कृष्णा बिष्ट/हल्द्वानी
पर्यटकों को सुविधा और अन्य सूचनाएं प्रदान करने के लिए बनाई गए बड़े-बड़े भवन दो-तीन हजार के किराए पर दुकानदारों को सौंप दिए गए हैं
वर्ष 2004 में कांग्रेस शासनकाल का एक कीर्तिमान दर्ज है, जब टी.पी.एस. रावत के पर्यटन मंत्री रहते उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद (यू.टी.डी.बी) द्वारा प्रदेश के कई स्थानों को बगैर सोचे-समझे चिन्हित कर वहां पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर पर्यटन सूचना केंद्र व पर्यटन सुविधा केंद्रों का निर्माण करवाए गए, किंतु करोड़ों रुपये बहाने के बाद भी ये पर्यटन सूचना केंद्र व पर्यटन सुविधा केंद्र मात्र सफेद हाथी बनकर रह गए।
लाखों की लागत से बनी इन इमारतों में आज कहीं नमक बेचा जा रहा है तो कही घोड़े बांधे जा रहे हैं और जो बचे हैं, वो जर्जर हालत में खड़े हैं।
विभागीय अधिकारियों से जब इस संबंध में बात की गई तो पता चला कि विभाग द्वारा इन भवनों को किराये पर देने की लंबे समय से कोशिश की जा रही है, किंतु किराया कई बार घटाने के बावजूद विभाग को इन भवनों के लिए किराएदार नहीं मिल रहा। थक हारकर विभाग इन इमारतों को औने-पौने दामों पर देने को मजबूर है।
कुमाऊं मंडल नैनीताल के अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार हल्द्वानी अल्मोड़ा मार्ग मे पडऩे वाले काकड़ीघाट में पर्यटन विभाग द्वारा रु.10,14000 लागत का एक पर्यटन सूचना केंद्र भवन बनवाया गया था, किंतु तब से आज तक शायद ही वहां से किसी पर्यटक को कोई सूचना मिली हो। इतना खर्च करने के बाद वर्तमान मे पर्यटन विभाग द्वारा उस भवन को महज रु.1000 प्रतिमाह की दर पर एक एनजीओ को दे वहां पहाड़ी नमक बिकवाया जा रहा है।
उस दौरान इसी प्रकार रु.10,83000 की लागत के भवन का निर्माण गरुड़-बागेश्वर मार्ग पर भी करवाया गया था, जो आज तक बंद पड़ा है। केएमवीएन के अधिकारियों से पता चला कि यह भवन 500 रुपए प्रतिमाह की दर पर किसी को किराये पर दिया जाने वाला है। वर्तमान में इस भवन के बाहर घोड़े बांधे जा रहे हैं।
यही हाल अल्मोड़ा जिले के बिन्ता का भी है, जहां लगभग 33,70,000 रुपए लागत के दो भारी-भरकम भवनों का निर्माण करवाया गया। इन भवनों मे टीआई.सी, पर्यटन सुविधा केंद्र व पैराग्लाइडिंग चेंजिंग रूम की सुविधा उपलब्ध करवाने के नाम पर लाखों रुपए बहा दिए गए। वर्तमान में इन भवनों की स्थिति पर्यटन विभाग की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है। लगभग 90 वर्गमीटर व 60 वर्गमीटर में बने इस भवन को विभाग द्वारा एक एनजीओ को महज 40 हजार रुपए प्रतिवर्ष यानी रु. 3500 प्रतिमाह की दर से भी कम में सौंपा गया है।
ये तो महज कुछ उदाहरण हंै। इस प्रकार के दर्जनों भवनों का बेवजह निर्माण करवाकर पर्यटन विभाग ने न केवल सरकारी धन को ठिकाने लगाया, बल्कि उत्तराखंड की जनता को भी ठगा है। इसकी सुध लेने का साहस न तो भाजपा के पास है और न ही कांग्रेस ही कभी दिखा पाई।
देहरादून के सहस्त्रधारा व टपकेश्वर में बने पर्यटक सूचना केंद्रों की भी यही हालत है। सहस्त्रधारा में बने पर्यटक सूचना केंद्र पर तो ताले लटके पड़े हैं। सरकार की अदूरदर्शिता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लाखों रुपए की लागत से इस पर्यटक सूचना केंद्र पर बनने के समय से ताले लगे हैं।
यही नहीं इस प्रकार के सभी पर्यटक सूचना केंद्रों का यही हाल है। पूरे प्रदेश में करोड़ों की लागत से बने इन भवनों का कोई भी प्रयोग योजना के अनुरूप नहीं हो पा रहा है। तत्कालीन पर्यटन मंत्री टीपीएस रावत जब विदेश गए तो विदेशी पर्यटन की तर्ज पर जगह-जगह पर्यटक सूचना केंद्रों को बनाने का निर्णय लिया गया। जिसका उद्देश्य केवल पर्यटकों को प्राथमिक सूचना देना था और उसे सेंटर से ट्वायलेट-बाथरूम की भी सुविधा प्रदान की जाने की परियोजना थी। इस परियोजना का आलम यह है कि देहरादून के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल टपकेश्वर में जो पर्यटक सूचना केंद्र किसी को लीज पर दिया गया है, वह वहां बीड़ी, सिगरेट और अन्य सामग्री की बिक्री कर रहा है। जब कोई पर्यटक वहां पेशाब करने जाते हैं तो उनसे पैसे वसूले जाते हैं। उसके पीछे लीज स्वामी का तर्क है कि पैसे मैं देता हूं तो पैसे भी मैं ही वसूल करूंगा। कमीशनबाजी के लिए सरकारी पैसे को जिस तरह से ठिकाने लगाया गया, उसका हिसाब पूछने वाला कोई नहीं है।