क्रान्ति भट्ट
भारतीय अधिकारियों का बडाहोती दौरा स्थगित होने की वजह ” सडक ” या डोकलाम झड़प?
भारत के अधिकारियों का ” बडाहोती ” दौरा अचानक बीच में ही स्थगित कर दिया गया । प्रशासन ने बडाहोती निरीक्षण के लिए जा रही अधिकारियों की टीम के दौरे के के स्थगित होने की वजह बताते हुये कहा कि मलारी के समीप सडक में भारी मलवा आ गया है । अन्य स्थान पर मलवा आया है । साथ ही यह भी कहा कि मौसम के विपरीत अलर्ट रहने की चेतावनी के कारण भी दौरा स्थगित कर दिया गया । अब बडाहोती के निरीक्षण की तिथि शीघ्र तय की जायेगी । अधिकारियों की यह टीम वापस लौट आयी है ।
बताते चलें ” बडाहोती ” भारत चीन सीमा के सामरिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील जिले चमोली का वह ” बुग्याली घास का मैदान है जिसे भारत अपना आधिकारिक इलाका मानता है । भारत की भेडें सदियों से बडाहोती में ग्रीष्म और बरसात में घास चरने जाती ंरही हैं। तिब्बत पर चीन के अधिपत्य के बाद चीन बडाहोती को अपना बताने लगा । दोनों देश इस बडाहोती पर अपना अपना अधिकार मानती हैं पर भारत का दावा हमेशा मजबूत रहा है । इसी मजबूती की प्रमाणिकता के लिए भारत के अधिकारियों की टीम ” बडाहोती ” जाती रही है । इस बार भी मंगलवार को अधिकारियों की टीम बडाहोती रवाना हुयी थी ।पर बुद्धवार को ही ” सडक बाधित ” होने को वजह बताते हुये दौरा निरीक्षण स्थगित किया गया ।
* अब पूरे मामले को ब्यापक आलोक में देखने की जरूरत है । क्या मलारी में सडक पर मलवा आना ही दौरा स्थगित होने की वजह है या कि फिर भूटान . सिक्किम सीमा पर ” डोकलाम ” में चीन द्वारा सडक बनाने पर भारत के प्रतिकार से भडके चीन भारत सम्बन्धों में आयी तपिश के चलते बडाहोती दौरा स्थगित करना पडा । कूटनीति स्तर हाईलेवल स्तर पर भी इस दौरे के वजह स्थगित होने की वजह हो सकती है ! या फिर ” मलारी ” मे सडक बाधित होना ही दौरा स्थगित होना वजह है ! इस संवेदनशील बिषय एक ही कारण को ” कारण ” समझना या बताना जल्द बाजी होगी ।
पर यदि सडक पर मलवा आने से बडाहोती निरीक्षण का दौरा स्थगित होना वजह है तो यह हमें अपनी जमीनी स्थिति पर ” आत्मविश्लेषण ” करने के लिए विवश करती है । चीन सीमा पार ज्ञानिमा तक रेल मार्ग बिछा चुका है । और एक हम हैं कि सीमा से कहीं पीछे सडक पर मलवा आने से बडाहोती निरीक्षण का दौरा स्थगित होने पर विवश हैं ।चीन से दो दो हाथ करने करने की बात करना राष्ट्र भक्ति और आत्मबल की हो सकती है । पर उससे पहले इस जमीनी हकीकत का आत्म विश्लेषण की भी जरूरत है कि हमारे संसाधनों अभी कहां अटके पडे हैं । हमारे सीमा रक्षक तमाम विपरीत स्थितियों में भी सीमाओं पर मुस्तैदी से डटे और खडे हैं। यह हमारी ताकत हैं । पर अपनी ताकतों तक संसाधनों को पहुंचाने की भी हमारी जिम्मेदारी है । हालांकि ऐसा भी नहीं है कि सडक और संसाधन के क्षेत्र में ” कुछ भी नहीं हो रहा है “! हो रहा है । पर जो तेजी होनी चाहिए उसमें कमी है यह तो स्वीकार करना ही चाहिए ।यहाँ पर किसी को कोसना उद्देश्य नहीं है । मात्र कहना इतना है कि जब तक हम सीमाओं पर आधार भूत संसाधन नहीं पहुंचाते तो आंखों में आंखें डालकर बात करना क्या केवल ” आत्म मुग्धता ” तो नही !
मलारी के समीप जहां सडक बाधित बताई गई यह भी कहा गया कि सडक खोलने की मशीनें दूर हैं। भारत ने कभी देश पर पहले आक्रमण नहीं किया यह भारत की ताकत है । पर संकट के काल में जबाब देने के लिए हम मूल भूत संसाधनों से कितने मजबूत हैं इस पर निर्ममता से . ईमानदारी से आत्म विश्लेषण की जरूरत तो है ही ।
“” दूसरी बात हमारे सीमांत के गांवो से जिस तरह पलायन हो रहा है उस पर भी ” डाइलाग बाजी बौद्धिक चिंता ” करने के बजाय हम कर क्या कर रहे हैं इस पर भी जमीन धरातलीय कार्य करने की जरूरत है । बार्डर डेपलप योजना समेत कई योजनाऐं सीमान्त क्षेत्रों में संचालित हुई अरबो रुपये अब तक विभिन्न योजनाओं पर खर्च हो गये पर पलायन उतनी ही तेजी से लगातार जारी है
चमोली . पिथौरागढ और उत्तरकाशी सीमांत जिले 24 फरवरी 1960 को बनाये गये । बडी समझ के तहत बनाये गये थे। 1962 में चीन ने उत्तर पूर्व मे युद्ध छेड़ दिया उत्तराखंड की सीमा सुरक्षित रही । सीमांत क्षेत्रों से पलायन न हो सीमाओं पर सडक और अन्य संसाधन कैसे मजबूत हों इस पर मजबूत और ठोस कार्य करने की जरूरत है
” भारत के सीमांत जिले चमोली से लगातार शेष ……