आखिरकार अजय भट्ट के नेतृत्व में प्रदेश भाजपा ने आजीवन सहयोग निधि के रूप में जुटाए गए टारगेट को पूरा कर ही लिया।
भाजपा ने केंद्रीय महामंत्री संगठन रामलाल को 25 करोड़ 11 लाख 11,000 की धनराशि का चेक सौंपा तो रामलाल ने इस पूरे फंड को प्रदेश भाजपा संगठन को सौंप दिया।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से लेकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट और संगठन के तमाम नेता भारी संख्या में मौजूद थे।
देहरादून के एक फार्म हाउस में यह कार्यक्रम रखा गया था। 25 करोड़ के लक्ष्य से 11 लाख 11,000 रुपए ज्यादा की रकम हासिल करके भाजपा उत्साहित हैं। इस अवसर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत काफी उत्साहित दिखे और उन्होंने कहा -“हमने लक्ष्य ही पूरा नहीं किया बल्कि उससे ज्यादा प्राप्त कर कीर्तिमान हासिल किया है।”
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने शुरू से ही सारी सहयोग निधि चेक और पैन कार्ड नंबर के साथ लेने का संकल्प किया था। साथ ही यह संकल्प भी किया था कि किसी भी सरकारी कर्मचारी अधिकारी से धन नहीं लिया जाएगा। हालांकि कांग्रेस ने जबरन सहयोग निधि लिए जाने के आरोप भी लगाए थे किंतु इसे साबित नहीं कर पाए।
इससे कहा जा सकता है कि अजय भट्ट इस संकल्प पर खरे उतरे। पारदर्शिता की ओर भाजपा संगठन का यह कदम भविष्य के लिए एक अच्छी शुरुआत माना जा सकता है। इस तरह के संकल्प के लिए किसी का भी कोई दबाव नहीं था फिर भी भाजपा ने खुद से यह संकल्प करके इस पर खरा उतर कर शुचिता की राजनीति की ओर एक कदम बढ़ाया है, ऐसा कहा जा सकता है।
एक बड़ा सवाल यह है कि भाजपा जैसी पार्टी जिसमें तमाम कद्दावर मंत्री सांसद और ट्रिपल इंजन की सरकार का दौर है, उनके लिए 25 करोड़ जैसी धनराशि जुटाना बहुत मामूली सी बात है। फिर क्यों वार्ड वार्ड मेंबर को भी सहयोग निधि जनता से एकत्र करने का लक्ष्य दिया गया था !!
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे पार्टी के लिए फंड जुटाना तो एक छोटा सा काम था, इसके पीछे एक बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक कारण और भी था।
भाजपा के थिंक टैंक का मानना है कि कोई भी व्यक्ति भले ही ₹10 भी पार्टी के फंड में एक बार दे दे तो पार्टी के प्रति उसका अटैचमेंट हो जाता है। आने वाले समय में यही अटैचमेंट वोट में बदलने का शुरुआती फेस होता है।
इसे कुछ समझ सकते हैं कि हम दुकानदार से अपने लिए कोई कपड़ा खरीदते हैं तो फिर उस कपड़े के विषय में दूसरे के मुंह से कोई नुक्स सुनना पसंद नहीं करते। ऐसे ही यदि कोई व्यक्ति पार्टी को एक बार कुछ ना कुछ पैसा दे दे तो फिर वह उस पार्टी के विषय में आलोचना सुनना पसंद नहीं करेगा।
भाजपा के अनुषांगिक संगठन द्वारा चलाए जा रहे सरस्वती शिशु मंदिरों में भी यही तरकीब अपनाई जाती है। स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले आचार्य बच्चों के अभिभावकों से जब संपर्क पर मिलने जाते हैं तो उनके यहां बैठकर चाय जरूर पीते हैं। चाय के बहाने वह बच्चों के अभिभावकों से दो बातें कर लेते हैं और उनका मन जीत लेते हैं। भाजपा जैसी कैडर आधारित पार्टी का ग्रास रूट लेवल पर इतने बड़े आधार का यह एक बड़ा मनोवैज्ञानिक कारण हैं। यही मनोवैज्ञानिक कारण आम आदमी को पार्टी के पक्ष में सुनने और सोचने की पहली सीढ़ी बन जाता है।