हालिया कुछ खबरों से कांग्रेसी पृष्ठभूमि के मंत्रियों के खिलाफ माहौल बना रहे CM के मीडिया संयोजक दर्शन सिंह के कारण कुलमिलाकर सरकार की ही छवि को नुकसान पहुंच रहा है। दरअसल ये मंत्री सीएम के लिए भले ही परेशानी का सबब हों लेकिन बचाव करने के बजाय सीएम की तरफ से खुद ही बैटिंग करने वाले इस तरह के मीडिया मैनेजमेंट से सीएम के ही नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े हो सकते हैं। लिहाजा सार्वजनिक मंचों पर तेज रफ्तार मंत्रियों की कार्य शैली का बचाव करने के बजाय इस तरह की खबरों से सरकार को ही बैकफुट पर आना पड़ सकता है।
यह दोनों मंत्री अपनी जिद मे किसी भी सीमा तक गुजर सकते हैं। फिर यह दोनो सियासी नफा नुकसान भी नही देखते। इस तरह की गलतफहमियां चाहे जिस भी स्तर से शुरू हुई हों लेकिन फायदा इसमे किसी का भी नही है।
रविवार 21 जनवरी को हिंदुस्तान अखबार में दिल्ली डेट लाइन से एक खबर मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित हुई, जिसका हेडिंग था तीन मंत्रियों के काम से हाईकमान नाराज और अंदर खबर थी कि राज्य में दो से तीन मंत्रियों के कामकाज को लेकर दिक्कतें आ रही हैं कि वह दिल्ली की ज्यादा दौड़ लगा रहे हैं। खबर में लिखा था कि लोकसभा चुनाव से पहले उत्तराखंड की नई सरकार पर नजर रख रहे भाजपा नेतृत्व कुछ मंत्रियों के कामकाज से संतुष्ट नहीं है खबर के अनुसार केंद्रीय नेतृत्व ने इस बारे में अपनी राय से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी अवगत करा दिया है।
खबर में बताया गया है कि मुख्यमंत्री को बता दिया गया है कि वह चाहे तो सरकार में जरूरी बदलाव कर सकते हैं लेकिन सरकार के कामकाज में कोई ढीलापन नहीं रहे। यह खबर दो अर्थों में विरोधाभासी है एक ओर खबर में कहा गया है कि मंत्री लगातार दिल्ली के दौरे लगा रहे हैं और दूसरी ओर कहा जा रहा है कि सरकार में ढीलापन ना रहे इसलिए बदलाव किया जाए।
तथ्य यह है कि दिल्ली के लगातार दौरों से सरकार के कामकाज में तेजी आएगी ढीलापन नहीं आएगा। वही मंत्री दिल्ली के दौरे लगाएगा जिसके दिल्ली में मंत्रियों और सचिवों से दोस्ताना संबंध होंगे। जिस मंत्री की कोई केंद्रीय मंत्री सुनने को ही राजी नहीं वह भला दोबारा दिल्ली क्यों जाएगा ! राजनीतिक सूत्रों के अनुसार जिन दो मंत्रियों को बदलने के लिए इशारा किया जा रहा है, वह सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत हैं। यह दोनों मंत्री अपनी तेजी, केंद्रीय लेवल पर अपनी पहुंच और पकड़ के लिए किसी सिफारिश के मोहताज नहीं है। ऐसे में इनकी दिल्ली दौड़ से इनके मंत्रालयों के कामकाज में ढीलापन तो नहीं बल्कि तेजी जरूर आएगी। यह खबर हिंदुस्तान अखबार में आई तो राज्य में एक चर्चा आरंभ हो गई कि जल्दी ही सरकार में कुछ फेरबदल हो सकता है और दो मंत्रियों के खाली पद भी भरे जा सकते हैं, इसलिए बड़े स्तर पर फेरबदल की संभावना है।
सरकार में मीडिया कोऑर्डिनेटर दर्शन रावत इससे पहले हिंदुस्तान अखबार में ही ब्यूरो चीफ के पद पर थे। उन्हें मीडिया कोऑर्डिनेटर के पद पर सरकार में लिए जाने के पीछे एक बड़ा कारण मीडिया मैनेजमेंट ही माना जाता है।
सोमवार को एक और खबर हिंदुस्तान अखबार के पृष्ठ नंबर दो पर थी। खबर का टाइटल था–” सभी मंत्रियों के काम की समीक्षा हो- बोले धन सिंह “।
इसमें धन सिंह रावत ने रविवार को सचिवालय में कहा कि मंत्रियों के कामकाज की निरंतर समीक्षा से उत्तराखंड के लोगों को फायदा मिलेगा। इसमें धन सिंह ने अपने बयान में कहा है कि सैद्धांतिक तौर पर विभागीय बैठकों में मंत्रियों के दिल्ली जाने में कोई परेशानी नहीं है। पर मंत्रियों को दिल्ली जाने के लिए मुख्यमंत्री की इजाजत लेनी चाहिए। इस खबर से भी दो सवाल खड़े होते हैं।
पहला सवाल यह है कि रविवार को धन सिंह रावत कौनसा कामकाज निपटाने सचिवालय गए थे।
दूसरा सवाल यह है कि क्या धन सिंह रावत ने इस संबंध में कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी थी या फिर उनसे केवल हिंदुस्तान के ही संवाददाता ने अपनी न्यूज़ बनाने के लिए यह सवाल पूछा ! तीसरा सवाल यह है कि यदि धन सिंह रावत कहते हैं कि मंत्रियों को दिल्ली जाने के लिए मुख्यमंत्री की इजाजत लेनी चाहिए तो फिर उन्होंने दिल्ली जाने के लिए खुद कितनी बार मुख्यमंत्री की इजाजत ली है !
चौथा और अहम सवाल यह है कि यह खबर अन्य समाचार माध्यमों में क्यो नही छपी !
जाहिर है कि मीडिया में इस तरह की खबरें छपवाने से भले ही मुख्यमंत्री के प्रति कोई अपनी निष्ठा साबित करना चाहे किंतु इससे सरकार की छवि पर गलत प्रभाव पड़ना तय है !
जाहिर है कि इस तरह की खबरें छपने छपवाने से पहले मुख्यमंत्री अथवा किसी जिम्मेदार सरकारी अधिकारी से राय मशवरा नहीं किया गया होगा !
इससे कुछ माह पहले भी दर्शन सिंह रावत ने यह खबर मीडिया में दी थी कि राज्य सरकार ने डीजल और पेट्रोल से वेट घटा दिया है जबकि हकीकत में सरकार अथवा शासन के स्तर पर ऐसा कोई भी निर्णय नहीं हुआ था। जब मीडिया में यह खबर आई तो सरकार की बहुत किरकिरी हुई और बाकायदा वित्त मंत्री तथा अधिकारियों को इस पर अपना स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा था। यदि मीडिया में खबर देने से पहले दर्शन सिंह रावत अधिकारियों अथवा मुख्यमंत्री से इसकी पुष्टि कर लेते तो सरकार की किरकिरी नहीं होती। दर्शन सिंह रावत अपने पत्रकारिता के कार्यकाल के दौरान कभी खोजी पत्रकारिता अथवा जनहित के सरोकारों की पत्रकारिता के लिए नहीं जाने गए। कई ऐसे मौके भी आए, जब किसी खबर के कारण पर उनकी राय मांगी गई तो उन्होंने असल तथ्य जानने-बताने के बजाय पूछने वाले को इस तरह गुमराह करने का असफल प्रयास किया कि खुद उनके होमवर्क की पोल खुल गई। उनके कामकाज के तौर तरीके से ऐसा ही लगता है मानो वह सरकार को गति देने के मिशन को भूलकर सिर्फ पांच साल तक शाही वेतन भत्ते को मंजिल समझ शांत पड़ गए हों। ऐसे में उनके अनुभवों की कमी कई बार सरकार को बैकफुट पर ला देती है।
कांग्रेसी पृष्ठभूमि के मंत्री भले ही अपने पुराने मिजाज और चाल के कारण गजगामिनी सरकार के लिए असहज साथ हो लेकिन इनको ब्रेक लगाकर सरकार की ही छवि को नुकसान पहुंचेगा।भले ही सीएम को अभी इस तरह के मीडिया मैनेजमेंट का संज्ञान न हो लेकिन जाहिर है कि यह रार आगे बढी तो नेतृत्व परिवर्तन की हद तक भी जा सकती है। जिसके लिए दर्शन सिंह रावत जैसे अधकचरे मीडिया कोआर्डिनेटर ही शुरुआती कारण सिद्ध होंगे।