इन दिनों दिल्ली के आईएएस मुख्य सचिव को पड़े थप्पड़ की गूंज पूरे नेशनल मीडिया में है। आईएएस को पड़े इस थप्पड़ पर चीन का डोकलाम विवाद और मोदी सरकार द्वारा की गई रफैल डील की टीआरपी कमजोर पड़ गई है। आईएस एसोसिएशन ने दिल्ली के मुख्य सचिव की पिटाई की कड़ी निंदा की है। आईएएस की पिटाई के मामले में आईएएस दो भागों में बंटे हुए हैं। एक ओर पिटने वाले और दूसरी ओर ईमानदार किस्म के अफसर। कुछ लोगों का मानना है कि ‘भय बिनु होत न प्रीत’, यूं ही नहीं कहा गया था और बेलगाम घोड़ों को दुरुस्त करने के लिए इनकी लगाम खींचनी आवश्यक है।
इस बीच आम आदमी पार्टी के विधायक द्वारा दिल्ली के मुख्य सचिव पर जातिसूचक शब्द कहे जाने की भी चर्चाएं हैं।
एक किस्सा उत्तराखंड का भी याद कीजिए। 17 वर्ष के उत्तराखंड में मात्र एक बार उत्तराखंड के तीन विधायकों ने सचिवालय जाकर आईएएस अफसर पीसी शर्मा की जमकर पिटाई कर दी थी।
तिवारी सरकार के दौरान तब भी अधिकारियों के बेलगाम होने की खबरें प्रकाशित होती रहती थी और अधिकारी सरकार का मूर्ख बनाते रहते थे। कई बार अनुनय विनय के बाद जब आईएएस अफसर पीसी शर्मा ने पहाड़ में भेजे जा रहे राशन के कोटे के साथ भेदभावपूर्ण रवैया दुरुस्त नहीं किया तो हरक सिंह रावत के नेतृत्व में उनके साथ तत्कालीन विधायक रंजीत रावत और प्रदीप टम्टा पीसी शर्मा के दफ्तर में जा धमके। बिगड़ैल किस्म के पीसी शर्मा ने जब विधायकों की बात नहीं सुनी तो तीनों विधायकों ने पीसी शर्मा की कुर्सी पर ही उसकी ठुकाई कर दी। पिटने के बाद पीसी शर्मा ने पुलिस में मारपीट और जातिसूचक शब्द कहने की बात कही कि हरक सिंह रावत, रंजीत रावत और प्रदीप टम्टा ने उन्हें न सिर्फ पीटा, बल्कि उनके शेड्यूल ट्राइब होने पर भी भद्दी गालियां दी।
पीसी शर्मा के इस तुरुप के पत्ते को हरीश रावत पहले से ही जानते थे, इसलिए जब हरक सिंह रावत और रंजीत रावत पीसी शर्मा को पीटने सचिवालय जा रहे थे तो उन्होंने प्रदीप टम्टा को भी साथ भेज दिया। बाद में प्रदीप टम्टा ने आरोप लगाया कि पीसी शर्मा ने उन्हें जातिसूचक शब्द कहे और उनकी बेइज्जती की। प्रदीप टम्टा के इस काउंटर के बाद न सिर्फ पीसी शर्मा बैकफुट पर आए, बल्कि दोबारा मार पडऩे के डर से पीसी शर्मा ने तत्काल पर्वतीय जिलों को जाने वाले राशन के कोटे को भी रिलीज कर दिया।
तब से लेकर अब तक उत्तराखंड के कुछ आईएएस के साथ गरमा गरम बहस की खबरें शुर्खियां तो बनी लेकिन नौबत हाथापाई तक कभी नही पहुंची। संभवतः सबको अपनी-अपनी हदें बखूबी समझ मे आ गई।