उत्तराखंड चिकित्सा परिषद ने एक ऐसे डिप्लोमा को मान्यता दी है जिसकी पूरे देश में मान्यता ही नहीं है। डिप्लोमा इन युनानी और डिप्लोमा इन आयुर्वेद को भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड ने मान्यता दे दी है।
इस अमान्य डिप्लोमा को पंजीकरण किए जाने के निर्णय पर केंद्रीय परिषद की भी आपत्ति के बावजूद सरकार कानों में तेल डालकर बैठी है। शासन भी आंख मूंद कर बैठा है। क्योंकि विलेन यही हैं।
केंद्रीय परिषद ने उत्तराखंड चिकित्सा परिषद को पत्र लिखकर कहा है कि इंडियन मेडिकल सेंट्रल काउंसिल एक्ट मे वैध डिग्री डिप्लोमा के अनुसार ही पंजीकरण दिया जाना सुनिश्चित करें और 15 दिन के भीतर केंद्रीय परिषद को अवगत कराएं।
सीसीआईएम के पूर्व अध्यक्ष डॉ वेद प्रकाश त्यागी ने भी सवाल उठाते हुए कहा है कि उत्तराखंड भारतीय चिकित्सा परिषद ऐसा निर्णय लेने के लिए सक्षम नहीं है।
जबकि वर्तमान अध्यक्ष डॉ दर्शन शर्मा कहते हैं कि शासन स्तर की मंजूरी के बाद ही यह निर्णय लिया गया है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि उत्तर प्रदेश में भी वर्ष 2005 में इन डिप्लोमा धारकों का रजिस्ट्रेशन हाईकोर्ट के आदेश के बाद निरस्त हो गया था, बाद में वर्ष 2012 में सीसीआईएम ने भी यह कोर्स अमान्य कर दिया था।
तब सवाल यह है कि जीरो टोलरेंस की सरकार में इस कोर्स की मान्यता दिलाने के लिए किस सफेद पोश ने यह खेल खेला है !
आखिर किसके इशारे पर स्टेट बोर्ड ने यह संस्तुति की है !
और किसके दबाव में शासन के अधिकारियों ने इस पर आदेश कर दिए !