परिसंपत्तियों के बंटवारे में उत्तर प्रदेश 75% हिस्सेदारी ले उड़ा जबकि उत्तराखंड के हिस्से मात्र 25 फ़ीसदी परिसंपत्तियां आई है। यहां तक कि हरिद्वार में जहाँ सदियों से कुंभ होता रहा है वह जमीन भी उत्तराखंड नहीं बचा पाया। उत्तराखंड के अधिकारी न तो सही ढंग से अपनी परिसंपत्तियों को हासिल करने के लिए पैरवी कर पाए और न ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री सहित तमाम बड़े नेताओं ने अपनी बात को मजबूती से रखा। परिणाम यह हुआ कि कुंभ की जमीन देने से भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ मना कर दिया। आखिरकार फैसला यह हुआ कि हरिद्वार में कुंभ की जमीन का मालिकाना हक उत्तर प्रदेश का ही रहेगा जबकि उत्तराखंड सरकार को वहां पर केवल कुंभ का आयोजन करने का ही अधिकार है। इसके अलावा नहरों के मामलों में सभी लड़ाई उत्तराखंड हार गया है। उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश के मध्य यह फैसला हुआ कि नहरों के हेड पर भी उत्तरप्रदेश का ही अधिकार रहेगा।उत्तराखंड के हिस्से सिर्फ टेल ही आएगी।
जिन नहरों से उत्तर प्रदेश के जिलों में सिंचाई होती है वह नहरें तो उत्तर प्रदेश के स्वामित्व में ही रहेगी किंतु उत्तराखंड की जमीन पर यदि उत्तरप्रदेश की नहरों से सिंचाई होती है तो उन नहरों के हेड भी उत्तर प्रदेश के हिस्से में ही रहेग। उत्तराखंड के हिस्से में सिर्फ टेल ही रहेगी।
यह समझौता पिछले दिनों उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच में हुआ समझौते में 75 फ़ीसदी हिस्सेदारी गंवाने के बाद से उत्तराखंड सरकार के नेताओं और अधिकारियों को सांप सूंघ गया है।
इस बंटवारे में उत्तराखंड केवल हरिद्वार की डैमकोठी को ही बचा पाया। बनबसा का गेस्ट हाउस उत्तराखंड के हाथ से निकल कर उत्तर प्रदेश के स्वामित्व में चला गया ।
यही नहीं उत्तराखंड के अधिकांश बाँधों पर उत्तर प्रदेश का ही हक रहेगा। बटवारे के समय यह फारमुला निकाला गया कि यदि उत्तराखंड के किसी बांध से 50% से अधिक पानी का इस्तेमाल उत्तर प्रदेश करता है तो उस बांध पर उत्तर प्रदेश का ही अधिकार होगा। इसके अलावा उत्तराखंड के धोरा, बैगुल, बनवासा और नानक सागर सहित शारदा सागर बांध भी उत्तर प्रदेश के ही अधिकार क्षेत्र में रहेंगे।
उत्तर प्रदेश के सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह ने बरेली के गेस्ट हाउस में खुशी का इजहार करते हुए यह सूचना पत्रकारों से साझा की लेकिन उत्तराखंड में सरकार के किसी नुमाइंदे ने इस पर चूं तक नहीं की।