उत्तराखण्ड में एक विदेशी नागरिक फर्जी दस्तावेजों की आड़ में पिथौरागढ़ जिले की धारचूला विधानसभा के अंतर्गत पंय्यापौड़ी सीट से जिला पंचायत सदस्य बना बैठा है। वह २०१४ में हुए पंचायत चुनावों के बाद से शान से नेतागिरी कर रहा है। हैरानी इस बात की है कि तमाम शिकायतों और जांच में जिलाधिकारी स्तर से कराई गई जांच में इस बात की पुष्टि होने के बावजूद न तो इस विदेशी नागरिक के खिलाफ कोई कार्यवाही हुई और न ही इसमें शामिल अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ कोई एक्शन ही लिया गया। और तो और जब स्थानीय विधायक हरीश धामी ने इस सवाल को विधानसभा में उठाया तो सरकार ने इसको कोई तवज्जो नहीं दी।
मंगलवार को विधानसभा सत्र के दौरान नियम ५८ के तहत कांग्रेस विधायक हरीश धामी ने धारचूला के पंय्यापौड़ी क्षेत्र से नेपाली नागरिक भूपेंद्र सिंह थापा के जिला पंचायत सदस्य बन जाने का मामला उठाया, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने इसे अनुमति नहीं दी। ऐसे में नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश की जिम्मेदारी थी कि वह इस मुद्दे पर अपने साथी विधायक की जोरदार पैरवी करती और विधानसभा अध्यक्ष पर इसके लिए दबाव बनाती, लेकिन बताते हैं कि इंदिरा की हरीश धामी से कड़ुवाहट है। ऐसे में उन्होंने धामी का साथ देने के बजाय इस संवेदनशील मामले को कोई तवज्जो नहीं दी। हालांकि हरीश धामी बुधवार को एक बार फिर से विधानसभा में इस सवाल को जोर-शोर से उठाएंगे।
इससे पहले मार्च २०१७ में जिलाधिकारी ने अपनी जांच रिपोर्ट शासन को भेजी, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई। तत्कालीन जिलाधिकारी डा. रंजीत कुमार सिन्हा ने भी अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है कि पंय्यापौड़ी से जिला पंचायत सदस्य भूपेंद्र सिंह थापा अपनी नागरिकता से संबंधित प्रमाण प्रस्तुत नहीं करा पाया। बावजूद इसके उन्होंने संदेहास्पद शैक्षिक दस्तावेज उपलब्ध कराए, जो उनके भारतीय नागरिक होने की पुष्टि नहीं करते।
बताया गया कि भूपेंद्र सिंह रावत के पिता नरसिंह थापा ब्रिटिश सेना में थे। वह ग्राम डौडा पट्टी पीपली तहसील कनालीछीना में स्थायी रूप से रहते थे। १९५० में सेवानिवृत्त के बाद वह डौड़ा छोड़ पंय्यापौड़ी चले गए। १९६७ में उनका जन्म हुआ। तब नरसिंह ५० के हो चुके थे। इसी वर्ष उनकी मां की मौत हो गई। ऐसे में १९७० में भूपेंद्र के चाचा प्रेम सिंह ने पंचों व गवाहों के सामने १० रुपए के स्टाम्प पर दस्तखत करते हुए उसे गोद ले ले लिया। जब वह तीन वर्ष के थे तो उन्हें नेपाल में उनके रिश्तेदार के यहां छोड़ दिया गया और उन्होंने हाईस्कूल तक की वहीं पढ़ाई-लिखाई की। २००४ में जब नेपाल में माओवादी गतिविधियां बढऩे लगी तो वह धारचूला आकर दुकान चलाने गए। वर्ष २०१४ में पंचायत चुनाव में उन्होंने जिला पंचायत के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत गए।
विधायक हरीश धामी कहते हैं कि भूपेंद्र सिंह थापा ने दो-दो गांवों के परिवार रजिस्टरों में अपना नाम दर्शाया है, जो संभव नहीं है। इसके अलावा नेपाल के स्कूल से भी इतने वर्षों बाद २०१६ में उन्हें स्थानांतरण प्रमाण पत्र लाने की याद आई। धामी भूपेंद्र सिंह थापा के माओवादी होने का संदेह भी जताते हैं।
ऐसे में सवाल यह है कि इतने संवेदनशील मामले के बावजूद शासन-प्रशासन और सरकार अब तक कैसे आंखें मूंदकर बैठे रहे। यहां तक कि जब विधायक ने इस मुद्दे को उठाना चाहा तो उसे भी इजाजत नहीं दी गई। इससे उत्तराखंड की चुनाव प्रणाली पर भी कई सवाल खड़े हो गए हैं।