उत्तराखंड में हो रहे जमीन घोटालों के संबंध में समाचार पत्रों में आए दिन खबरें छप रही हैं। जिससे सचिवालय के कर्मचारियों पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। सचिवालय के कुछ कर्मचारी आवास समितियों के नाम पर जमीनों की खरीद-फरोख्त में लगे हैं। एक व्यक्ति ने इसकी शिकायत भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, सतर्कता और एमडीडीए से भी की है। सचिवालय की उच्च संस्था का दायित्व प्रदेश के विकास एवं नीति निर्धारण का होना चाहिए न कि सचिवालय की आड़ में सरकारी जमीनों की खरीद-फरोख्त में संलिप्त होना। सचिवालय में सहकारी आवास समिति के नाम से कुछ अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर जमीन की खरीद-फरोख्त की है। इसमें कुछ जमीन में खासा विवाद भी है। इस संबंध में मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण द्वारा भी आपत्ति दर्ज की गई है। वर्तमान में हालत यह हो गई है कि जिन लोगों ने प्लॉट खरीदने के लिए इस समिति को धन दिया था, वे भी अपनी रकम वापस मांगने के लिए जोर लगाने लगे हैं।
सूत्रों के अनुसार इस संबंध में इस आवास समिति की शिकायत का संज्ञान लेते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी एक पत्र शासन को जांच के लिए भेजा था। जिसे सतर्कता विभाग की ओर से जिलाधिकारी देहरादून को भेजा गया था। जिलाधिकारी ने इस संबंध में एक जांच कमेटी भी बना दी है।
वहीं दूसरी ओर सचिवालय के अधिकारियों के एक दूसरे गुट ने भी सहकारी आवास समिति के नाम पर बड़े पैमाने पर जमीन खरीदी थी, किंतु मुनाफा दिखने पर उस जमीन को प्लॉट काटकर समिति के मेंबरों को देने की बजाय एकमुश्त किसी और को बेच दिया। अब प्लॉट के लिए पैसे देने वाले लोग अपना धन वापस मांग रहे हैं, किंतु उन्हें अपना पैसा वापस लेने में खासी परेशानी हो रही है। जमीन खरीद के इस मामले को लेकर भी एसआईटी जांच कर रही है। जमीन की खरीद-फरोख्त को लेकर इन दोनों आवास समितियों के अधिकारियों में आपस में भी खासा मनमुटाव उत्पन्न हो गया है।
समिति के एक अधिकारी का कहना है कि उन्हें शिकायतों से कोई फर्क नहीं पड़ता। उनका उत्तरदायित्व केवल भूमि के मालिक और समिति के सदस्यों के प्रति है। यदि कहीं कोई गलती होगी तो उसे सुधार लिया जाएगा तथा प्लॉट के लिए धन दे चुके किसी सदस्य को यदि कोई आपत्ति है तो वह अपना धन वापस ले सकता है।