2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान पिछली सरकार में अपनेे साथ कैबिनेट मंत्री रहे निर्दलीय दिनेश धनै को हरीश रावत ने कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लडऩे का ऑफर दिया तो दिनेश धनै ने यह कहते हुए हरीश रावत का प्रस्ताव ठुकरा दिया कि उन्हें कांग्रेस के सिंबल की जरूरत नहीं है। उन्होंने इतने काम कर दिए हैं कि अब सिर्फ जीत का मार्जिन बढ़ाने पर काम चल रहा है।
भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी की जमानत जब्त होनी तय है। साथ ही उन्होंने हरीश रावत को सलाह दी कि वे किशोर उपाध्याय को टिहरी से चुनाव लड़वाएं, ताकि कांग्रेस को यह मालूम हो जाए कि कांग्रेस और दिनेश धनै में क्या अंतर है।
कांग्रेस का सिंबल ठुकराने के बाद दिनेश धनै लगातार तीसरी बार निर्दलीय मैदान में उतरे तो टिहरी विधानसभा के मतदाताओं ने दिनेश धनै को 6 हजार वोटों से हराकर उनका जवाब दे दिया कि राजनीति में अहंकार के लिए कितना स्थान है और विकास कार्यों की असली कहानी पिछले पांच वर्षों में क्या थी।
2012 के विधानसभा चुनाव में 300 वोटों से जीतने के बाद विधायक बने दिनेश धनै के पैर कभी जमीन पर नहीं रहे। ढाई साल तक कैबिनेट मंत्री और गढ़वाल मंडल विकास निगम के अध्यक्ष रहते दिनेश धनै का असामान्य व्यवहार आखिरकार उन्हें ले डूबा। विधायक बनते ही जिस प्रकार की हरकतें दिनेश धनै ने की, वह उनके वास्तविक चरित्र से भी मेल खाता था।
इस बीच राज्य में राज्यसभा की सीट खाली हुई तो दिनेश धनै ने तांडव मचा दिया कि इस बार तो वही राज्यसभा जाएंगे। बाद में हुई डील के बाद दिनेश धनै तब राज्यसभा प्रत्याशी प्रदीप टम्टा के प्रस्तावक बनकर सामने आए। टिहरी विधानसभा से विधायकी का चुनाव हारने के बाद आजकल दिनेश धनै अपने समर्थकों से उनके द्वारा टिहरी लोकसभा से 2019 का चुनाव लडऩे का प्रचार-प्रसार करवा रहे हैं। समर्थक इतने कलाकार हैं कि जगह-जगह जाकर बता रहे हैं कि दिनेश धनै इस बार शरद पंवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस या ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के बैनर तले चुनाव लड़ेंगे। हो सकता है कि अब कांग्रेस द्वारा ठुकराए जाने के बाद कांग्रेस छोड़कर गए लोगों की शरण का ही सहारा हो।
विधानसभा के भीतर सवालों के गलत जवाब देने से लेकर विधायक बनते ही सोनिया दरबार में सलाम ठोकते हुए यह कहना कि कुछ भी हो जाए, हरीश रावत को कभी मुख्यमंत्री नहीं बनने दूंगा, जैसी बचकानी हरकत करने वाले दिनेश धनै कब लोकसभा पहुंचते हैं, उनके समर्थकों को इंतजार है।