विधायक मगनलाल शाह की मौत के बाद विधानसभा के उपचुनाव में कांग्रेस ने तो पूर्व विधायक और अपने हारे हुए प्रत्याशी डॉ जीतराम को प्रत्याशी घोषित कर दिया था किंतु भाजपा आज तक भी प्रत्याशी का नाम खोलने का साहस नहीं कर पा रही है।
यदि स्वर्गीय मगनलाल की पत्नी और जिला पंचायत अध्यक्ष मुन्नी शाह को टिकट दिए जाने का खुलासा करते हैं तो एक तो वंशवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगेगा, दूसरा स्वर्गीय विधायक की मौत को भुनाने की राजनीति करने का भी आरोप लगेगा। तीसरा चंद दिन पहले भाजपा में लाए गए गुड्डू लाल का बागी होना तय है।
यदि भाजपा फिर से बागी तेवर दिखा चुके गुड्डू लाल को प्रत्याशी बनाती है तो भाजपा पर “बागी वाद” को बढ़ावा देने का आरोप लगना तय है।
गुड्डू लाल भाजपा का प्रत्याशी बनने की प्रत्याशा में चंद रोज़ पहले भाजपा में आए थे। जैसे ही गुड्डू लाल को शनिवार को इस बात के संकेत मिले कि भाजपा मुन्नी देवी को प्रत्याशी बना रही है तो उन्होंने खुलेआम टिकट न मिलने पर निर्दलीय लड़ने की घोषणा कर दी है। गुड्डू लाल के तीखे तेवरों की एक वजह यह भी है कि उन्हें विधायक महेंद्र भट्ट ही भाजपा का प्रत्याशी बनाए जाने का वादा करके पार्टी में लाए थे हालांकि अब वह ऐसे किसी भी वायदे से इनकार कर रहे हैं। इससे क्षेत्रीय जनता में भी आक्रोश है। भाजपा के अन्य प्रत्याशियों की अपेक्षा गुड्डू लाल काफी लोकप्रिय है और वह वर्तमान में जिला पंचायत सदस्य भी हैं।
मुन्नी देवी का कहना है कि उन्हें मुख्यमंत्री की ओर से तैयारी करने का संकेत मिला था। मुन्नी देवी के साथ पति की मौत से उपजी सहानुभूति है तो गुड्डू लाल के साथ भी टिकट काटने को लेकर एक बड़े वर्ग की सहानुभूति तेजी से झुकती जा रही है।
गुड्डू लाल पहले भाजपा के ही कार्यकर्ता थे और टिकट न मिलने पर उन्होंने भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ बागी के तौर पर पिछला विधानसभा चुनाव लड़ा था और तीसरे स्थान पर रहे थे।
जाहिर है कि इस सीट पर जीत हार का अंतर काफी कम रहा है। पिछले चुनाव मे उफान पर रहने वाली मोदी लहर अब उतार की ओर है और सामने राजनीतिक रूप से अपेक्षाकृत मजबूत उम्मीदवार मगनलाल भी नहीं रहे। ऐसे में गुड्डू लाल न सिर्फ इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी की हार का कारण बन सकते हैं, बल्कि प्रदेश में मृत पड़ी कांग्रेस के लिए भी संजीवनी का काम कर सकते हैं। यदि निर्दलीय गुड्डू लाल जीते तब भी कांग्रेस इसे भाजपा की हार के रूप में मनाएगी। और यदि जीतराम जीते तो कांग्रेस की तो बल्ले-बल्ले है ही।
भले ही 11 विधायकों की प्रदेश कांग्रेस में एक और विधायक जुड़ने से संख्याबल कुछ खास नहीं पड़ेगा किंतु मनोबल अवश्य आसमान पर पहुंच सकता है।
भाजपा के अंदर गुड्डू लाल के निर्दलीय लड़ने की आशंका से इतना भय है कि प्रत्याशी की घोषणा करने उत्तराखंड पहुंचे श्याम जाजू भी मुन्नी देवी को प्रत्याशी के रूप में घोषित करने का साहस नहीं कर पाए और सार्वजनिक रूप से उनके उत्तराखंड दौरे के औचित्य को लेकर जनता भी सवाल खड़े करने लग गई।
जब मुन्नी देवी ने नामांकन के आखिरी दिन 10 मई को सार्वजनिक सभा करने की अनुमति मांगी तब एक तरह से यह साफ संकेत हो गया कि भाजपा ने मुन्नी देवी को ही अपना अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया है।
एक तरफ वंशवाद को बढ़ावा देने के आरोप दूसरी तरफ बागियों के दबाव में आने के आरोप तो तीसरी तरफ अलोकप्रिय सरकार साबित होने का ठप्पा।
यह सीट एक तरह से भाजपा के लिए गले की हड्डी बन गई है और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए खुद को साबित करने का यह आखरी मौका भी हो सकता है। यदि वह चूक गए तो चौतरफा उन को घेरने में जुटे विरोधी यह मौका नहीं चूकेंगे।