डेयरी विकास योजना 2016-17 के तहत दुग्ध संघों को एक करोड़ नौ लाख रुपया आवंटित किया गया, लेकिन इस धन की जमकर बंदरबांट कर दी गई। इसका उदाहरण है प्रदेश की छह दुग्ध डेयरियों में खरीदी गई सोलर स्ट्रीट लाइट। उरेडा के सहायक निदेशक जयदीप अरोड़ा ने १० अक्टूबर को उरेडा से बारह बोल्ट की सोलर लाइट की दरें मांगी। जिस पर उरेडा ने तेरह अक्टूबर को पत्र भेजकर 21 हजार पांच सौ प्रति नग की दरों का पत्र संयुक्त निदेशक जयदीप अरोड़ा को भेजा, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से खुद अरोड़ा ने ही इस पत्र को रद्दी की टोकरी में डालकर फरीदाबाद की एक प्राइवेट एजेंसी से उरेडा से कई महंगी दरों 24 हजार पांच सौ प्रति नग की दर से सोलर लाइटें खरीद ली।
डेरी विभाग में इस संबंध में बयान लिए जाने के बाद से ही पूरे मामले में रातों-रात लीपापोती का खेल शुरू हो चुका है। विभागीय सूत्रों की मानें तो कागजी कार्रवाई पूरी करने के लिए संयुक्त निदेशक ने रातों-रात संबंधित जिलों के प्रबंधकों को कारण बताओ नोटिस भेजकर सरकारी एजेंसी उरेडा की बजाए प्राइवेट एजेंसी से महंगी दरों पर लाइट खरीदने का कारण पूछा है। इसके अलावा संयुक्त निदेशक कार्यालय में जमा किए जा चुके उपयोगिता प्रमाण पत्रों को भी बदलने की तैयारी चल रही है।
जिले जहां दुग्ध संघ के लिए सोलर स्ट्रीट लाइटें खरीदी गई
जिले खरीदी गई सोलर स्ट्रीट लाइटों की संख्या
देहरादून 06
टिहरी 03
अल्मोड़ा 04
हरिद्वार 06
चमोली 03
पिथौरागढ़ 03
एक और कारनामा
किस तरह नियमों को ताक पर रखकर जेब गर्म करने का रास्ता निकाला जाता है, ये कोई दुग्ध संघ के अधिकारियों से सीखे। यहां दुग्ध संघ के अधिकारियों ने तीन लाख से ऊपर के कार्यों के लिए टेंडर लगाने की बाध्यता से बचने के लिए पहले तो टुकड़े-टुकड़ों में खुद ही भवन का काम करा डाला और जब काम पूरा हो गया, तब जाकर उसी काम के लिए फर्जी ढंग से कोटेशन की औपचारिकताएं भी पूरी कर डाली।
दुग्ध संघ देहरादून को दुग्ध संघ भवन के जीर्णोद्वार के लिए पिछले साल 26 दिसंबर को करीब पांच लाख रुपए मिले। संयुक्त निदेशक डेरी विकास विभाग के कार्यालय से लगे इस भवन को संयुक्त निदेशक के कार्यालय के विस्तार के लिए ही तैयार किया जा रहा है। संयुक्त निदेशक डेरी और दुग्ध संघ देहरादून के प्रबंधक ने पैसा स्वीकृत होते ही चुपचाप टुकड़ों-टुकड़ों में भवन का जीर्णोद्धार कर डाला।
ताज्जुब ये कि भवन पर फैब्रीकेशन, फीटिंग कार्य और फॉल सिलिंग का कार्य कब का पूरा हो चुका है, लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से इसी काम के लिए काम पूरा होने के बाद फर्जी ढंग से कोटेशन आमंत्रित की गई और भुगतान निकालने की प्रक्रिया पूरी करने के लिए कोटेशन की प्रति चुपचाप फाइल में नत्थी कर दी गई, लेकिन इसका पता चलने पर जब इस संवाददाता ने पूछताछ की तो अधिकारियों से जवाब देते नहीं बना। सवाल उठाने पर अधिकारियों ने अगले ही दिन सीलिंग तुड़वा भी दी। गुमराह करने के लिए यह भी बताया गया कि नोटिस बोर्ड पर कोटेशन सूचना चस्पा की गई है, लेकिन सूचना नोटिस बोर्ड पर भी नहीं चस्पा मिल पाई।
दरअसल, डेयरी विकास विभाग में भ्रष्टाचार का घुन गहरे तक बैठा हुआ है। ये दो उदाहरण विभाग में फैले भ्रष्टाचार का उदाहरणभर हैं। हकीकत में विभाग भयमुक्त भ्रष्टाचार का अड्डा बना हुआ है। जहां अपने हिसाब से सरकारी पैसा बांटा जाता है और अपने हिसाब से इसे खर्च भी कर लिया जाता है।
इसी तरह से अन्य कई मदों में भी लाखों रुपए की बंदरबांट कर दी गई।