देहरादून। विधानसभा के 2016 से पहले के कर्मचारियों को लेकर एक बड़ा खुलासा हुआ है। विधानसभा ने इस बार इन कर्मचारियों को लेकर सरकार से किसी भी प्रकार की कोई विधिक राय नहीं मांगी है।
विधिक राय को लेकर दिसंबर महीने में विधानसभा ने विधिक राय मांगने को लेकर पत्र न्याय विभाग को नहीं भेजा। बल्कि सीधे महाधिवक्ता को भेजा। जिसका सीधे सरकार से कोई लेना देना नहीं है।
इस बार विधिक राय को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा की गई। बाहर यही हल्ला मचाया गया कि 2016 से पहले वाले कर्मचारियों को लेकर सरकार से विधिक राय मांगी गई है।
खुद स्पीकर ऋतु खंडूडी ने भी मीडिया में बयान दिया कि सरकार से विधिक राय मांगी गई है। सरकार इन कर्मचारियों के नियमितीकरण की वैधता को लेकर जो भी फैसला लेगी, उस पर आगे बढ़ा जाएगा। एक तरह से गेंद सरकार के पाले में डाल कर माइंड गेम में सरकार को उलझाने की कोशिश की गई।
महाधिवक्ता की ओर से स्पीकर ऋतु खंडूडी को भेजी गई राय से भ्रम की स्थिति समाप्त हो गई है। महाधिवक्ता ने सीधे स्पीकर को पत्र भेज कर किसी भी तरह की विधिक राय देने से साफ मना कर दिया है। दूसरी ओर विधानसभा भर्ती से जुड़े मामले में सरकार कई बार साफ कर चुकी है कि ये सीधे तौर पर विधानसभा का अधिकार क्षेत्र है। कर्मचारियों के प्रमोशन, डिमोशन, निलंबन, टर्मिनेशन पर वो अपने स्तर पर फैसले लेने को स्वतंत्र है। विधानसभा के मामले से सरकार का किसी भी तरह का कोई सरोकार नहीं है।
महाधिवक्ता ने भी दो टूक साफ किया है कि 2016 से पहले के कर्मचारियों के नियमितीकरण को किसी ने भी वैध नहीं ठहराया है। डीके कोटिया समिति ने भी इन्हें वैध नहीं माना है। इसे विधानसभा और 2016 से पहले के कर्मचारियों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। महाधिवक्ता की रिपोर्ट को स्पीकर के लिए भी झटका माना जा रहा है। क्योंकि इस राय से साफ हो गया है कि 2016 से पहले के कर्मचारियों के मामले में जो भी फैसला होगा, वो विधानसभा में स्पीकर के स्तर पर ही होगा।