फ्री में काम कीजिये नौकरी पक्की समझिये
कुलदीप एस राणा
कहते हैं कि घर बना दीजिये और उसमें आदमी ही न हो तो और अंदर खाना पकाने को, बर्तन और गैस तथा राशन का सामान ही नही हो तो उस घर का क्या होगा,कमोबेश यही हालात उत्तराखंड आयुर्वेद विश्विद्यालय के हैं।
विश्विद्यालय ने अस्पताल के नाम पर करोड़ों की बिल्डिंग तो बन रही है, पर उनमे अस्पताल में लगने वाले उपकरण कहाँ से आएंगे, इसके बजट की कोई व्यवस्था नहीं है।विश्विद्याल्य में उधार पर लिए गए नर्सिंग एवं ग़ैरतकनिकी संवर्ग के कर्मचारियों को 6 माह से पगार नही मिली है।
हालात यह है कि विश्विद्यालय में आरएमओ एवं आरएसओ तथा पंचकर्म चिकित्सक भी बिना सेलरी के केवल स्थायीकरण की आस में काम कर रहे हैं ।एक चिकित्सक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि किसी भी कर्मचारी को 4 से 5 माह से पगार नही मिली और अब सीसीआईएम का निरीक्षण सर पर है। जहां पगार का डिटेल भी भरना पड़ता है। ऐसे में ये कर्मचारी निराशा के माहौल में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
कहा तो यह भी जा रहा है कि 292 विज्ञापित पदों पर स्थायी नियुक्ति की आस में ये चिकित्सक और कर्मचारी पगार मांगने में भी सहम रहे कि कहीं नियुक्ति से इनका पत्ता ही साफ न हो जाय।
वैसे विश्विद्यालय में 292 विज्ञापित पदों पर अब तक 2867 आवेदन आये हैं सवसे अधिक मारामारी चिकित्साधिकारी आयुर्वेद के पद के लिए है जहाँ 927 आवेदन आये हैं। इतने अधिक आवेदन आने के कारण अधिकाँश पदों पर लिखित परीक्षा होनी तय है ।आयुर्वेद संकाय के अस्पताल की हालात तो और भी बुरी है। बजट न होने के कारण पैथोलोजिकल जांचें भी नही हो पा रही हैं ।
कुन्दन सिंह तीन दिन से एक रिपोर्ट के लिये भटक रहे है जो साफ पढ़ने में भी नही आ रही है। कर्मचारी बता रहे कि रिपोर्टिंग करने की मशीन का काट्रेज नही बदला गया है।
रमेश चौकियाल ,सैनिक कालोनी का कहना है कि कहने को यह सरकारी अस्पताल है पर दवाएं या तो अंदर के मेडिकल स्टोर से या बाहर से खरीदनी पड़ती है।
नए कुलपति के आने से क्षेत्रवासियो एवं अस्पताल के कर्मचारियों तथा निजी एवं सरकारी संबद्द चिकित्सकों में उम्मीद की किरण जगी है कि उनकी 4 महीने की रुकी पगार अब सीसीआईएम के विजिट से पहले तो मिल ही जाएगी।सूत्रों की माने तो स्वायत्तसेवी निकाय होने तथा यूजीसी से ग्रांट न मिल पाने के कारण हालिया विज्ञापित 292 पदों में नियुक्ति के उपरांत भी वेतन के लाले पड़ सकते हैं।