उत्तराखंड में विधानसभा का मामला जोरों पर है जहां अभी हाल ही में हाईकोर्ट ने बर्खास्त कर्मचारियों के खिलाफ फैसला देते हुए उन्हें बर्खास्त ही रखा हैl
लेकिन कहीं ना कहीं विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूरी द्वारा इस मामले में जो एक्शन लिया जा रहा है वह दुराग्रह पूर्ण माना जा रहा हैl
ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि स्पीकर ऋतु खंडूड़ी हमेशा 2016 से पहले वालों के मामले में खामोश हो जाता है।
पांच सितंबर को स्पीकर विधानसभा भर्ती घोटाले की जांच को डीके कोटिया समिति का गठन करती हैं। उसमें स्पीकर कहती हैं की जांच दो चरणों में होगी। पहले जांच 2012 के बाद वालों की होगी। उसके बाद जरूरत पड़ने पर ही 2012 के पहले वालों के लिए देखा जाएगा।25 सितंबर को डीके कोटिया जांच समिति की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए 2016 से लेकर 2022 तक वालों को बर्खास्त कर दिया जाता है। जबकि कोटिया समिति ने अपनी रिपोर्ट में 2000 से लेकर सभी भर्ती को अवैध करार दिया। 2016 से पहले वालों के मामले में स्पीकर कहती हैं की विधिक राय लेंगे। ये विधिक राय आज तक नहीं ली गई।
15 अक्तूबर को हाईकोर्ट स्पीकर के आदेश को स्टे कर देती है। उसके बाद भी उसे लागू नहीं किया गया। तत्काल हाईकोर्ट के आदेश पर विधिक राय भी ले ली जाती है। डबल बेंच में अपील भी कर दी जाती है, लेकिन 2016 से पहले वालों के मामले में 20 दिन बाद भी विधिक राय नहीं ली गई।
जबकि हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में मनोज तिवारी के समक्ष पेश किए गए काउंटर में विधानसभा ने खुद कबूल किया है कि 2000 से लेकर आज तक हुई सभी भर्ती अवैध हैं। जब कोर्ट ने पूछा की 2016 से पहले वालों के मामले में विधानसभा क्या कर रही है, तो कहा जाता है विधिक राय ली जा रही है।
इसके बाद डबल बेंच में विधानसभा अपील करती है, फिर काउंटर फाइल करती है और फिर दोहराती है की 2000 से लेकर आज तक हुई सभी भर्ती अवैध हैं। फिर कोर्ट पूछती है की उनके मामले में क्या हो रहा है, तो फिर कहा जाता है की विधिक राय ली जा रही है।
आखिर ये कैसी विधिक राय है, जो 2016 से पहले वालों के मामले में मिलती ही नहीं है। और 2016 से बाद वालों के मामले में रातों रात मिल जाती है।