यह किस्सा एक आईएएस का है जो उत्तराखंड के एक निगम में प्रबंध निदेशक के पद पर हैं। कुछ दिनों पहले एक जिले से डीएम पद से ट्रांसफर होकर सचिवालय में डंप किए गए अफसर ने सोचा कि क्यों न इस निगम की कुर्सी हथिया ली जाए। डीएम रहते हुए जिले में माल कमा लिया था तो सोचा मलाईदार पद पाने के लिए कुछ इन्वेस्ट किया जाए। तो जनाब ने सचिवालय के प्रभावशाली गंजे नौकरशाह तक रिश्वत पहुंचाने की ठानी। इसके लिए नौकरशाह के चहेते एक छोटे और मृत्यु को भी जीत लेने वाले अफसर को साधा। छोटे मृत्युंजय अफसर ने २५ लाख रुपए सुपारी लेकर डीएम साहब को सीधे बड़े नौकरशाह तक जाने को कह दिया। डीएम साहब नौकरशाह के सामने पहुंचकर मुंह खोला ही था कि रकम की बात सुनते ही नौकरशाह ने साहब को दौड़ा दिया।
दरअसल २५ लाख रुपए तो छोटे अफसर ने बात कराने के एवज में अपने पास ही रख लिए। नौकरशाह को तो बड़ी भेंट चढऩी थी, लेकिन डीएम साहब ने सोचा था कि २५ लाख रुपए में एमडी की कुर्सी मिल जाएगी। अरे डीएम साहब! २५ लाख रुपए तो आजकल इंजीनियरों के ट्रांसफर का रेट है। इधर निगम के एमडी को भी इस बात की भनक लग गई है। बल्कि उनको तो यहां तक जानकारी है कि नौकरशाह से बैरंग लौटने के बाद डीएम साहब ने एमडी की कुर्सी के लिए एक बकरे की भी बलि चढ़ाई थी, लेकिन सफल नहीं हुए।