गिरिराज उनियाल
ये मुम्बई की धारावी बस्ती से बड़ी तो नहीं, लेकिन उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के लिए ये धारावी से कम नहीं है। ये बस्ती देहरादून की धर्मपुर विधानसभा के बंजारावाला के चांदचक की तस्वीर है, जहां सालभर में अचानक 500 से ऊपर झोपड़ी बन गयी और हैरानी की बात तो ये है कि पुलिस प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं लगी। कई बीघा पर बनी हैं। शमुन अली नाम के एक किसान की जमीन पर ये लोग झोपड़ी बना रहे हैं और किराया शमून अली साहब ले रहे हैं।
सवाल इस बात का है कि ये लोग कहां से आये? ये कौन हैं? क्या इनका प्रशासन द्बारा सत्यापन अभी तक क्यों नहीं हुआ है? ये बंगलादेशी या रोहिंग्या मुसलमान तो नहीं? स्थानीय लोगों में भय का वातावरण बना है। ये कूड़ा बीनने का या कबाडी़ व छोटे-मोटे काम कर रहे हैं, पर बिना सत्यापन के इनका यहां रहना सुरक्षा की दृष्टि से बहुत बड़ा खतरा मोल लेने जैसा है।
इनका कहना है हमें नगर निगम ने यहां परमिशन दी है, जबकि ये जमीन नगर निगम की नहीं, बल्कि शमुन अली की है, जो इनसे किराया ले रहा है। इनके पास अपनी पहचान के लिए कोई भी दस्तावेज तक नहीं हैं। ऐसे में सवाल यह है कि ये कौन हैं और कहां से आए हैं? ये आस पास के लोगों के लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं। इनको कौन मदद कर रहा है, ये किसकी शह पर लगातार बसते जा रहे हैं, इस बारे में प्रशासन से लेकर पुलिस और एलआईयू तक को कोई जानकारी नहीं है। सीमांत प्रदेश उत्तराखंड में इस प्रकार की घुसपैठ आने वाले समय में किसी बड़े खतरे का रूप ले, इससे पहले सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
देखना है कि आखिरकार कब सरकार इस पर ठोस कार्यवाही करती है?