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खुलासा : भ्रष्टाचार को सही ठहराने के लिए कैबिनेट और अध्यादेश का दुरुपयोग। आरटीआइ, उपनल, पंचायत और तकनीकी विश्वविद्यालय के फैसलों पर सवाल

September 5, 2020
in पर्वतजन
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खुलासा : भ्रष्टाचार को सही ठहराने के लिए कैबिनेट और अध्यादेश का सहारा। आरटीआइ, उपनल, पंचायत और तकनीकी विश्वविद्यालय के फैसलों पर सवाल

उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार भ्रष्टाचार और अवैध कार्यों को ठीक करने के बजाए उनको कैबिनेट बैठक, अध्यादेश अथवा एक्ट बना कर कानूनी जामा पहनाकर वैध घोषित कर रही है।
इसका खामियाजा सरकार को आगामी चुनावों मे भुगतना पड़ सकता है।
 कल की कैबिनेट बैठक में ऐसे कई निर्णय लिए गए, जिसमें त्रिवेंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार को लेकर शिकायत उठने पर उन कार्यों को ही कैबिनेट बैठक के जरिए वैध घोषित कर दिया।
प्रधान,प्रमुख सब बने सरकारी ठेके 
पिछले दिनों पौड़ी में पंचायत प्रतिनिधियों के सरकारी विभाग में ठेकेदारी करने पर पंचायत राज विभाग ने नोटिस जारी किया था तो कल मंत्रिमंडल ने यह प्रावधान ही समाप्त कर दिया। अब तक पंचायत प्रतिनिधि यानी ग्राम पंचायत क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत सहित अन्य प्रधान पंचायत प्रतिनिधि लोक सेवकों के रूप में गिने जाते हैं और वह सरकारी ठेके और अन्य लाभ के कामों में ठेकेदारी नहीं कर सकते।
 किंतु त्रिवेंद्र सरकार ने यह प्रावधान ही समाप्त कर दिया है। अब पंचायत प्रतिनिधि केवल अपने जिले में ही लोक सेवक माने जाएंगे अपने क्षेत्र से बाहर वह सरकारी ठेके ले सकते हैं।
 कुलसचिव के लिए बीटेक की बाध्यता समाप्त
पिछले दिनों उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की करीबी कुलसचिव अनीता रावत लंबे समय से तकनीकी विश्वविद्यालय में वांछित योग्यता ना होने और मनमानी के चलते हटा दी गई थी। विश्वविद्यालय में कुलसचिव के लिए बीटेक होना अनिवार्य है। लेकिन इसके बावजूद बीटेक ना होते हुए भी उन्हें कुल सचिव बना दिया गया था।
 तमाम शिकायतों के बाद भी जब उन्हें हटाया नहीं गया तो मजबूरन यह मामला हाईकोर्ट चला गया। हाईकोर्ट ने उन्हे हटाने का आदेश दिया उन्हें नही हटाया गया। हटाने के बजाय त्रिवेंद्र सरकार ने तकनीकी विश्वविद्यालय में कुलसचिव के लिए बीटेक होने का प्रावधान ही खत्म कर दिया।
चहेतों के लिए खुले उपनल के दरवाजे
 उत्तराखंड के भूतपूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों के लिए बनाए गए उपनल के दरवाजे अब सभी के लिए खोल दिए गए हैं।
 अब तक सेना से जल्दी रिटायर हो जाने के चलते भूतपूर्व सैनिकों के लिए उपनल एक रोजगार का जरिया था। अब तक उपनल से 20,000 से अधिक को रोजगार मिला हुआ है। लेकिन सभी के लिए उपनल के दरवाजे खोल दिए जाने से भूतपूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों के हित प्रभावित होंगे।  पहुंच वालों को अपने चहेतों को मलाईदार नियुक्तियां देने के दरवाजे खुल जायेंगे। हालांकि अभी यही कहा जा रहा है कि भूतपूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों को प्राथमिकता दी जाएगी और कहा जा रहा है कि ऐसा उत्तराखंड लौटे प्रवासियों के लिए किया जा रहा है।
 लेकिन पीआरडी में दून के मेयर गामा की पुत्री की बैक डोर नियुक्ति और राज्य मंत्री रेखा आर्य जैसे  प्रकरणों से आसानी से समझा जा सकता है कि उपनल के दरवाजे आखिर सबके लिए क्यों खोले गए हैं !
 याद ना हो तो एक और उदाहरण याद कीजिए।
 उपनल में आने वाले समय में कैसा जंगलराज मचेगा, इसके लिए एक उदाहरण याद कीजिए।
 विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के बेटे को उपनल के माध्यम से जल संस्थान में जूनियर इंजीनियर की तैनाती मिली तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यह कहते हुए नियुक्ति निरस्त कर दी कि उपनल से केवल भूतपूर्व सैनिक के आश्रित की नौकरी पा सकते हैं। लेकिन ठीक इसी दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उपनल के माध्यम से अपनी एक करीबी युवती को दिल्ली के स्थानिक आयुक्त कार्यालय में ₹40000 वेतन पर तैनात करा दिया।
 इसके लिए वहां पहले से ही काम कर रहे 10- 10 हजार वेतन वाले चार फोर्थ क्लास उपनल कर्मियों को निकाल बाहर कर दिया गया।
 पर्वतजन ने यह मामला तब भी प्रकाशित किया था। उसी दौरान इसकी भूमिका बनाई जाने लगी थी कि इस तरह की नियुक्तियों को सही ठहराने के लिए उपनल के दरवाजे अन्य लोगों के लिए भी खोल दिए जाएंगे।
 सतर्कता विभाग आरटीआई से बाहर
त्रिवेंद्र सरकार ने सतर्कता विभाग को सूचना के अधिकार के दायरे से ही बाहर कर दिया है।
 कारण बताया जा रहा है कि जांच, ट्रैप, अपराध की विवेचना व न्यायालय में अभियुक्तों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करते समय गोपनीयता बनाने के लिए सरकार ने यह निर्णय लिया है।
 सतर्कता विभाग को आरटीआई के दायरे में लाने के लिए हाईकोर्ट के अधिवक्ता चंद्रशेखर करगेती ने लंबी लड़ाई लड़ी थी और हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रदेश सरकार को सतर्कता विभाग को फिर से आरटीआई के दायरे में लाना पड़ा था।
 लेकिन उत्तराखंड सरकार ने कल इस विभाग को कैबिनेट के माध्यम से मीटिंग करके आरटीआई के दायरे से बाहर कर दिया। हालांकि भ्रष्टाचार से संबंधित सूचना को इससे बाहर रखा गया है, लेकिन पहले से ही सूचना देने में कई तरह की हीला हवाली करने वाले सतर्कता विभाग इस तरह के सरकारी संरक्षण के चलते आरटीआई चाहने वालों को सूचना देंगे, यह आने वाले समय में ही साफ हो पाएगा। अधिवक्ता विकेश नेगी  तमाम सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग आरटीआई के केंद्रीय कानून और हाई कोर्ट के आर्डर का हवाला देते हुए बताते हैं कि ,-“उत्तराखंड सरकार भ्रष्टाचार को पूर्ण बड़ा बढ़ावा दे रही है।  कैबिनेट में इन्होंने विजिलेंस को आरटीआई से बाहर रखा है। जबकि 2019 में सुप्रीम कोर्ट तक से पहले ही कहा गया है कि सेक्शन 24 में सतर्कता विभाग आता ही नहीं है और पुलिस एक्ट में भी यह लिखा गया है कि शिकायत कर्ता को पूरी इंफॉर्मेशन दी जाएगी। सतर्कता विभाग नही देता है और अब शासन ने एक कैबिनेट बुलाकर इससे मोहर लगा दी। इससे स्पष्ट होता है उत्तराखंड सरकार खुद को सुप्रीम कोर्ट से भी ऊपर समझती है।

पहले भी बनाए गए गलत को सही ठहराने के लिए कानून

मलिन बस्तियों को हटाने के बजाय लाए आध्यादेश
देहरादून के वरिष्ठ पत्रकार श्री मन मोहन लखेड़ा ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करके उत्तराखंड से तमाम अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए थे लेकिन अतिक्रमण करने से रोकने के बजाय सरकार ने वोट बैंक के चक्कर में मलिन बस्तियों को बचाने के लिए अध्यादेश ही ले आई और बाकायदा एक्ट बना दिया।
शराब की दुकानों के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग को घोषित किया राज्य व जिला सड़क 
 जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शराब की दुकानों को राष्ट्रीय राजमार्गों से 500 मीटर के दायरे तक हटा दिया जाए तो उत्तराखंड सरकार ने कई राष्ट्रीय राजमार्गों का नाम बदलकर राज्य सड़क अथवा जिला सड़क घोषित कर दिया।
कोर्ट के आदेश के विपरीत पूर्व सीएम के बकाया  माफ करने को कानून
भूत पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास और अन्य सुविधाएं देने में जनता के धन का दुरुपयोग किए जाने के खिलाफ जब रूलक के संस्थापक अवधेश कौशल हाई कोर्ट गए और हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों से यह सुविधा बंद करने के लिए कहते हुए बाजार दरों पर भुगतान करने के आदेश जारी किए तो उत्तराखंड सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन करने के बजाय पूर्व मुख्यमंत्रियों का बकाया माफ करने के लिए विधानसभा से ही कानून बना दिया।
ये सारे कारनामे चुनाव मे पड़ेंगे भारी
 भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिलने का जनता को यह सबसे बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ रहा है कि जनता जिन भी गलत कार्यों को लेकर सवाल उठाती है, उस पर सरकार कोई कार्यवाही नहीं करती और यदि कोई हाई कोर्ट जाकर कार्यवाही कराता है तो सरकार उल्टा कैबिनेट मीटिंग और अध्यादेश एक्ट आदि के जरिए अपने गलत कार्यों को ही सही ठहराने के लिए कानून बना देती है।
 त्रिवेंद्र सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी सरकार को बनाने और बिगाड़ने के लिए परसेप्शन यानी जनता की सरकार के प्रति क्या धारणा है यह बहुत मायने रखती है।
   इस तरह की कारनामों का जनता 2022 में क्या जवाब देगी, यह देखने वाली बात होगी।

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