कुमार दुष्यंत/हरिद्वार
सत्ता जाते ही अपने किस बे-रुखी से साथ छोड़ जाते हैं, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इसका उदाहरण बने हुए हैं। हरिद्वार में कलतक जो लोग उनके साए की तरह उनसे चिपके रहते थे। सत्ता जाने के बाद हरिद्वार में हो रहे रावतजी के धरने-प्रदर्शनों से गायब हैं। इतने तक भी गनीमत है। लेकिन कल के अपने आज खिलाफ ही खड़े होने लगें तो?
हरदा ने पिछले महीने हरकीपैडी पर भाजपा सरकार के खिलाफ दो धरने-प्रदर्शन किये।होना तो यह चाहिए था कि त्रिवेन्द्र सरकार की घेराबंदी के लिए पूरी कांग्रेस मिलकर इन धरना-प्रदर्शनों को सफल बनाती। लेकिन इसके उलट कभी हरीश रावत के साथ चिपके रहने वाले चेहरे भी इनसे गायब रहे। इतना ही नहीं, इस धरना-प्रदर्शन के चार दिन बाद दो कांग्रेसियों ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर हरकीपैडी पर राजनीतिक आयोजनों पर रोक लगाने की ही मांग कर डाली! स्वभाविक तौर पर हरीश रावत ही इस ज्ञापन के निशाने पर थे।
भारत साधु समाज के लैटर पैड पर लिखे इस ज्ञापन पर जिन दो कांग्रेसियों के हस्ताक्षर थे।उनमें से एक ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी पार्टी के प्रदेश कोषाध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष रह चुके हैं।ब्रह्मस्वरूप कांग्रेस टिकट पर गत विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं।वर्ष 2009 में वह हरिद्वार से लोकसभा टिकट के भी दावेदार थे। लेकिन टिकट मिला हरीश रावत को।
खैर, उनकी नाराजगी समझ आती है।लेकिन इस ज्ञापन पर जो दूसरा नाम ऋषिश्वरानंद उर्फ संजय महंत का है वह भी पुराने कांग्रेसी हैं। कांग्रेस टिकट पर मेयर का चुनाव लड़ चुके हैं । हरीश रावत के न केवल धुर समर्थक माने जाते हैं।बल्कि उनके सांसद रहते हुए उनका कैंप कार्यालय भी इन्हीं ऋषिश्वरानंद के आश्रम में ही खुला रहा!
अब यह उनकी नाराजगी है या सत्ता जाने का विकृषण यह तो ये कांग्रेसी ही जानें! लेकिन हरदा तो बेपर्दा कर दिये न!