भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस पर उठे सवाल
शासन और सरकार में बहुत सारे ऐसे पत्र लिखे जाते रहे हैं, जिनके ऊपर ‘गोपनीयÓ लिखा जाता है। इस गोपनीय को लिखने का आशय यह है कि इस प्रकार की पत्रावली किसी भी रूप में सार्वजनिक न होने पाए। उत्तराखंड के मुख्य सचिव उत्पल कुमार, जो कि मंत्रिमंडल के सचिव भी हैं, द्वारा २७ दिसंबर २०१७ को गोपन (मंत्रि परिषद) अनुभाग पत्रांक संख्या ७९०/१४/१/४/33द्ब/२०१० नाम से एक पत्र समस्त अपर सचिव, समस्त प्रमुख सचिव/सचिव, प्रभारी सचिव, उत्तराखंड शासन के नाम पर जारी हुआ।
उत्पल कुमार सिंह द्वारा हस्ताक्षरित इस पत्र के गोपनीय होने से लेकर किसी भी प्रकार का समाचार मीडिया कर्मियों में लीक होने पर तत्काल छानबीन की कार्यवाही जैसे शब्द भी लिखे गए हैं। इस पत्र के पांचवें बिंदु में सचिवालय में पत्रकारों के प्रवेश करने पर प्रतिबंध जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल किया गया है। अब उत्पल कुमार सिंह को ऐसी क्या समस्या आन पड़ी या वे ऐसी कौन सी बात छिपाना चाहते हैं, ये तो वही जानें, किंतु पत्र के जारी होने के २४ घंटे के भीतर पत्र का लीक होना जाहिर करता है कि उत्पल कुमार सिंह भले ही प्रदेश के मुख्य सचिव हों, किंतु ऐसे तमाम मजबूत लोग बड़े पदों पर बैठे हैं, जिन्होंने उत्पल कुमार सिंह को आईना दिखाते हुए उनका गोपनीय पत्र लीक कर स्पष्ट कर दिया है कि इस प्रदेश में आज तक मुख्य सचिवों को किस स्तर का सम्मान और ताकत मिलती रही है।
मुख्य सचिव के गोपनीय पत्र के लीक होने के बावजूद अभी तक मुख्य सचिव ने न तो इस पत्र के लीक होने का किसी से स्पष्टीकरण मांगा है और न ही वे किसी को यह बता पाए हैं कि उनके गोपनीय पत्र की अब वैल्यू क्या रह गई है। यदि उत्पल कुमार सिंह इस गोपनीयता भंग होने के विषय पर निर्णय नहीं ले पाए तो स्पष्ट रूप से माना जाएगा कि उत्पल कुमार सिंह रबर स्टैंप ही हैं। भ्रष्टाचार के मामले में यदि जीरो टोलरेंस की नीति है तो फिर सचिवालय के भीतर ऐसे क्या काम हो रहे हैं, जिन पर पर्दा डालने के लिए मुख्य सचिव को यह पत्र जारी करना पड़ा।