इंदिरा अम्मा भोजनालय के नाम पर लाखों का घोटाला !!

भूपेंद्र कुमार//

15 अगस्त 2015 के दिन घंटाघर शॉपिंग कॉन्पलेक्स से पहले इंदिरा अम्मा भोजनालय की शुरुआत की गई

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा शुरू की गई इंदिरा अम्मा भोजनालय योजना भाजपा के राज में भी बदस्तूर जारी है । इस संवाददाता को सूचना के अधिकार में प्राप्त जानकारी के अनुसार इस योजना के अंतर्गत लगभग एक करोड़ रुपए की अनियमितता सामने आई है।

इंदिरा अम्मा भोजनालय की शुरुआत कांग्रेस सरकार ने गरीबों को सस्ता भोजन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से खोली गई थी । इसके संचालन का जिम्मा महिला स्वयं सहायता समूहों को दिया गया था लेकिन स्वयं सहायता समूह के चयन के लिए न तो कोई प्रक्रिया अपनाई गई और न ही कैंटीनों के निर्माण के लिए कोई टेंडर प्रक्रिया अपनाई गई।
 अकेले देहरादून जनपद में 10 स्वयं सहायता समूह द्वारा इंदिरा अम्मा भोजनालय की शुरुआत की गई । 15 अगस्त 2015 के दिन घंटाघर शॉपिंग कॉन्पलेक्स से पहले इंदिरा अम्मा भोजनालय की शुरुआत की गई थी।  तब से लेकर हरीश रावत के कार्यकाल तक 10 इंदिरा अम्मा भोजनालय खोले गए।
 देहरादून जनपद में एनआरएलएम योजना के अंतर्गत गठित स्वयं सहायता समूहों मेरे द्वारा कैंटीनों का संचालन किया जा रहा है । राज्य सरकार ने प्रति थाली की कीमत ₹30 निर्धारित की है । जिसमें से भोजनकर्ता  से ₹20 लिए जाते हैं तथा  शेष 10 रुपये शासन द्वारा अनुदान अथवा सब्सिडी स्वयं सहायता समूह को प्रदान किए जाने का प्राविधान है। योजना प्रारंभ होने से लेकर जून 2017 तक सिर्फ तीन  इंदिरा अम्मा भोजनालयों  की जानकारी  के अनुसार घंटाघर ट्रांसपोर्ट नगर  और दून हॉस्पिटल स्थित सिर्फ तीन भोजनालयों को 98 लाख 35630 रुपए की धनराशि सब्सिडी के रूप में प्रदान की जा चुकी है। सरकार ने तमाम कैंटीनों के लिए न सिर्फ भवन बना कर दिए बल्कि उपकरण फर्नीचर और अन्य सामान भी कैंटीनों के लिए खरीद करके उपलब्ध कराया।
 यह खरीद एमडीडीए द्वारा की गई थी कैंटीनों के संचालन के लिए कोई टेंडर प्रक्रिया नहीं अपनाए जाने के कारण तथा सब्सिडी देने के लिए कोई पारदर्शी सत्यापन की व्यवस्था न होने के कारण इंदिरा अम्मा कैंटीन में भारी गोलमाल की आशंका है।
 यही नहीं इन कैंटीनों का निर्माण और कैंटीनों में विभिन्न उपकरण फर्नीचर और अन्य सामान की खरीद फरोख्त के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई इसका जवाब भी जिला ग्राम विकास अभिकरण के पास नहीं है। यह कैंटीन  तत्कालीन सरकार के चहेते लोगों के स्वयं सहायता समूहों को प्रदान की गई थी।इन कैंटीनों को भीड़ भाड़ वाले स्थानो मे खोला गया था । इनके खुलने के बाद इन जगहों पर पहले से चलने वाले ढाबे ठेलियां आदि संचालन करने वालों को अपना धंधा  बंद करना पड़ गया था। यदि वर्तमान सरकार भी इनका संचालन बिना पारदर्शी तरीके से जारी रखती है तो सरकार की छवि को नुकसान पहुंच सकता है। ऐसे में संभावना है कि सरकार इनका नाम बदल कर योजना मे कुछ बदलाव कर सकती है।
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