सचिवालय में सहायक समीक्षा अधिकारी के कार्यस्थल पर उत्पीड़न के मामले में जब प्रमुख सचिव राधा रतूड़ी से शिकायत की गई तो सचिव राधा रतूडी ने सचिवालय प्रशासन के सचिव हरबंस सिंह चुघ को इस मामले की जांच करने के लिए सौंप कर कार्यवाही करने का निर्देश दे दिया है।
किंतु कमेटी के गठन और उसकी रिपोर्ट को लेकर अभी से कयासों के बादल नजर आने लगे हैं।
इससे निष्पक्ष जांच होने पर भी सवाल खड़ा हो रहा है। गौर तलब है कि सहायक समीक्षा अधिकारी जिस कार्यालय मे कार्यरत है, वहां पर एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी यूनियन का नेता भी कार्यरत है। कर्मचारी नेता से मिलने के लिए तमाम अन्य कर्मचारी आते-जाते रहते हैं।
पर्वतजन के सूत्रों के अनुसार कर्मचारी नेता अश्लील गालियों वाली शब्दावली मे बात करता है। सहायक समीक्षा अधिकारी महिला कई बार उनके इस तरह के दुर्व्यवहार से झेंप चुकी थी। उनकी इस तरह की शब्दावली से प्रोत्साहित होकर उनसे मिलने के लिए आने वाले अन्य कर्मचारी गाली-गलौज में ही बात करने लगते थे।
कई बार महिला अधिकारी ने उन्हें रोका तो उनसे मिलने आने वाले कुछ कर्मचारियों ने तो उनसे क्षमा मांगी लेकिन चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नेता का दुर्व्यवहार नहीं रुका। जब सहायक समीक्षा अधिकारी ने इसकी शिकायत अपने अनुभाग अधिकारी से की तो अनुभाग अधिकारी भी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नेता के पक्ष में ही बोलने लगा और उल्टे सहायक समीक्षा अधिकारी से ही जमकर बदसलूकी की।
जाहिर है कि महिला अधिकारियों के लिए काम करने की स्थितियां सहज नहीं हैं।
सभी जगह पुरुष प्रधान मानसिकता हावी है। जब सहायक समीक्षा अधिकारी ने सशस्त्र झंडा दिवस के दिन अन्य सहयोगी कर्मचारियों यह बात बताई तो फिर सभी सचिवालय संघ के पदाधिकारियों से मिलने गए और उन्हें पूरी बात बताई लेकिन शीर्ष पदाधिकारी इस मामले को दबाने में लगे रहे और कोई भी कार्यवाही नहीं की।
हार कर सहायक समीक्षा अधिकारी ने प्रमुख सचिव राधा रतूड़ी से इस पूरे प्रकरण की लिखित शिकायत कर दी। सूत्रों के अनुसार जब महिला कार्मिक अपनी सहयोगियों के साथ सचिवालय संघ के पदाधिकारियों से मिली तो उनमें से एक पदाधिकारी ने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नेता का ही पक्ष लिया और साफ कह दिया कि यहां तो ऐसे ही चलेगा और उनके साथ देने आई दूसरी कार्मिक को कहा कि इस मामले में ज्यादा नेतागिरी मत करो ।
राजनीतिक कारणों से सचिवालय संघ के पदाधिकारी भी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का ही साथ देने लगे हैं और उल्टा अपने उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने वाली महिला कार्मिक के खिलाफ ही दुष्प्रचार कर रहे हैं और कह रहे हैं कि यह लेडी तो पहले से ही झगड़ालू है। इसकी किसी से नहीं बनती।
जाहिर है कि सचिवालय पूरे राज्य की ब्यूरोक्रेसी का शीर्ष केन्द्र होता है।
सचिवालय में आए दिन ईव टीजिंग और यौन उत्पीड़न की घटनाएं चर्चा का विषय बनती रहती है। जब कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़न की घटनाओं पर भी रोक लगाने के लिए सचिवालय प्रशासन प्रभावी कदम नहीं उठा पाता है तो अन्य घटनाओं का अंजाम तो समझा जा सकता है। यह भी तब है जब कि उक्त सहायक समीक्षा अधिकारी सचिवालय प्रशासन के ही अनुभाग में कार्यरत है।
वर्ष 2013 में केंद्र सरकार द्वारा कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़न का कानून लागू किया गया था। किंतु तब से आधा दर्जन से अधिक शिकायतें उच्चाधिकारियों तक की गई है किंतु हर बार मामला रफा-दफा कर दिया गया। शिकायतकर्ता महिला को ही इतना दोषी ठहरा दिया जाता है कि वह भी अपनी शिकायत वापस लेने अथवा आगे कोई कार्यवाही न करने के लिए मजबूर कर दी जाती है।
उसे उसके पुरुष उच्चाधिकारी ऐसा न करने के लिए मानसिक दबाव बनाने में पीछे नहीं रहते। देखना यह है कि इस मामले में कब तक जांच कमेटी गठित होती है और वह कब तक सभी पक्षों को सुनने के बाद अपनी रिपोर्ट देती है।
अनुभाग में अभी से महिला कार्मिक के मामले को रफा-दफा करने की कोशिशें शुरू हो गई है। महिला कार्मिक के पक्ष के कर्मचारियों का काफी ब्रेनवाश किया जा रहा है और पक्ष में बोलने की आशंका वाले कर्मचारियों का दूसरे अनुभागों में ट्रांसफर करने की भी तैयारी हो चुकी है। ऐसे में देखना यह है कि जांच कमेटी क्या रिपोर्ट देती है।