शुक्रवार को सचिवालय में फेसबुक के बेहतर इस्तेमाल को लेकर उत्तराखंड के तमाम उच्चाधिकारियों को प्रशिक्षण देने के लिए कार्यशाला आयोजित की गई। फेसबुक के साउथ एशिया एरिया का कार्य देखने वाले पॉलिसी प्रोग्राम मैनेजर नितिन सलूजा ने यह प्रशिक्षण दिया। इस कार्यशाला में मुख्यमंत्री के साथ ही तमाम सचिव और विभागों के निदेशक भी शामिल हुए। फेसबुक के जरिए किस तरह से लोगों के साथ संवाद स्थापित किया जा सकता है तथा उनकी समस्याओं को कैसे तत्काल निस्तारित किया जा सकता है। इस तरह की तमाम चुनौतियों पर चर्चा हुई। तय हुआ कि अफसरों को अपने विभागों के फेसबुक पेज बनाने होंगे और पेज पर तमाम योजनाओं की जानकारियां अपडेट करने से लोगों को लाभ होगा।
फेसबुक के पॉलिसी प्रोग्राम मैनेजर नितिन सलूजा जाहिर है कि यह कार्य निहायत कल्याणकारी दृष्टिकोण से फ्री में तो नहीं करेंगे। इसके पीछे फेसबुक का उद्देश्य विभागों के पेजों को बूस्ट करवाकर धन कमाना है। एक बार सरकारी विभागों के पेज बन गए तो अधिकारियों को इन्हें अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए धन चुकाना होगा जो लगभग १२० रुपए से लेकर हजारों में हो सकता है। इसमें लगभग ६५ अथवा १२० रुपए में १४०० से १७०० लोगों तक विभाग अपनी पोस्ट पहुंचा सकते हैं।
संभवत: बिजनेस बनाए रखने और बढ़ाने के लिए फेसबुक अपने सिस्टम में इस बात के लिए आसानी से राजी हो सकता है, जिससे सरकार अथवा अधिकारियों को विचलित करने वाली पोस्ट आसानी से हटाई जा सकेंगी। जब फेसबुक को उत्तराखंड सरकार से बिजनेस मिलेगा तो उसे आम आदमी की ऐसी पोस्ट हटाने में भला क्या आपत्ति हो सकती है जो सरकारी सिस्टम को परेशान करने वाली हो।
उदाहरण के तौर पर ‘पर्वतजन’ ने अपनी वेबसाइट से एक खबर का लिंक फेसबुक पर डाला तो फेसबुक ने वह पोस्ट हटा दी। यह पोस्ट पर्वतजन की वेबसाइट www.parvatjan.com पर पढ़ी जा सकती है। यह खबर हरिद्वार के जिलाधिकारी दीपक रावत के तमाम प्रयासों के विफल होने को लेकर थी तथा पर्वतजन के हरिद्वार ब्यूरो चीफ कुमार दुष्यंत द्वारा लिखी गई थी। इस खबर का टाइटिल ‘बहुत भागादौड़ी करता है ये डीएम…मगर!’ था। आप इसे पर्वतजन की वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं।
अब तक तो सरकारें ही पर्वतजन की खबरों को ब्लॉक करती थी, अब फेसबुक भी यदि यह पोस्ट हटा रहा है तो अभिव्यक्ति का यह दौर वाकई चिंताजनक है।