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अभी भी अनसुलझी है सरिता व उसके परिजनों की मौत की गुत्थी!!

July 8, 2017
in पर्वतजन
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रतन सिंह असवाल

सरिता को तो भूल गए होंगे न आप!  हां, अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट विधानसभा की चौखुटिया तहसील के दूरस्थ सीमावर्ती गांव खजुरानी गांव की वही 17 वर्षीय किशोरी, जिसकी इसी वर्ष 15 अप्रैल को कथित तौर पर भुखमरी से मौत हो गई थी। फोटो में दिख रही इस लड़की का नाम नीतू है, ये कक्षा 8 की छात्रा है और उम्र है 13 साल। सरिता की याद दिलाने का कारण यह था कि यह लड़की नीतू भी उसी सरिता की छोटी बहन है। नीतू के अलावा परिवार में उसके दो बड़े भाई दीवान सिंह (22 वर्ष) और हेमंत सिंह (17 वर्ष) भी हैं, लेकिन ये दोनों भाई भी उसी बीमारी से ग्रसित होने के कारण या तो लाठी के सहारे चल पाते हैं। नीतू भाई बहनों में सबसे छोटी है।
गौरतलब है कि नीतू के पिता खुशाल सिंह का इसी बीमारी के चलते निधन हो चुका है। इनके चाचा अर्जुन सिंह भी इसी बीमारी से ग्रसित हैं। लिहाजा वे भी सामान्य रूप से नहीं चल पाते हैं। हालांकि प्रशासन ने सरिता की मौत की खबर पर इस बात को सिरे से नकार दिया था कि उसकी मौत भुखमरी की वजह से हुई है, लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि इस बीमारी में शारीरिक अपंगता के साथ-साथ मरीज को भूख बहुत लगती है और वह सामान्य से अधिक और लगभग हर दो घण्टे के अंतराल पर भोजन करता है।
फिलहाल हंस फाउंडेशन की पहल पर नीतू की जांच हिमालयन मेडिकल इंस्टीट्यूट जौलीग्रांट में डाक्टर अनिल रावत और डाक्टर अल्पा गुप्ता की देखरेख में चल रहा है। उपचार में लगी डाक्टर्स की टीम का कहना है कि प्रथम दृष्टया यह मामला कुपोषण का लगता है, जिसकी जांच के लिये नीतू के ब्लड सैंपल लिए गए हैं। जिनमें से कुछ की रिपोर्ट आ गई है, कुछ की रिपोर्ट अभी पैथोलाजी लैब दिल्ली से आना बाकी है। जिसके बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है। संभवतया यह बीमारी इस परिवार की आनुवांशिक बीमारी है।
सरिता और नीतू के परिवार की मेडिकल हिस्ट्री देखें तो सरिता के दादा स्व. लाल सिंह भारतीय सेना में थे। सरिता और नीतू के पिता की भी कुछ माह पूर्व इसी बीमारी के चलते मौत हो चुकी है। नीतू के पिता के अलावा उनकी बुआ लक्ष्मी व दादी सहित एक और चाचा की भी इसी बीमारी के कारण पहले ही मौत हो चुकी है। कुल मिलाकर इस अज्ञात बीमारी की वजह से अभी तक परिवार में पिछले कुछ सालों में 5 मौतें हो चुकी हैं।
परिवार में केवल नीतू की मां जानकी देवी शारिरिक रूप से स्वस्थ हैं। उनके अलावा परिवार में सभी लोग इस बीमारी से पूर्ण या आशिंक रूप से ग्रसित हैं। नीतू के दादा लाल सिंह जब तक जीवित थे, तब तक उनकी पेंशन से परिवार का भरण पोषण हो जाता था, लेकिन कुछ माह पूर्व उनकी मृत्यु हो जाने के बाद इस परिवार के समक्ष जीवन यापन करके की बुनियादी जरूरतें एक प्रश्नचिन्ह की तरह खड़ी हो गईं हैं।यह मामला जिसमें कि इस बीमारी से परिवार कई सालों से जूझता आ रहा था। अप्रैल माह में सरिता की मौत के बाद भाजपा के स्थानीय विधायक महेश नेगी की पहल पर प्रकाश में आया और इसके बाद आनन-फानन में परिवार को यथासंभव पेंशन (सरिता के दोनों भाइयों को दिव्यांग पेंशन और माता जानकी देवी को विधवा पेंशन) और मुख्यमंत्री राहत कोष द्वारा एक लाख रुपए, स्थानीय विधायक द्वारा छत्तीस हजार रुपये तथा जिलाधिकारी के निर्देशानुसार रेडक्रास संस्था द्वारा पचास हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी गई, लेकिन अफसोस यह है कि सरकार ने सरिता की मौत के बाद भी कोई सबक नहीं लिया और मामला शांत होने के बाद परिवार को उसके हाल पर ही छोड़ दिया। अभी भी पांच सदस्यों वाले इस परिवार में चार सदस्य इस बीमारी से ग्रसित हैं, लेकिन सरकार ने पेंशन, आर्थिक सहायता और लगभग 50 किलो मासिक राशन की व्यवस्था के आदेश परित करके अपना पल्ला झाड़ लिया। अकेली जानकी देवी के समक्ष कोई आजीविका न होने के कारण परिवार का भरण-पोषण ए

क समस्या बनकर खड़ा हो गया। ऐसे में वे परिवार के बीमार सदस्यों का सही इलाज करा पाना उनके लिए नामुमकिन हो गया था। सरिता की मौत होने के बाद भी प्रशासन या स्वास्थ्य विभाग की तरफ से जानकारी होने के बाद भी इस हेतु कोई पहल नहीं की गई। लिहाजा हंस फाउंडेशन की पहल पर नीतू को हिमालयन अस्पताल जौलीग्रांट में भर्ती किया गया और जांच की जा रही है।

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सरिता की मौत और उसके बाद पूरे परिवार की उपेक्षा ने पूरे सिस्टम की पोल खोलकर रख दी है। यह परिवार पिछले कई सालों से बीमारी, अभाव, भूख और तंगहाली से जूझ रहा है। राज्य में ऐसे ही परिवारों की सहायता के लिए गरीबी, वृद्धावस्था, विकलांगता पेंशन जैसी सरकारी मदद मौजूद है। जिसका लाभ अपनी गुजर-बसर करने वाला परिवार भी ले रहा है, लेकिन यह असहाय परिवार इससे वंचित क्यों है? आखिर बीमारी से जूझती सरिता और उसके पिता की मौत के बाद भी प्रशासन क्यों लापरवाह बना रहा? बड़ी-बड़ी स्वास्थ्य योजनाएं और स्वास्थ्य के आकंड़ों को बताकर अपनी पीठ थपथपाने वाला स्वास्थ्य विभाग क्यों कई मौतें होने के बाद भी इस परिवार की सुध नहीं ले पाया!


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