उत्तराखंड यूँ तो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए पुरे भारत वर्ष में विख्यात है, पर यहाँ की सांस्कृतिक कलाएं और परम्पराएँ भी बहुत अलग ही महत्व रखती है। अनेक उत्तराखंडी कलाकारों ने यहाँ की सांस्कृतिक कलाओं चाहे वो संगीत हो, चित्रकला, साहित्य या नृत्यकला को आगे लाने में अपना-अपना योगदान दिया है। ऐसे ही एक कलाकार है अरविन्द सिंह रावत। मूल रूप से टिहरी गढ़वाल के चमियाला के निवासी अरविन्द अपने गायन और लेखन के द्वारा उत्तराखंडी लोकसंगीत को एक नयी पहचान दिलाने में कामयाब रहे है। पेशे से उत्तराँचल विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रॉनिक्स एवं संचार विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर कार्यरत अरविन्द संगीत की उम्दा समझ रखते है। इनकी संगीत एल्बम “साथ माया को” जिसमें इन्होंने आठ गाने लिखे और गाये भी पूरे उत्तराखंड में अपना एक सशक्त स्थान बनाने में सफल रही है।
अरविन्द बताते है कि बचपन से ही उन्हें संगीत में बड़ी रूचि थी। उच्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात उन्होंने अपनी संगीत कला और लेखन को और निखारना आरम्भ किया। लोकसंगीत को पहचान दिलाने के लिए वो पूर्णतः समर्पित है। अरविन्द के गीतों में उत्तराखंड के गाँव, वहां की दिनचर्या, संस्कारों की झलक मिलती है। आजकल उत्तराखंड संगीत पर हावी होते बाज़ारवाद के वह सख्त खिलाफ हैं वह बताते है, बाज़ारवाद से गायन स्तर घटिया होता जा रहा है। बिना सुर ताल के गीत बाजार में तो टिक सकते हैं पर उत्तराखंडी जनता के हृदय में नहीं। अरविन्द बताते हैं उनके कई गीत जो अभी रिकॉर्डिंग की कतार में हैं जल्दी ही उनके यूट्यूब चैनल से जनता तक पहुंचेंगे, और वह उम्मीद करते हैं कि उत्तराखंडी लोकभाषा और लोकसंगीत को वो उसके उत्कर्ष तक पहुचाएंगे।
आज उनके उनके जन्मदिन पर उनके गीत “घंडियाल देव” का वीडियो अपलोड हुआ है जो कि उन्होंने अपने सुदूरवर्ती गांव “कोठगा” में पारंपरिक देवी की जात में फिल्माया है और लोगों को अत्यधिक पसंद आ रहा है क्यूंकि ऐसे गीत अब बहुत कम देखने को मिलते हैं।गीत को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।
https://m.youtube.com/watch?v=CQRUi4hhlws