अरुण कुुकसाल
मुझे तुरंत अहसास हुआ कि ‘ऐसा नहीं पूछना चाहिए था’। परन्तु जिस सहज और सामान्य व्यवहार से वह अपनी दुकानदारी के कामों में तल्लीन थी उससे लगा ही नहीं कि हाल ही में उसके पति और पुत्र दोनों की मृत्यु हो गई है। -“भाई सहाब, मेरे आदमी की अभी 3 महीने पहले और जवान बेटे की 2 साल पहले मृत्यु हो गई है। उनको पैरालिसिस और बेटे को दिमागी बिमारी थी। भौत इलाज कराया, लाखों रुपए फूकें, अभी भी 1 लाख रुपए से ऊपर कर्जा है पर क्या करना मेरे भाग में ही नहीं थे वे दोनों। एक ही लड़का था वो भी चला गया। उसकी बहू और 3 छोटे बच्चें हैं। 5 साल की पोती और 3 साल के जुड़वा पोते हैं। उनको पालने की ही हिक्मत कर रही हूं। फुण्ड फुक्का, अपणा तो देखा जायेगा। पैले लड़के के जाने के बाद खूब रोई पर अपने आदमी को खोने के बाद रो भी नहीं पाई। रोऊं कैसे ब्वारी-बच्चे जो संभालने हैं।”
उसकी बातें सुनते हुए मैं सोच रहा था न जाने कितनी बार और कितने लोगों से वह अपनी यह व्यथा बता चुकी होगी। दु:ख के इस इंतहा में उसने अपने आंसूओं को भी छिपाने की हिम्मत हासिल कर ली है। नि:संदेह, जीवन के दु:ख सहने की ताकत भी देते हैं।
यह कहानी है श्रीमती आशा रावत (55 वर्ष) की। श्रीनगर गढवाल के पास देवलगढ़ में गौरा देवी मंदिर की ओर के रास्ते के मुख्य गेट के सामने उनकी चाय-परचून की दुकान है। पति और जवान पुत्र को खोने के बाद बहू और पोती-पोते का वही सहारा है। इसलिए अपने में हिम्मत तो उसे हर हाल में जुटानी ही है। भोर से लेकर देर रात तक की हाड़-तोड़ मेहनत करते हुए उसने अपने दु:खों को दफ्न कर दिया है। उसके अहसास को वह चेहरे पर नहीं लाने देती है। गांव और देवलगढ़ मंदिर आने वाले लोगों की जरूरत के अनुसार की दुकान वो चलाती हैं। साथ ही दो गायों के साथ खेती-बाड़ी और दुनियादारी के काम तो हुए ही।
‘कहीं से आपको सरकारी मदद भी मिली’, मैंने जानना चाहा। ‘फूटी कौड़ी भी नहीं’ भै सहाब। अब तक तो मंत्री और मुख्यमंत्री ने मदद करेंगे-करेंगे ही कहा। भगवान जाने करते भी हैं या नहीं। जान-पहचान और रिश्तेदारों ने ही मदद और ढांढस बंधाया है। सरकार हम गरीबों का क्यों भला करेगी ? सरकार तो भाषण देती ही अच्छी लगती है।
जीवन की विकटता से जूझती आशा रावत को देखकर लगा कि कहां है वो सरकारी कल्याणकारी योजनाएं जिनका दंभपूर्ण प्रचार चारों ओर से किया जाता है। जमीनी हकीकत से उनका वास्ता कब होगा ? हालांकि यह मामला संज्ञान में आने पर सांसद प्रदीप टम्टा ने यथा संभव मदद का संकल्प भी जताया है
मित्रों, देवलगढ़ में राजराजेश्वरी और गौरा देवी के मंदिर के अलावा एक और देवी का मंदिर है। और वो है कर्मठ और जांबाज आशा रावत जी की सड़क किनारे की दुकान, जहां काल की क्रूरता हारती नजर आती है। देवलगढ़ जब आना हो तो आशा बहन को उसके हौसले की ज़रूर शाबाशी देना।