उत्तराखंड के तमाम इंजीनियरिंग कॉलेजों के रजिस्ट्रार और निदेशकों की नियुक्तियों में धांधलेबाजी की शिकायतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही है।
ताजा मामला फिर से घुड़दौड़ी इंजीनियरिंग कॉलेज पौड़ी के रजिस्ट्रार और निदेशक की नियुक्ति को लेकर है। इस कॉलेज में फिर से जिनको रजिस्ट्रार और निदेशक बनाए जाने की चर्चा है उन दोनों के शैक्षिक दस्तावेजों में गड़बड़ियां हैं और इनकी डिग्रियां ही फर्जी हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन दोनों की नियुक्ति प्रशासकीय परिषद के अध्यक्ष द्वारा की जाती है। मजेदार बात यह है कि प्रशासकीय परिषद के अध्यक्ष मुख्यमंत्री स्वयं हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के संज्ञान में इन दोनों पदों के लिए मुख्य दावेदारों की डिग्रियां फर्जी होने का मामला है। इसके बावजूद 16 जून को मुख्यमंत्री निवास पर हुई प्रशासकीय परिषद की बैठक के बाद रजिस्ट्रार के पद पर फर्जी डिग्रीधारी और अपर मुख्य सचिव तकनीकी शिक्षा ओम प्रकाश के खासमखास संदीप कुमार को तैनात किए जाने की पूरी तैयारी है। खुद भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता तथा अन्य संगठनों के लोग भी मुख्यमंत्री को संदीप कुमार के भ्रष्टाचार और उसकी फर्जी डिग्रियों से अवगत करा चुके हैं। एक ओर संदीप कुमार को रजिस्ट्रार बनाए जाने की तैयारी है तो दूसरी ओर डॉ गीतम सिंह तोमर को घुड़दौड़ी इंजीनियरिंग कॉलेज का डायरेक्टर बनाए जाने की तैयारी हो रही है। जबकि डॉक्टर गीतम सिंह तोमर की डिग्रियां भी फर्जी हैं और इन पर तमाम सवाल उठाए जा रहे हैं, जो कि राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री दोनों के संज्ञान में हैं।
गीतम सिंह तोमर को हटाने के लिए हाइड्रो इंजीनियरिंग इंस्टिट्यूट के तमाम कर्मचारी भी लामबंद हो गए हैं और उन्होंने 19 जून को कुलपति तथा राज्यपाल को भी निदेशक तोमर की शिकायत की है। पलटवार के रूप में निदेशक ने भी उपनल के कर्मचारियों को हटाने के लिए उपनल को पत्र लिख दिया है।
पर्वतजन के पाठकों के संज्ञान में एक विशेष तथ्य यह लाया जा रहा है कि प्रभारी कुलसचिव के पद पर रहने के दौरान संदीप कुमार ने कॉलेज की मैस के आवंटन में घोटाला किया था और इसकी जांच डॉक्टर गीतम सिंह तोमर को सौंपी गई थी। डॉक्टर गीतम सिंह तोमर ने अपनी जांच रिपोर्ट में संदीप कुमार को क्लीन चिट दे दी। डॉ गीतम सिंह तोमर को कॉलेज का डायरेक्टर बनाए जाने के पीछे भी संदीप कुमार के समीकरण ही काम कर रहे हैं।
यदि डॉ. गीतम घुड़दौड़ी इंजीनियरिंग कॉलेज के डायरेक्टर बन जाते हैं और संदीप कुमार रजिस्ट्रार बन जाते हैं तो कॉलेज में अब तक के तमाम घपले-घोटालों को रफा-दफा किया जा सकता है।
पर्वतजन संदीप कुमार की फर्जी डिग्रियों का प्रकरण पहले ही प्रकाशित कर चुका है। इस बार देखिए कॉलेज के संभावित डायरेक्टर डॉ गीतम तोमर की डिग्रियों पर एक नया खुलासा। स्वयं टिहरी हाइड्रो इंजीनियरिंग कॉलेज की प्रोफेसर ने ही अपने निदेशक की डिग्रियों पर सवाल उठाते हुए झंडा झंडा बुलंद कर दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री, राज्यपाल से लेकर भारत सरकार के तमाम अधिकारियों को डॉ गीतम तोमर की डिग्रियां फर्जी होने तथा तमाम भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। डॉ गीतम तोमर वर्तमान में टिहरी हाइड्रो इंजीनियरिंग कॉलेज के डायरेक्टर हैं।
निदेशक द्वारा तथ्यों को नियुक्ति से पूर्व छुपाया जाना:
निदेशक डॉ. गीतम सिंह तोमर, THDC हाइड्रो पावर संस्थान टिहरी गढ़वाल ने नियुक्ति से पूर्व तथ्यों को छुपा दिया है। वे नियमित बी. टेक नहीं हैं न ही उनके पास कोई बी. टेक. या बी. इ. की डिग्री है।
जिस संस्थान से उन्होंने अंडर ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की है वह एक organization है। यह कोई नियमित कोर्स का संस्थान या कॉलेज नहीं है, जहाँ पर विद्यार्थी अध्ययन करते हैं | वह एक आर्गेनाइजेशन है-“Institution of Engineers (India)” and was incorporated by Royal Charter in 1935. जिसका हेड ऑफिस कोलकाता में है। जो कि AMIE की डिग्री देता है। यह डिग्री बी. टेक. या बी. इ. के समकक्ष मानी जाती है। परन्तु यह डिग्री नियमित/regular डिग्री नहीं है। जो कि AICTE के मानकों के अनुसार निदेशक पद के किये अनिवार्य है। Institution of Engineers (India) को कॉलेज या संस्थान बताना तथा वहां से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग की डिग्री दिखाना, धोखाधड़ी के सिवाय कुछ नहीं है। नियुक्ति से पूर्व इस बात को पूरी तरह से छिपा दिया गया है। अतः नियुक्ति से पूर्व तथ्यों को छिपाना व इनके बायोडाटा को पद के लिए चयनित कर लेना, नियुक्ति प्रक्रिया का पूर्ण रूप से उल्लंघन है। जिसकी शिकायत AICTE CHAIRMAN से कुछ दिन पहले ही की जा चुकी हैं।
निदेशक की भ्रष्टाचार में संलिप्तता:
निदेशक महोदय पूरी तरह से प्रसिद्द शोध अभियांत्रिकी पत्रिकाओं (IEEE) के सम्मेलनों में शोध पत्र प्रदर्शित करवाने में निरंतर लगे हैं , जिसमें प्रत्येक शोध पत्र पर आने वाली फीस इनके व्यक्तिगत खाते में जाती है। इन्होने शोध अभियांत्रिकी पत्रिकाओं (IEEE) के सम्मेलनों को नितांत व्यक्तिगत फायदे के लिए प्रयोग किया है।
ऐसा ही एक सम्मलेन निदेशक महोदय दिसम्बर 2016 में संस्थान में ही करवा चुके हैं। जिसका कोई भी खाता तथा आनेवाली फीस का विवरण संस्थान के खाते से क्रियान्वित नहीं हो पाया है। न ही आजतक इन्होने किसी भी RTI का इस विषय पर कोई जबाब दिया है। इस विषय पर किसी भी जबाब को देने से संस्थान के द्वारा मना करवा दिया जाता है। इन्होने बहुत सारे प्रोफेसरों का एक अस्थाई संगठन बनाकर निजी हित के लिए जबरदस्त दरुपयोग में ला रखा है। इस प्रकार माननीय निदेशक महोदय पूरी तौर पर लाखों-करोड़ों की कमाई करने में लगे हुए हैं। इस तरह के धंधे बहुत तेजी से देश में फ़ैल रहे हैं। इस सम्बन्ध में, एक मेल पूरे संसार के विभिन्न देशों में WASHINGTON STATE से MACHINE INTELLIGENCE RESEARCH LABS के नाम से फैला हुआ है। जिसमे इनका नाम विशेष रूप से रेखांकित किया गया है। THDC-IHET संस्थान में निदेशक पद पाने से पूर्व इन्होने अपने आप को इस लैब का ग्वालियर में निदेशक के पद पर दिखा रखा है।
WASHINGTON STATE से प्रचारित मेल पाने के बाद संस्थान के एक वरिष्ठ प्रवक्ता ने इनको मेल भेज कर स्वयं की स्थिति सभी सम्बद्ध विशेष अधिकारियों, शासन, राजभवन व तकनीकी विश्वविद्यालय के अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत करने को कहा, पर आजतक इन्होने यह काम नहीं किया। मजबूरन उस वरिष्ठ प्रवक्ता के द्वारा सम्बद्ध विशेष अधिकारियों, शासन, राजभवन व तकनीकी विश्वविद्यालय के अधिकारियों के समक्ष उचित कार्यवाही हेतु शिकायती पत्र भेजा गया है तथा जिसपर उचित कार्यवाही का सभी लोगों को इंतज़ार है।
निदेशक पद पर अवैध नियुक्ति:
माननीय उच्च न्यायलय के पूर्ण पीठ के फैसले में जो कि Faculty Association, THDC-IHET व अन्य verses उत्तराखंड शासन व अन्य के बीच था, उत्तराखंड शासन को यह निर्देश दिया गया है कि जब तक परिनियमावली नहीं बन जाती है, तब तक संस्थान में UGC / AICTE नियमों का पूर्णरूप से पालन किया जाय। तथा इस स्ववित्तपोषित संघटक संस्थान में परिनियमावली बनाने से पूर्व उत्तराखंड शासन दखल नहीं दे सकता। परन्तु फिर भी मुख्य सचिव, उत्तराखंड शासन की अध्यक्षता में आनन-फानन में निदेशकों की नियुक्ति प्रक्रिया 28 दिसंबर 2015 को ही पूरी की गयी। जो कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है। तथा मार्च-अप्रैल 2016 में ही उत्तराखंड शासन द्वारा अवमानना के नोटिस पर एक शपथ पत्र माननीय उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया गया कि उत्तराखंड शासन ने कोई अवमानना नहीं की है।
आज जबकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय से भी उत्तराखंड शासन को हार का मुँह देखना पड़ा है व उत्तराखंड शासन की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने मेरिट के आधार पर खारिज कर दी है, तिस पर भी उस आदेश को लागू नहीं किया जा रहा है। निदेशक इस हठ पर अड़े हैं कि जेल चला जाऊँगा पर लागू नहीं करूँगा।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अवमानना की नोटिस में निदेशक चार्जशीटेड है पर पूर्ण फैसले को लागू नहीं करेंगे।
इस प्रकार एक पूर्ण रूप से अयोग्य व्यक्ति निदेशक के पद पर विराजमान होकर किस तरह से भ्रष्टाचार में आकंठ डूबकर पूरे उत्तराखंड में शासन द्वारा नित नए नए विशेष कार्य पाकर तथा न्यायालयों की अवमानना कर के क़ानून की धाज्जियाँ उड़ा रहा है। तथा शासन में बैठे किन-किन लोगों का निदेशक के माध्यम से फायदा हो रहा है, बिलकुल साफ होता जा रहा है। योग्य व्यक्तियों के साथ इस सरकार में अधिकारियों द्वारा छलावा करके बिना कार्य के ही बिलकुल किनारे बैठा दिया जा रहा है। अब तो तकनीकी शिक्षा उत्तराखंड का भविष्य भगवान भरोसे ही है।