गांवों में पानी की आस में उखड़ी सांसें। सरकार मांग रही ट्वीटर पर सलाह
उत्तराखंड में सैकडों गांव बरसों से पेयजल समस्या से जूझ रहे हैं। करोड़ों रुपए की पेयजल योजनाएं पाइप बिछाने और टैंक बनने के बाद भी ठप पड़ी हुई हैं। पेयजल योजनाओं के नाम पर वर्ल्ड बैंक और अन्य स्रोतों का हजारों करोड़ रूपया ठेकेदारों और अधिकारियों की कमीशन खोरी की भेंट चढ़ गया है लेकिन गांवों के हलक आज भी सूखे के सूखे हैं। इस बीच उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सत्ता में आने के 3 साल बाद भी ट्वीट करके उत्तराखंड की जनता से सुझाव मांग रहे है कि, पेयजल कनेक्शन के लिए कितने रुपए लिए जाने चाहिए।
हैरानी की बात यह है कि, 3 साल बाद भी यह सरकार लोगों को पेयजल उपलब्ध कराने के बजाय अभी सलाह ही ले रही है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक ट्वीट के माध्यम से कहा है कि, उत्तराखंड सरकार हर घर को नल से पानी उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। वास्तव में हकीकत क्या है, यह आप इन चंद उदाहरणों से समझ सकते हैं।
पौडी बीरोखाल ब्लाक के यशपाल नेगी अपने गांव की समस्या बताते हैं कि, उनके गाँव में 1978 के आसपास पानी की पाइपलाइन बिछी। गाँव वालों द्वारा उसका रख रखाव होता आया। 2006 के आसपास से हमने लिखना शुरु किया। 14 साल हुये है कानों पर तेल डालकर बैठी रही सरकारें। जवाब आता है समाधान नही।
पौड़ी के पत्रकार मुकेश बछेती बताते हैं कि, पौड़ी जिले के कल्जी खाल ब्लॉक में भी 27 करोड रुपए की लागत से बनी चिंच्वाडी डांडा पेयजल योजना चार साल बाद भी ठप पड़ी है। इस योजना के लिए वर्ष 2003 से ग्रामीण आंदोलन कर रहे थे, 68 गांव के लोगों के लिए बनी इस पेयजल योजना के लिए वर्ष 2016 में हरीश रावत सरकार ने धन स्वीकृत किया था, लेकिन पाइप और टैंक निर्माण का सारा काम होने के बावजूद यह योजना ठप पड़ी हुई है और 68 गांव के लोग पेयजल के लिए दूरदराज से पानी लाने को विवश हैं।
उत्तरकाशी के प्रवीन नेगी कहते है कि, उनके गांव पटारा की रामलीला मे दो साल पहले क्षेत्रीय विधायक केदार सिंह ने जल ग्राम के नाम से बोला था। लेकिन उनके गांव में पानी की एक बूंद भी नहीं पहुंची। आज भी लोग 4:00 बजे उठकर सुबह 1 किलोमीटर दूर से पानी लाते हैं।
बीनू बबली तिवारी कहती हैं कि, पेयजल कनेक्शन तो अमृत योजना में फ्री मिल रहे हैं। वो अलग बात है कि, भाजपा के कुछ पार्षद पति 2000 रूपये मांग रहे थे कि जेई को देने है। मैंने जेई से पता किया तो वो इंकार कर रहा था। जब हल्द्वानी मे ही इनके छुटभैय्ये इतना लूटपाट कर रहे हैं तो सोच रही हूं गांव में क्या हाल होंगे। जाहिर है कि उत्तराखंड के गांव में पेयजल के हालात चिंताजनक है। सरकार को सिर्फ ट्वीटर से बाहर निकल कर वास्तविक हालात का भी जायजा लेना चाहिए।