भर्ती घोटाला: अपर निजी सचिव पद के लिए झटके मे 1884 अभ्यर्थी बाहर। 122 पदों के लिए सिर्फ 150 मैदान में

अपर निजी सचिव पद के लिए झटके मे 1884 अभ्यर्थी बाहर। 122 पदों के लिए सिर्फ 150 मैदान में

सरकार की गलत नीतियों की मार सीधा प्रदेश के बेरोजगारों पर
– गलत नीतियों के कारण एक झटके में बाहर हुए 1884 परीक्षार्थी
– अपर निजीसचिव के 122 के लिए अब केवल 150 अभ्यर्थी मैदान में

रिपोर्ट- जगदम्बा कोठारी
देहरादून। प्रदेश में 7 लाख से अधिक युवाओं को रोजगार देने का खोखला दावा करने वाली त्रिवेंद्र सरकार की हकीकत कुछ और ही बयां करती है। हम बताने जा रहे हैं कि, प्रदेश सरकार की गलत नीतियों का खामियाजा किस तरह प्रदेश के शिक्षित बेरोजगारों को भुगतना पड़ रहा है और सालों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, तभी से परीक्षार्थियों का मनोबल गिराया जा रहा है।

दरअसल उत्तराखंड लोक सेवा आयोग ने जुलाई 2017 में सचिवालय में अपर निजी सचिव के 122 पदों पर विज्ञप्ति जारी की थी। 11 नवंबर 2017 को प्री परीक्षा आयोजित भी की गई। इस परीक्षा को कुल 2034 अभ्यर्थियों ने पास भी किया। जिसका परिणाम 11 अप्रैल 2018 को जारी किया गया। पास हुए इन अभ्यर्थियों से आयोग ने 27 अप्रैल 2018 को अगली मुख्य परीक्षा के लिए आवेदन मांगे थे। मगर हैरत की बात है कि, प्री परीक्षा 2034 अभ्यर्थियों ने पास की थी। लेकिन अब आयोग ने केवल 150 परीक्षार्थियों को ही अगली परीक्षा में बैठने की अनुमति प्रदान करी है। शेष 1884 अभ्यर्थियों को बिना परीक्षा दिए ही परीक्षा से बाहर का रास्ता दिखा दिया है।जबकि अभी परीक्षा में आशुलिपि, टाइपिंग सहित कंप्यूटर की परीक्षा भी होना बाकी है।

आयोग ने अभ्यर्थियों को बाहर करने का कारण मान्यता प्राप्त संस्थान से 1 वर्ष का कंप्यूटर प्रमाण पत्र ना होना बताया है। जबकि सरकार के द्वारा मान्यता कंप्यूटर संस्थान का प्रमाण पत्र भी आयोग के द्वारा अमान्य करार कर दिया गया है। जिस कारण आयोग ने 1884 अभ्यर्थियों को प्रथम परीक्षा पास करने के बावजूद भी बाहर कर दिया। अब मात्र 122 पदों के लिए केवल 150 अभ्यर्थी ही मैदान में हैं। जिसके लिए इन 150 अभ्यर्थियों को इसी माह 21 सितंबर से आयोग की तरफ से प्रवेश पत्र आना भी शुरू हो गए हैं और अगले माह 8 अक्टूबर से 16 अक्टूबर तक आठ अलग-अलग विषयों पर इनकी परीक्षा होनी है। अब आश्चर्य की बात यह है कि, कंप्यूटर में मास्टर की डिग्री ले चुके परीक्षार्थियों की डिग्री को भी आयोग ने अमान्य घोषित कर दिया है। साफ शब्दों में कहें तो सरकार की गलत नीतियों के चलते परीक्षा में कंपटीशन ही खत्म हो गया है या साजीशन कर दिया गया है।

हैरत है कि, प्रदेश सरकार के द्वारा ही मान्यता प्राप्त कंप्यूटर संस्थान से जारी प्रमाण पत्रों को भी सरकार द्वारा अमान्य बताया गया है। वर्तमान में उत्तराखंड सरकार के द्वारा मान्यता प्राप्त दो ही कंप्यूटर संस्थान प्रदेश में संचालित है। जिनमें पहले नंबर पर ‘हिल्ट्रॉन’ और दूसरे नंबर पर ‘नीट’ का नाम आता है। सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त दोनों ही संस्थानों की प्रदेश के कई शहरों में शाखाएं हैं। अब ऐसे में प्रश्न उठना लाजमी है कि अगर सरकार द्वारा इन संस्थानों से जारी किए गए प्रमाण पत्रों को अवैध बताना है तो इन संस्थानों पर कार्रवाई कर ताले क्यों नहीं लगा दिए जाते। बेवजह सालाना लाखों रुपए फूंक कर छात्र-छात्राएं इन महंगे संस्थानों में कंप्यूटर प्रशिक्षण ले रहे हैं और सरकार के द्वारा ही यह मान्य नहीं हैं तो ऐसे में एक बेरोजगारों का डिप्रेशन में जाना स्वाभाविक है।

एक ओर शासन इन प्रमाणपत्रों को अवैध बता रहा है, वहीं आयोग इनको वैध मानता है।

अन्य राज्यों में ए पी एस की परीक्षा के लिए ट्रिपल सी सर्टिफिकेट  मांगा जाता है उत्तर प्रदेश में भी इस पोस्ट के लिए ट्रिपल सी सर्टिफिकेट मांगा जाता है फिर उत्तराखंड में कंप्यूटर डिप्लोमा के सर्टिफिकेट की भला क्या जरूरत है !

सरकार की इस दोगली नीति की मार सीधा प्रदेश के प्रशिक्षित बेरोजगारों पर पड़ रही है। 

लगभग 1900 परीक्षार्थियों को इसी वजह से एक झटके में बाहर कर एक तरीके से परीक्षा को कंपटीशन मुक्त ही कर देना क्या लोकतंत्र के हित में है। सरकार की इस दोगली नीति का प्रदेश के बेरोजगार खुलकर विरोध भी कर रहे हैं। बाहर किए गए इन अभ्यर्थियों ने अब कोर्ट का रास्ता लिया है जिस पर अभी सुनवाई होना बाकी है।

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