सचिवालय में फिर तैनात 75 साल के बूढे  : यहां कोई रिटायर नही होता!

 विनोद कोठियाल 
सचिवालय में नियोजन विभाग में 75-75 साल के रिटायर अफसर तैनात हैं। वे काम क्या कर पाते होंगे, समझा जा सकता है।सचिवालय संभवतः इन्हे एक बार पुनर्नियुक्ति देने के बाद भूल गया है।
उत्तराखंड में अफसरशाही रिटायर होने का नाम ही नहीं लेती। जो अफसर पूरे सेवाकाल के दौरान कोई आउटपुट नहीं दे पाया, वह भी चाहता है कि रिटायर होने के बाद भी उसके लिए वेतन, गाड़ी, चपरासी, अर्दली आदि की व्यवस्था बनी रहे। इसके लिए अधिकांश अफसर सेवाकाल के दौरान सामयिक मुख्यमंत्रियों को नियम-कायदों से परे जाकर उपकृत करते हैं और बदले में कोई अनाप-शनाप आयोग गठित कराकर उस पर विराजमान हो जाते हैं।
उदाहरण के तौर पर सेवा का अधिकार आयोग पूरे भारतवर्ष में सिर्फ बैंगलौर में ही है। उसकी तर्ज पर अधिकारियों ने उत्तराखंड में भी सेवा का अधिकार आयोग बनाए जाने की पट्टी पढ़ाई और अपने लिए ऐशोआराम के इंतजाम कर लिए। सेवा का अधिकार आयोग में पहले से ही पूर्व मुख्य सचिव आलोक कुमार जैन और पूर्व पुलिस महानिदेशक सुभाष जोशी विराजमान हैं। इनके पास लगभग कोई काम नहीं है। चंद घंटों के लिए ऑफिस आकर ये लोग उत्तराखंड पर एहसान कर रहे हैं।
इसके अलावा सेवा के अधिकार आयोग में पंकज नैथानी सचिव के रूप में अर्थ एवं सांख्यिकी विभाग से प्रतिनियुक्ति पर तैनात हैं। यह अधिकारी नियम विरुद्ध प्रतिनियुक्ति पर है। इस अधिकारी का प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए इनके डिपार्टमेंट ने कड़ा विरोध किया था। इस अधिकारी के प्रतिनियुक्ति पर जाने के कारण इसकी गैर जिम्मेदारी के कारण सांख्यिकी विभाग के कई करोड़ रुपए लैप्स हो गए। जिसके लैप्स होने के लिए सिर्फ नैथानी ही जिम्मेदार थे।
इस प्रकार से हम समझ सकते हैं कि इस आयोग के कारण एक तो सांख्यिकी विभाग में मानव शक्ति और धन की व्यापक हानि हुई, वहीं सेवा के अधिकार आयोग में जनता का फायदा तो कुछ नहीं हुआ, उल्टे भारी-भरकम धनराशि इस आयोग के दफ्तर, कर्मचारियों, वाहनों और फोन, स्टेशनरी आदि पर खर्च हो रही है। जब जनता से जुड़े प्रत्येक सेवा कार्य के लिए अलग से विभाग अस्तित्व में हैं और उन कार्यों को कराने की जिम्मेदारी संबंधित विभाग के मुखिया पर और जिला स्तर पर जिलाधिकारी जनता की समस्याओं का निस्तारण कर सकते हैं तो फिर सेवा का आयोग जैसे सफेद हाथी क्यों पाले जा रहे हैं?
यही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जाते-जाते तत्कालीन राजस्व सचिव डीएस गर्ब्याल को भी सेवानिवृत्ति से पहले ही सेवा का अधिकार आयोग में तैनात कर दिया था। यह कार्य इतनी हड़बड़ी और इतने दिलचस्प तरीके से किया गया कि जैसे श्री गब्र्याल के साथ-साथ हरीश रावत को भी पक्का एहसास था कि उनकी सरकार दोबारा से सत्ता में नहीं आएगी।
यही नहीं राज्य में विधिक आयोग का भी गठन किया गया था, जबकि इसी तरह का एक तीन सदस्यीय विधिक आयोग पहले से ही अस्तित्व में था। इन दोनों विधिक आयोगों ने राज्य को कोई आउटपुट नहीं दिया। सिर्फ वेतन और अन्य भारी-भरकम खर्चों के अलावा इन आयोगों की उपलब्धि इतनी सी थी कि राजेश टंडन जैसे पूर्व न्यायधीशों को यहां कुछ दिन ऐशोआराम हासिल हो गया। आपदा घोटाले में कांग्रेस सरकार को क्लीनचिट देने वाले एन नागराजन को कुर्सी देने के लिए जल आयोग बनाकर ईनाम दिया गया।
 सरकार को यथाशीघ्र इस तरह के आयोगों की उपयोगिता का मूल्यांकन कर अनावश्यक आयोग खत्म कर देने चाहिए।
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