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बिजनौर सहारनपुर को उत्तराखंड मे मिलाएंगे !! कितनी सनसनी कितना सच !

December 21, 2017
in पर्वतजन
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पिछले कुछ दिनों से बिजनौर और सहारनपुर को उत्तराखंड में मिलाए जाने की चर्चाएं सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद उत्तराखंड में इसका व्यापक विरोध शुरू हो गया है।
यूं तो पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने भी हैदराबाद राजभवन से बेआबरू होकर उत्तराखंड लौटने के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश के 200 गांव को उत्तराखंड में मिलाने की पैरवी की थी। इसके बाद उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत भी कई मौकों पर उत्तर प्रदेश के कुछ गांव को उत्तराखंड में मिलाने की पैरवी करते रहे हैं।
सोशल मीडिया में पिछले दिनों से चर्चित प्रकरण भी भाजपा के थिंक टैंक ने जानबूझकर वायरल कराया है। इसके पीछे रणनीतिकार जनता के मन की थाह लेना चाहते हैं कि उनके इस कदम से क्या परिणाम रहेंगे। हालाांकि सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिक ने इसे कोरी अफवाह बताया है।
 भाजपा एक राष्ट्रवादी पार्टी है और जाति के आधार पर ध्रुवीकृत वोट बैंक भाजपा के एक छत्र साम्राज्य आगे सबसे बड़ी बाधा है। गुजरात में मनमाफिक परिणाम न मिलने के पीछे ध्रुवीकृत जातिवादी वोट बैंक ही बड़ी वजह रहा है। इसलिए भाजपा का असली मकसद सत्ता के समीकरण बिगाड़ने वाले जातिवादी वोट बैंक को अलग-अलग टुकड़ों में बांट देना है।
 इसी उद्देश्य के चलते भाजपा को लगता है कि यदि उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और बिजनौर को उत्तराखंड में मिला दिया जाए तो उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा का मुस्लिम और दलित वोट बैंक का समीकरण गड़बड़ा जाएगा और वह सरकार बनाने की स्थिति में नहीं रहेंगे।
 इसी तरह से मुजफ्फरनगर और मेरठ को हरियाणा राज्य में मिला देने से यहां का जाट वोट बैंक बिखर जाएगा। इससे जाट वोट बैंक के प्रमुख दावेदार अजीत सिंह कमजोर पड़ जाएंगे।
ऐसा करने के पीछे एक और समीकरण गिनाया जा रहा है कि लंबे समय से उत्तर प्रदेश को तोड़कर एक और राज्य बनाए जाने की मांग  भी खत्म हो जाएगी।
तीसरा समीकरण यह गिनाया जा रहा है कि वर्तमान में हरियाणा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में तो भाजपा की सरकार है ही,केंद्र में भी  भाजपा की सरकार होने से इससे बेहतर मौका भाजपा को शायद फिर कभी मुश्किल ही मिले।
 चर्चाओं के अनुसार नरेंद्र मोदी ने संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस मामले में पहले दौर की बातचीत कर ली है और कुछ अधिकारियों को भी इसकी संभावना टटोलने के लिए निर्देशित किया गया है।
 अपुष्ट सूत्रों के अनुसार मार्च अंत तक भाजपा इस पर कोई ठोस निर्णय लेकर इसका खुलासा कर सकती है।
भाजपा वाकई ऐसा सोचती है या नहीं इसकी तो पुष्टि नहीं हो पाई है। किंतु गिनाए गए समीकरण भाजपा के पक्ष में जरूर है। एक और बात यह है कि इससे भाजपा भले ही उत्तर प्रदेश से सपा- बसपा को खत्म कर अपना एक छात्र राज्य बना ले किंतु इससे उत्तराखंड के पहाड़ी प्रदेश की अवधारणा जरूर खत्म हो सकती है।
 सबसे बड़ा झटका गैरसैंण को राजधानी बनाने की अवधारणा को लगेगा। गौरतलब है कि चुनाव से पहले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने कहा था कि यदि सत्ता में आए तो गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाएंगे। हाल ही में उन्होंने अल्मोड़ा में दिए गए बयान में कहा है कि फिलहाल गैरसैंण को स्थाई राजधानी नहीं बनाया जा सकता।
 अभी तक भाजपा सियासी फायदे के लिए दूसरी राजनीतिक पार्टियों में ही तोड़फोड़ मचाने के लिए चर्चित थी। अब राज्यों की सीमाओं में भी तोड़फोड़ की आशंका के चलते आम जनता हैरत में है और हर कोई इस बात की पुष्टि करना चाहता है कि इन चर्चाओं में आखिर कितना दम है ! यदि ऐसा होता है तो इतना तो साफ है कि इससे उत्तराखंड को एक अलग राज्य बनाए जाने का मूल लौटते ही समाप्त हो जाएगा और उत्तराखंड में इससे भाजपा को विरोध प्रदर्शन का भी सामना करना पड़ेगा।

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