कि आरक्षण क्यों नहीं अनुपालन में लाया गया है ! इसके पीछे क्या स्वार्थ है !
उत्तराखंड शासन के कार्मिक एवं सतर्कता के शासनादेश दिनांक 22 जनवरी 2019 के द्वारा भी आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को 10% आरक्षण प्रदान किए जाने हेतु आरक्षण देने की व्यवस्था लागू की जा चुकी है और आरक्षण लागू होने तक उत्तराखंड में नई भर्तियों पर रोक लगाई गई है। इसके उपरांत भी आनन-फानन में नियुक्तियों का खेल खेला जा रहा है।
इस पूरे प्रकरण में कार्यवाहक निदेशक एस चौहान और तकनीकी शिक्षा विभाग के अधिकारी शामिल हैं।
सातवां सवाल यह है कि आखिर रोक होने के बावजूद भी चौहान किसके इशारे पर और किस प्रलोभन में इन भर्तियों को करा रहे हैं !
इंजीनियरिंग कॉलेज में भ्रष्टाचार कैंसर रोग की तरह घर कर गया है। जब तक सर्जरी द्वारा एक आध अंग को काट कर अलग नहीं कर दिया जाएगा, तब तक यहां भ्रष्टाचार का कैंसर रुकना मुमकिन नहीं लगता।
पर्वतजन अपने गंभीर पाठकों से यह अपील करता है कि इस खबर को इतना अधिक प्रचारित प्रसारित करें कि शासन प्रशासन के कानों तक भी यह बात पहुंचे और वह इस पर गंभीरता से विचार करने के लिए विवश हो सके।