धनोल्टी से सुनील सजवाण
धनोल्टी विधानसभा के जौनपुर विकासखण्ड का राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय जोग्याड़ा अपनी बदहाली के आंसू बयां कर रहा है। देश का भविष्य खतरे की जद में शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हंै, लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं। क्या ऐसे ही सुधरेगा देवभूमि में शिक्षा का स्तर।
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय जोग्याड़ा के भवन की हालत बद से बदतर बनी हुई है। स्कूल की छत से बरसात में पानी टपकता रहता है। स्कूल के छात्र बरसात में कक्षाओं में छाते लेकर पढ़ाई करने को मजबूर है, लेकिन सुध लेने वाला कोई नहीं। भले ही आज सरकार व शिक्षा महकमा शिक्षा के क्षेत्र मे बड़े-बड़े दावे प्रस्तुत करता हो, पर हकीकत ए स्कूल बयां कर रहा है। स्कूल की इमारत कभी भी ढह सकती है। इस तरह खौफ के साए में छात्र शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर है।
विद्यालय में बने शौचालय की हालत बद से बत्तर है जंहा एक और स्वछ भारत की बात हो रही है, वहीं इस स्कूल का शौचालय टूटा व गंदा पड़ा है। छात्राओं का कहना है कि शौचालय न होने से उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
वहीं दीवारों का पलास्टर गिर रहा है। दीवारों में दरारें विद्यालय की दशा को दर्शा रहा है, जो कभी भी बड़ी अनहोनी को न्यौता दे रहा है। क्या देश का भविष्य इन इमारतों में सुरक्षित है, लेकिन सुध लेगा कौन? 68 की छात्र संख्या वाले इस विद्यालय में कक्षा 6 से 8वीं तक की कक्षाएं संचालित की जाती है। इस स्कूल की स्थापना 1986 को हुई व इस भवन का निर्माण 1987 में किया गया था।
विद्यालय के प्रधानाचार्य दिनेशचन्द असवाल का कहना है कि बरसात के समय में स्कूल की छत लगातार टपकती है। जिस कारण पढ़ाई में लगातार व्यवधान उत्पन्न होता है। विद्यालय मे शौचालय के गड्ढ़े भरे है, जिस कारण विद्यालय मे शौचालय बंद है।
अभिभावक शेर सिंह डोगरा का कहना है कि स्कूल हालत बद से बदतर है व दयनीय है, लेकिन कोई ध्यान देने वाला नहीं है। वह भी पूर्व में इसी स्कूल के छात्र रहे हंै, लेकिन वर्तमान में स्कूल की हालत पर तरस आ रहा है।
स्कूल की छात्रा श्वेता व अन्य ने तो सरकार से ही निवेदन किया है कि इस दशा को सुधारा जाए व स्कूल में शौचालय की व्यवस्था की जाए।
1987 में बना स्कूल का यह भवन अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। भवन कभी भी जमीन पर आ सकता है, लेकिन सरकार व प्रशासन आज देवभूमि में बेहतर शिक्षा की बात कर रहे हैं। समझ नहीं आता कि जिस शिक्षा में हम अग्रणी होना चाहते हंै, क्या उस शिक्षा का एक रूप ऐसा भी है। जहां डर के साए में बच्चे पढऩे को मजबूर हो और बरसात के समय में कक्षा में छाते ओढ़कर पढ़ाई करने को मझबूर हो। आखिर में इन सबमें दोष किसका है। क्या उन बच्चों का, जिन्हें शायद यह भी पता नहीं की। जिस अध्ययन के लिए वे लोग स्कूल आए हैं।
आखिर में उसका भविष्य क्या होगा। इस प्रदेश के साथ-साथ इस देश को यही बेहतर शिक्षा की ओर अग्रसर करना है और यदि वास्तव में शिक्षा के प्रति कोई जिम्मेदारी सरकार व शासन-प्रशासन की बनती है तो पहाड़ी क्षेत्रों में कई स्कूल ऐसे है। जहां देश का भविष्य बेहतर शिक्षा नहीं ले सकता और इसी प्रकार के जीर्ण-शीर्ण इमारतों में किसी अनहोनी का शिकार हो सकता है। टिहरी जनपद के जौनपुर विकासखंड का राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय जोग्याड़ा मात्र एक आईना है।
देखना यह है कि सरकार और प्रशासन की नींद कब तक जाग पाती है।