आरटीआई से मिली जानकारी के बाद वसूली की आयी याद
जन जागृति ग्राम उद्योग को भेजा वसूली का नोटिस
वर्ष 2005 मे उत्तरकाशी के मोरी मे बारात घर निर्माण का था मामला
गिरीश गैरोला
उत्तराखंड मे सरकारी काम – काज कैसे चलता है, इसका ताजा उदाहरण उत्तरकाशी जिले मे देखने को मिला जहां घोटाले मे धन की वसूली का निर्देश जारी करने वाला आईएएस अधिकारी डीएम से सचिव बन गया किन्तु इन 12 वर्षो मे सरकारी धन की वसूली नहीं हो सकी।
आरटीआई दाखिल होने के बाद समाज कल्याण विभाग नींद से जागा और उसने 12 वर्ष पुराने सरकारी धन वसूली के मामले मे आरोपी को एक बार फिर नोटिस जारी कर 30 दिसंबर तक विभाग का बकाया 3,94, 302 रु की धनराशि जमा करने को कहा है और ऐसा न करने की स्थिति मे पुलिस थाने मे मे एफ़आईआर करने की चेतावनी दी गयी है।
मामला वर्ष 2005 का है, जब उतरकाशी के मोरी ब्लॉक के ओडाटा गांव मे बारात घर स्वीकृति हुआ था। इसके निर्माण के लिए जन जागृति ग्राम उद्योग संस्थान बूढ़ाकेदार को निर्माण के लिए 5 लाख की धनराशि प्रदान की गयी थी। उस वक्त संस्था अधूरा काम छोड़ कर चली गयी। शिकायत के बाद जांच हुई और 5 लाख के काम मे से उस वक्त केवल 1, 05,698 रु का ही कार्य होना पाया गया। लिहाजा 3लाख 94 हजार 3 सौ दो रु की वसूली के लिए नोटिस जारी किए गए ,किन्तु आज तक न तो नोटिस का जबाब मिला और न ही धन की वसूली हो सकी।
बूढ़ाकेदार निवासी धरम लाल द्वारा सूचना अधिकार मे स्वजल और समाज कल्याण विभाग उत्तरकाशी से जानकारी मांगने के बाद उक्त खुलासा हुआ। स्वजल ने अभी तक कोई जबाब नहीं दिया है। जबकि समाज कल्याण विभाग उत्तरकाशी ने सचिव जन जागृति ग्राम उद्धोग संस्थान को बकाया धनराशि की वसूली का नोटिस भेजते हुए 30 दिसंबर तक का समय दिया गया है।
12 वर्ष बाद नोटिस भेजने के सवाल पर जिला समाज कल्याण अधिकारी जीएस रावत ने बताया कि उस वक्त उक्त व्यक्ति मामले को लेकर कोर्ट मे चला गया था किन्तु कोर्ट ने क्या निर्णय दिया ये उन्हे नहीं मालूम।
बताते चलें कि 21 फरवरी 2006 को तत्कालीन डीएम आर मीनाक्षी सुंदरम ने उक्त संस्था को ब्लैक लिस्ट करने की संस्तुति प्रमुख सचिव समाज कल्याण से करते हुए विभाग को वसूली की कार्यवाही करने के निर्देश जारी किए थे, किन्तु तब से न जाने कितने अधिकारी बदल गए पर वसूली आज तक नहीं हो सकी।
शिकायत कर्ता धरम लाल की माने तो स्वजल से सूचना अधिकार मे सूचना मिलने पर और भी कई घोटाले सामने आने की संभावना है जिसे अभी विभाग छुपाने के प्रयास मे है।
सवाल ये है कि यदि आरटीआई न लगाई जाती तो मामला आज भी ढका ही रहता अब ऐसे न जाने कितने और घोटाले अभी भी फ़ाईलों के ढेर मे दबे-दबे धूल फांक रहे होंगे।