भारत सरकार द्वारा २८ दिसंबर २०१७ को मुस्लिम महिला विवाह संरक्षण बिल २०१७ को पेश किया गया, जो लोकसभा में पास भी हो गया। इस बिल के पास होने के बाद भारतीय जनता पार्टी सरकार और संगठन द्वारा पूरी दुनिया में शोर मचाया गया कि अब तीन तलाक व्यवस्था समाप्त हो गई है, किंतु लोकसभा में पास हुए इस बिल की सच्चाई थोड़ा इतर है।
लोकसभा में पास हुए इस बिल में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि यह बिल तलाक-ए-बिद्दत अर्थात एक साथ तीन तलाक पर रोक है, न कि नियमित अंतराल के भीतर तीन अलग-अलग बार तलाक तलाक तलाक वाली प्रक्रिया जारी रहेगी। अर्थात यदि कोई भी मुस्लिम व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक देना चाहता है तो उसे साथ नहीं, बल्कि महीने-महीनेभर के अंतराल में तीन बार अपनी पत्नी को तलाक तलाक तलाक कहना होगा।
भाजपा सरकार द्वारा पेश किए गए बिल से सिर्फ इतना फायदा होगा कि अब कोई भी व्यक्ति एक साथ तीन बार तलाक कहकर अपनी पत्नी को तलाक नहीं दे पाएगा। तीसरे माह में तलाक बोलने पर वह तलाक स्वत: ही मान्य हो जाएगा। इस बिल की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि इस बिल में कहीं भी तीसरे तलाक के बाद सुलह होने की स्थिति में जारी हलाला जैसी कुप्रथा से बचने का कोई समाधान नहीं है। अर्थात तीसरे माह में यदि पति-पत्नी के बीच सुलह हो जाती है और वो पुन: घर बसाना चाहते हैं तो पत्नी को हलाला की प्रक्रिया से गुजरना ही पड़ेगा।
कुल मिलाकर तात्कालिक रूप से यह बिल महिलाओं को हाथोंहाथ तलाक जैसी कुप्रथा से भले बचाने वाला हो, किंतु तीसरे माह के बाद मुस्लिम महिला को इस भीषण कुप्रथा से गुजरने के लिए मजबूर होना ही पड़ेगा। ऐसे में जो व्यक्ति तीन-तीन चार-चार विवाह करने के लिए आतुर है, ऐसे लोगों को बस उस तीन माह तक इंतजारभर करना पड़ेगा। बेहतर होता कि इस बिल को और मजबूती से पेश किया जाता। तब जाकर तीन तलाक और हलाला जैसी कुप्रथा पर निर्णायक चोट होती। तलाक पीडि़त महिलाओं को उम्मीद है कि निकट भविष्य में तीन तलाक और हलाला जैसी कुप्रथा को भारत सरकार पूरी तरह समाप्त करने का ठोस निर्णय करेगी, तभी जाकर मुस्लिम महिलाओं को पूरी तरह न्याय मिल जाएगा।