उत्तराखंड में इन दिनों मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा एक साल से भी कम के कार्यकाल में 68 लाख रुपए के चाय-पकौड़े की पार्टी सबकी जुबान पर है, किंतु उत्तराखंड की मेन स्ट्रीम मीडिया में यह खबर नहीं छपी।
उत्तराखंड बनने के बाद यह पहला अवसर है, जब सूचना के अधिकार के अंतर्गत मिले जवाब के अंतर्गत उन अखबारों में यह खबर नहीं छपी, जो अपने आप को पिछले एक पखवाड़े से स्वयं के प्रथम पेज पर आंकड़ों के साथ छापकर नंबर वन बता रहे हैं।
सूचना के अधिकार के तहत हल्द्वानी के आरटीआई कार्यकर्ता हेमंत गोनिया ने यह खबर सभी समाचार पत्रों व इलेक्ट्रॉनिक चैनल को दी, किंतु खबर छापने से पहले मुख्यमंत्री दरबार से खबरों को वैरिफाई कराने के नए ट्रेंड के बाद यह खबर दबा दी गई।
अंतरिम सरकार के मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी से लेकर भगत सिंह कोश्यारी, नारायण दत्त तिवारी, भुवनचंद्र खंडूड़ी, रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा, हरीश रावत के कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री कार्यालय या मुख्यमंत्री निवास में आने वाले लोगों को उनकी आवाभगत में वर्षवार चाय-पानी की खबर पर तीखे व्यंग्यों के साथ लिखने वाला उत्तराखंड का मीडिया अचानक यूं ही मौन नहीं हुआ।
डबल इंजन की सरकार में मीडिया मैनेजमेंट के लिए एक भारी-भरकम टीम तैनात की गई है। सूचना विभाग के पांच दर्जन अधिकारी कर्मचारी सुबह से शाम तक मुख्यमंत्री के महिमामंडन की खबर छपवाने में मशगूल हैं। मीडिया के साथ बेहतर कॉर्डिनेशन से लेकर मीडिया मैनेजमेंट के लिए मुख्यमंत्री दरबार में एक दर्जन लोग कोटर्मिनस आधार पर इसी काम के लिए रखे गए हैं।
एक ओर मुख्यधारा की मीडिया ने सोशल मीडिया पर वायरल हो रही इस खबर से मुंह फेर लिया, वहीं हल्द्वानी से प्रकाशित उत्तरांचल दीप नाम के समाचार पत्र ने साहस करके यह खबर प्रकाशित की। इस खबर को उत्तराखंड के किसी भी न्यूज पोर्टल ने भी प्रकाशित नहीं किया।
हरीश रावत के कार्यकाल मेें भी भाजपा नेता अजेंद्र अजय ने फरवरी 2014 से लेकर जुलाई 2016 तक का चाय-नाश्ते का बिल का ब्यौरा बाकायदा सूचना के अधिकार में हासिल किया था। इस पूरे ढाई साल के दौरान मुख्यमंत्री के चाय-नाश्ते के बिल का ब्यौरा 67 लाख रुपए आया था। हरीश रावत के इस 67 लाख के बिल पर भाजपा तथा उसके साथी मुख्यधारा के प्रिंट तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया ने बड़ा हंगामा बरपाया था, किंतु मात्र 10 माह में 68 लाख के बिल पर न सिर्फ भाजपा, बल्कि मुख्यधारा की मीडिया को भी सांप सूंघ गया है।
गौर करने वाली बात यह है कि हरीश रावत के कार्यकाल के दौरान लोगों की आवाजाही त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल से कई गुना अधिक थी।
उत्तराखंड जैसे छोटे से राज्य में जहां वेतन देने के लिए पैसे नहीं, वहां दस महीने के कार्यकाल में 68 लाख के चाय-पकौड़े की खबर दबाकर भले ही मीडिया मैनेजर खुश हो गए हों, किंतु खबर दबाने का यह नया ट्रेंड उत्तराखंड के लिए कतई सही नहीं है।