उत्तराखंड की डबल इंजन सरकार ने उत्तराखंड में जारी पलायन रोकने के लिए एक आयोग का गठन किया, जिसका नाम पलायन आयोग रखा गया। वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी डा. शरद सिंह नेगी को ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया है।
विश्व बैंक में दक्षिण एशिया के वानिकी सलाहकार का पद छोड़कर पलायन आयोग का उपाध्यक्ष बनने वाले नेगी इससे पहले कि इस पर कुछ काम करते, शुरुआत ही खराब हो गई। नेगी ने शुरुआत में जिलों में जाकर कुछ बैठकें भी ली, किंतु जब ढूंढने से भी पौड़ी जनपद में एक अच्छा कार्यालय नहीं मिला तो पलायन आयोग के लिए तीन लक्जरी कारों को किराये पर लेने का विज्ञापन जारी हो गया। इन लक्जरी कारों को किराये पर लेने के संदर्भ में यह बताया गया कि पहाड़ों पर छोटी गाडिय़ों से सफर करना न तो आरामदायक है और न खतरे से खाली। इससे पहले कि पौड़ी में पलायन आयोग का दफ्तर शुरू होता और धरातल पर कुछ काम होता, उत्तराखंड के चकड़ैत कर्मचारियों ने नेगी की नब्ज को भांपते हुए उन्हें देहरादून में बैठने की पट्टी पढ़ा दी।
पलायन आयोग की गाड़ियों के लिए निविदा
इसके बाद नेगी ने देहरादून के सहस्त्रधारा रोड स्थित उत्तराखंड पर्वतीय आजीविका संवद्र्धन कंपनी (उपासक) के कार्यालय में डेरा जमा लिया और वहीं बैठकर पलायन पर चिंतन करने लगे। 16 फरवरी 2018 को जब पलायन आयोग के उपाध्यक्ष श्री नेगी से उनके मोबाइल नंबर 9411173194 पर देहरादून में पलायन कार्यालय के संबंध में पूछा गया तो तब उन्होंने ही बताया कि वे उपासक के कार्यालय में बैठकर भी लोगों से मिलते हैं।
नेगी ने एक कदम आगे बढ़ते हुए बताया कि यदि कोई व्यक्ति उन्हें पलायन के संबंध में कोई सुझाव देना चाहता है तो उसे कार्यालय आने की भी जरूरत नहीं, वो पलायन आयोग की ईमेल पर मेल कर सुझाव दे सकता है। इस बीच देहरादून में पलायन आयोग का कैंप कार्यालय खुलने की सुगबुगाहट के बीच लोगों ने आयोग की प्रासंगिकता पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं।
पौड़ी जनपद के शिक्षक मुकेश बहुगुणा उर्फ मिर्ची बाबा तंज कसते हुए हैं कि पलायन आयोग का कैंप कार्यालय देहरादून में इसलिए खोला गया है, क्योंकि पौड़ी के ज्यादातर लोग पौड़ी से भागकर देहरादून जा रहे हैं। अब पलायन आयोग वाले उन्हें देहरादून से पौड़ी की गाड़ी में बिठाकर वापस पौड़ी की ओर भेज देंगे। इसी तरह पर्वतीय जिलों से मैदान की ओर पलायन करने वालों को अब देहरादून कार्यालय से ही दौड़ाकर वापस भेजा जाएगा।
पलायन आयोग का बंद पड़ा दफ्तर
देहरादून के प्रति सरकारी व्यवस्था का मोह इसी अंदाज से समझा जा सकता है कि यदि पलायन आयोग का उपाध्यक्ष इसी तरह देहरादून में जम गया तो अब पलायन रोकने के लिए सुझाव देने वाले लोग अब बसों, ट्रैकर में किराये देकर पहाड़ से पलायन कर देहरादून जाएंगे और तब सुझाव देंगे।
पलायन आयोग के लिए 50लाख का बजट भी आवंटित किया गया है। इस बजट से आयोग के दफ्तर मे फर्नीचर आदि खरीदा जाएगा।
पाठकों की जानकारी के लिए बता दें कि 27 सितंबर 2017 को इस आयोग की घोषणा की गई थी तथा 30 सितंबर 2017 को आयुक्त उपाध्यक्ष पद पर डॉ शरद सिंह नेगी की नियुक्ति हुई थी। 15 दिसंबर 2017 को पौड़ी की कृषि विभाग में आयोग का दफ्तर दो कमरों में खुला। किंतु जैसे ही बजट आया, आयोग ने अपना दफ्तर देहरादून शिफ्ट कर लिया।
पलायन आयोग की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इस आयोग में काम करने वाले सभी अधिकारी कर्मचारी वर्षों पहले खुद पलायन कर मैदानी जिलों में जम चुके हैं। भविष्य में पलायन आयोग के इस दफ्तर के बहाने पहाड़ों में रहने वाले कुछ और अफसर भी प्रतिनियुक्ति जैसी तिकड़मों का सहारा लेकर देहरादून आ जाएं तो आश्चर्य नहीं। इस तरह से तो और भी पलायन बढ़ने की आशंका है।
जिस डबल इंजन की सरकार ने इस आयोग का निर्माण किया है, उसके मुखिया से लेकर सभी मंत्री व विधायकों ने पलायन कर देहरादून में कोठियां बना ली हैं। सभी के परिवार और रिश्तेदार देहरादून में जम चुके हैं। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री, विधायकों के गांवों में सिर्फ सुअर और बंदर ही पलायन नहीं कर पाए, जो अब उनके खंडहर होते गांवों की शोभा बढ़ा रहे हैं।