योगेश भट्ट
दावोस, स्विटजरलैंड का एक छोटा सा कस्बा जिसकी कुल आबादी पूरे पंद्रह हजार भी नहीं है, इन दिनों पूरी दुनिया की नजर में है। धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले यूरोप के इस कस्बे में इन दिनों दुनिया भर के शासन प्रमुखों, राजनेताओं, उद्योगपतियों और कारोबारियों का जमावड़ा है। मौका है हर साल यहां आयोजित होने वाले आर्थिक महाकुंभ यानी वर्ल्ड इकानमिक फोरम की बैठक। विश्व आर्थिकी के लिहाज से यूं तो यह आयोजन अर्थ जगत के लिये हमेशा से खास रहा है, लेकिन इस बार दावोस पर देश दुनिया के साथ अपने उत्तराखंड को भी अच्छी खबर का इंतजार है। देश के लिए इसकी वजह ‘वर्ल्ड इकानमिक फोरम’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी है तो उत्तराखंड के लिए खास वजह हैं उत्तराखंड की सियासत में नए अध्याय के तौर पर जुड़ने जा रहे शौर्य डोभाल। शौर्य दावोस में प्रधानमंत्री मोदी की दमदार मौजूदगी के साथ खास भूमिका में हैं, जिनका मकसद देश के लिए अंतर्राष्ट्रीय निवेश जुटाना है। दावोस में इस अंतर्राष्ट्रीय फोरम की पांच दिवसीय बैठक की शुरुआत भी मोदी के बीज वक्तव्य से हो चुकी है, मोदी की इस मंच पर दमदार उपस्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह इस सम्मेलन में भारत से 120 सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल लेकर पहुंचे जिसमें छह मंत्री, दो मुख्यमंत्री और बीस भारतीय कंपनियों के सीईओ भी शामिल हैं। इस मंच पर तीस से अधिक देशों के राजनेताओं, उद्योगपतियों, मजदूर संघों के नेताओं, सामाजिक आंदोलनों के प्रतिनिधियों के बीच ‘कार्बन मुक्त अर्थव्यवस्था’ विषय पर चर्चा चल रही है। मोदी वापस लौट चुके हैं लेकिन उनकी पूरी टीम ‘मोर्चे’ पर है। दावोस में चल रहे इस सम्मेलन से भारत को काफी उम्मीदें हैं। दो दशक के बाद भारतीय प्रधानमंत्री की इस आयोजन में खुद पूरी टीम के साथ मौजूदगी के अपने मायने हैं। इस वक्त यह मुहिम इसलिए भी अहम है क्योंकि पूरी अर्थव्यवस्था अस्थिरता के दौर से गुजर रही है। हालात बेहतर नहीं हैं।डब्लूईएफ ने बैठक से पहले जो ‘ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट’ जारी की है वह पिछले सालों के मुकाबले अधिक चिंताजनक है। यह आर्थिक उठापटक का दौर है, जिससे पार पाना इस वक्त पूरे विश्व के लिए चुनौती बना हुआ है। अपने यहां भारत में भी आर्थिक सुधारों की बात हो तो रही है लेकिन अभी धरातल पर बहुत कुछ नजर नहीं आ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय अधिकार समूह आक्सफैम ने हाल में जो सर्वे रिपोर्ट जारी की है उसके मुताबकि दुनिया भर में अमीर और गरीब के बीच का फासला बढ़ता जा रहा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था अमीरों को और अधिक धनवान बनाने में सहायक हो रही है जबकि लाखों करोड़ लोग दो वक्त की रोटी जुटानेके लिए संघर्ष कर रहे हैं। भारत में तो हालात और बदतर हैं। यहां अमीरी और गरीबी के बढ़ते फासले का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश की 58 फीसदी संपत्ति पर मात्र एक फीसदी लोगों का कब्जा है। बीते एक साल में देश भर में नई सृजित संपत्तियों का 73 फीसदी हिस्सा केवल एक फीसदी लोगों के पास है। इन गंभीर हालातों के बीच एक तथ्य और सामने आया है कि ग्रीन रैंकिंग में 180 देशों की सूची में भारत 141 वें स्थान से लुढ़ककर 177 वें स्थान पर आ गिरा है। हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत विश्व में सबसे खराब आबो हवा वाले पांच देशों में पहुंच गया है। साफ है कि भारत में हवा के साथ-साथ पानी और मिट्टी भी खराब हो रही है। ऐसे में वैश्विक निवेश खासकर निर्माण के क्षेत्र में बड़ी चुनौती है। इन सब चुनौतियों के बीच कोई शक नहीं कि इस मंच पर मोदी के वक्तव्य पर पूरी दुनिया की निगाहें थी। जिस तरह उनके भाषण ने वाहवाही बटोरी, उससे नई उम्मीदों का पंख लगे हैं और नई संभावनाओं का जन्म भी हुआ है। मोदी ने इस मंच से तामाम चुनौतियों का जिक्र करते हुए दुनिया के तमाम देशों को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित किया है। विश्व मंच पर उन्होंने देश की नई आर्थिक तस्वीर पेश करते हुए इन्वेस्टिंग इन इंडिया, ट्रेवलिंग टू इंडिया और मैन्युफैक्चरिंग इन इंडिया के नारे विश्व बाजार में प्रसारित किए हैं। उन्होंने विश्व मंच पर भारत को निर्माण, निवेश और पर्यटन के लिए एक बड़े बाजार के रूप में प्रस्तुत किया है। दावोस से उम्मीदें इसलिए भी हैं क्योंकि 2019 आम चुनाव का साल है, इस लिहाज से मौजूदा साल उपलब्धियां गिनाने का साल है। उपलब्धियों के लिहाज से इस वक्त भारत का लक्ष्य अधिक से अधिक विदेशी निवेश जुटाना है। अब जिक्र उत्तराखंड की उम्मीदों का, उत्तराखंड को दावोस से उम्मीदों की मुख्य वजह हैं शौर्य डोभाल। शौर्य डोभाल इंडिया फाउंडेशन के निदेशक हैं और प्रधानमंत्री मोदी के थिंक टेंक में शुमार हैं। इस तरह के अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में उनकी शिरकत उनके लिए कोई नयी बात नहीं है, मोदी के अधिकांश विदेश दौरों में वह मुख्य भूमिका में होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय कारोबार, अर्थव्यवस्था और निवेश संबंधी मामलों का उन्हें खासा जानकार माना जाता है लेकिन उत्तराखंड के लिए उनकी पहचान एक नए रूप में होने जा रही है। हाल ही में उनका राजनीति में पदापर्ण हो चुका है, उनके लिए सियासी जमीन भी तैयार की जाने लगी है। भाजपा में यकायक उनकी एंट्री की तपिश प्रदेश भाजपा में इन दिनों साफ महसूस की जा सकती है। ऐसी भी चर्चा है कि उत्तराखंड की सियासत में नवागंतुक शौर्य में भविष्य के नेतृत्व की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है। यह सही है कि शौर्य के साथ उनके एनएसए पिता की विशिष्ठ पहचान और हाईकमान की नजदीकियां उन्हें एक मजबूत शख्सियत के तौर स्थापित करती है, लेकिन सियासत के ‘खेल’ में उतरने से पहले उन्हें खुद को साबित करना भी एक चुनौती होगा। इस लिहाज से दावोस उनके लिए भी एक मौका भी है, क्योंकि आज उत्तराखंड को भी आर्थिक सेहत के लिहाज से बड़े निवेश की जरूरत है। बहरहाल, शौर्य अगर वाकई उत्तराखंड को लेकर गंभीर हैं तो निश्चित तौर पर दावोस से उत्तराखंड के लिए भी कोई अच्छी खबर निकल कर आनी चाहिए। शौर्य की सियासत में दिलचस्पी को देखते हुए उम्मीद है कि ऐसी कोई खबर आएगी।